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दो हाथ हिंदी कहानी, Do Haath Hindi Kahani
“राम अवतार ख़ाकरूब की माँ को तो पेट भरने के लिए दो हाथों की ज़रूरत थी। दुनिया ख़्वाह कुछ भी कहे।”
राम अवतार लाम पर से वापस आ रहा था। बूढ़ी मिहतरानी अब्बा मियां से चिट्ठी पढ़वाने आई थी। राम अवतार को छुट्टी मिल गई। जंग ख़त्म हो गई थी न! इसलिए राम अवतार तीन साल बाद वापस आ रहा था, बूढ़ी मिहतरानी की चपड़ भरी आँखों में आँसू टिमटिमा रहे थे। मारे शुक्रगुज़ारी के वो दौड़ दौड़ कर सब के पांव छू रही थी। जैसे इन पैरों के मालिकों ने ही उसका इकलौता पूत लाम से ज़िंदा सलामत मंगवा लिया।
बुढ़िया पच्चास बरस की होगी पर सत्तर की मालूम होती थी। दस-बारह कच्चे-पक्के बच्चे जने, उनमें बस राम अवतार बड़ी मिन्नतों मुरादों से जिया था। अभी उसकी शादी रचाए साल भर भी नहीं बीता था कि राम अवतार की पुकार आ गई, मिहतरानी ने बहुत वावेला मचाया मगर कुछ न चली और जब राम अवतार वर्दी पहन कर आख़िरी बार उसके पैर छूने आया तो उसकी शान-ओ-शौकत से बे-इंतिहा मरऊब हुई जैसे वो कर्नल ही तो हो गया था।
शागिर्द पेशे में नौकर मुस्कुरा रहे थे, राम अवतार के आने के बाद जो ड्रामा होने की उम्मीद थी सब उसी पर आस लगाए बैठे थे। हालाँकि राम अवतार लाम पर तोप बंदूक़ छोड़ने नहीं गया था। फिर भी सिपाहियों का मैला उठाते उठाते उसमें कुछ सिपाहियाना आन बान और अकड़ पैदा हो गई होगी। भूरी वर्दी डाँट कर वो पुराना राम अवतरवा वाक़ई न रहा होगा। नामुमकिन है वो गौरी की करतूत सुने और उसका जवान ख़ून हतक से खौल न उठे।
ब्याह कर आई तो क्या मिसमेप थी गौरी, जब तक राम अवतार रहा उसका घूँघट फ़ुट भर लंबा रहा और किसी ने उसके रुख पर नूर का जलवा न देखा, जब ख़सम गया तो क्या बिलक बिलक कर रोई थी। जैसे उसकी मांग का सिंदूर हमेशा के लिए उड़ रहा हो। थोडे दिन रोई रोई आँखें लिये सर झुकाए मैले की टोकरी ढोती फिरी, फिर आहिस्ता-आहिस्ता उसके घूँघट की लम्बाई कम होने लगी।
कुछ लोगों का ख़याल है ये सारा बसंत रुत का किया धरा है, कुछ साफ़ गो कहते थे, “गौरी थी ही छिनाल, राम अवतार के जाते ही क़ियामत हो गई।” कम्बख़्त हर वक़्त ही ही, हर वक़्त इठलाना, कमर पर मैले की टोकरी लेकर कांसे के कड़े छनकाती जिधर से निकल जाती लोग बदहवास हो जाते। धोबी के हाथ से साबुन की बटटी फिसल कर हौज़ में गिर जाती। बावर्ची की नज़र तवे पर सुलगती हुई रोटी से उचट जाती। बहिश्ती का डोल कुवें में डूबता ही चला जाता चपड़ासियों तक की बिला कलफ़ लगी पगड़ियाँ ढीली हो कर गर्दन में झूलने लगती, और जब ये सरापा क़ियामत घूँघट में से बाण फेंकती गुज़र जाती तो पूरा शागिर्द पेशा एक बे-जान लाश की तरह सकते में रह जाता, फिर एक दम चौंक कर वो एक दूसरे के दुर्गत पर तानाज़नी करने लगते। धोबिन मारे ग़ुस्से के कलफ़ की कुंडी लोट देती। चपड़ासन छाती से चिमटे लौंडे के बे बात ज़ख्मो के जड़ने लगती। और बावर्ची की तीसरी बीवी पर हिस्ट्रिया का दौरा पड़ जाता।
नाम की गौरी थी। पर कम्बख़्त स्याह बहुत थी जैसे उल्टे तवे पर किसी फ़ावढ़िया ने पराठे मलकर चमकता हुआ छोड़ दिया हो। चौड़ी फुकना सी नाक, फैला हुआ दहाना, दाँत मांझने का उसकी सात पुश्त ने फ़ैशन ही छोड़ दिया था। आँखों में पवटें काजल थोपने के बाद भी दाएं आँख का भेंगा पन ओझल न हो सका, फिर भी टेढ़ी आँख से न जाने कैसे ज़हर में बुझे तीर फिंकती थी कि निशाने पर बैठ ही जाते थे। कमर भी लचकदार न थी। ख़ासी कठला सी थी, झूटन खा खा दुंबा हो रही थी, चौड़े भैंस के से खुर। जिधर से निकल जाती कड़वे तेल की सड़ान्द छोड़ जाती, हाँ आवाज़ में बला की कूक थी। तीज त्योहार पर लहक कर कजरिया गाती तो उस की आवाज़ सबसे ऊंची लहराती चली जाती।
बढ़िया मिहतरानी यानी उस की सास बेटे के जाते ही इस तरह बदगुमान हो गई। बैठे बैठाए एहतियातन गालियां देती , इस पर नज़र रखने के लिए पीछे पीछे फुर्ती । मगर बढ़ाया अब टूट चुकी थी , चालीस बरस मेला ढोने से इस की कमर मुस्तक़िल तौर पर एक तरफ़ लचक कर वहीं ख़त्म हो गई थी , हमारी पुरानी मिहतरानी थी। हम लोगों के आनोल नाल उसी ने गाड़े थे। जूंही अम्मां के दर्द लगते मिहतरानी दहलीज़ पर आकर बैठ जाती और बाअज़ वक़्त लेडी डाक्टर तक को निहायत मुफ़ीद हिदायतें देती , बलाईआत को दफ़ा करने के लिए कुछ मंत्र तावीज़ भी ला कर पट्टी से बांध देती , मिहतरानी की घर में ख़ासी बुजु़र्गाना हैसियत थी।
इतनी लाडली मिहतरानी की बहू यकायक लोगों की आँखों में कांटा बन गई। चपरासन और बावर्चन की तो और बात थी। हमारी अच्छी भली भावजूं का माथा उसे इठलाते देखकर ठनक जाता , अगर वो इस कमरे में छाड़ो देने जाती जिसमें उस के मियां होते तो वो हड़ बुरा कर दूध पीते बच्चे के मुँह से छाती छीन कर भागतीं कि कहीं वो डायन उनके शौहरों पर टोना टोटका ना कर रही हो।
गौरी क्या थी बस एक मरखना लंबे लंबे सींगों वाला बजा रहा था कि छोटा फिरता था लोग अपने कांच के बर्तन भाँडे दोनों हाथों से समेट कर कलेजे से लगाते , और जब हालात ने नाज़ुक सूरत पकर ली तो शागिर्द पेशे की महीलाओं का एक बाक़ायदा वफ़द अम्मां के दरबार में हाज़िर हुआ , बड़े ज़ोर शोर से ख़तरा और इस के ख़ौफ़नाक नताइज पर बेहस हुई ,पत्ती रखशा की एक कमेटी बनाई गई जिसमें सब भावजूं ने शुद-ओ-मद से वोट दिए और अम्मां को सदर एज़ाज़ी का ओहदा सौंपा गया , सारी ख़वातीन हसब मुरातिब ज़मीन , पीढ़ियों और पलंग की अदवाइन पर बैठें , पान के टुकड़े तक़सीम हुए और बढ़िया को बुलाया गया। निहायत इतमीनान से बच्चों के मुँह में दूध देकर सभा में ख़ामोशी क़ायम की गई और मुक़द्दमा पेश हुआ।
“क्यों री चुड़ैल तू ने बहू क़तामा को छूट दे रखी है कि हमारी छातीयों पे कोदों दले , इरादा किया है तेरा क्या मुँह काला कराएगी?”
मिहतरानी तो भरी ही बैठी थी फूट पड़ी।।। “क्या करूँ बेगम साहिब हरामख़ोर को चार चोट की मार भई दिये ले तो। रोटी भी खाने को ना दिये। पर रांड मेरे तो बस की नहीं।”
“अरे रोटी की क्या कमी है उसे” बावर्चन ने अँटा फेंका। सहारन पूर की ख़ानदानी बावर्चन और फिर तीसरी बीवी।।। क्या तीहा था कि अल्लाह की पनाह फिर चपड़ासन , टालन और धोबिन ने मुक़द्दमा को और संगीन बनादिया। बेचारी मिहतरानी बैठी सबकी लताड़ सुनती और अपनी ख़ारिश-ज़दा पिंडुलियां खुजलाती रही।
“बेगम साहिब आप जैसी बताओ वैसे करने से मोए ना थोरी ,पर का करूँ का , रांड का टेंटवा दबाए दियों?”
अम्मां ने राय दी।।।”मोई को मैके फूंकवा दे।”
“ए बेगम साहिब कहीं ऐसा हो सके है?” मिहतरानी ने बताया कि बहू मुफ़्त हाथ नहीं आई है , सारी अमरीकी कमाई पूरे दो सौ झोंके हैं , तब मसटनडी हाथ आई है , इतने पैसों में तो गाएँ आ जातीं , मज़े से भर कलसी दूध देती। पर ये रांड तो दौलतीयाँ ही देती है , अगर उसे मैके भेज दिया गया तो इस का बाप उसे फ़ौरन दूसरे मिहतर के हाथ बेच देगा। बहू सिर्फ़ बेटे के बिस्तर की ज़ीनत ही तो नहीं , दो हाथों वाली है पर चार आदमीयों का काम निपटाती है। राम अवतार के जाने के बाद बढ़िया से इतना काम किया सँभलता , ये बुढ़ापा तो अब बहू के दो हाथों के सदक़े में बीत रहा है।”
महेलाएं कोई नासमझ ना थीं। मुआमला अख़लाक़ीयात से हट कर इक़तिसादीयात पर आ गया था। वाक़ई बहू का वजूद बढ़िया के लिए लाज़िमी था। दो सौ रुपय का माल किस का दिल है कि फेंक दे , इन दो सौ के इलावा ब्याह पर जो बनने से लेकर ख़र्च किया था। जजमान खिलाए थे। बिरादरी को राज़ी किया था। ये सारा ख़र्चा कहाँ से आएगा। राम अवतार को जो तनख़्वाह मिलती थी वो सारी उधार में डूब जाती थी। ऐसी मोटी ताज़ी बहू अब तो चार-सौ से कम में ना मिलेगी। पूरी कोठी की सफ़ाई के बाद और आस-पास की चार कोठियाँ निमटाती है। रांड काम में चौकस है वैसे।
फिर भी अम्मां ने अल्टीमेटम दे दिया। कि “अगर इस लची का जल्द अज़ जदम कोई इंतिज़ाम ना किया गया तो कोठी के अहाता में नहीं रहने दिया जाएगा।”
बढ़िया ने बहुत वावेला मचाई , और जा कर बहू को मुँह भर गालियां दीं , झोंटे पकड़ कर मारा पीटा भी , बहू उस की ज़रख़रीद थी। पटती रही बड़ा बढ़ाती रही और दूसरे दिन इंतिक़ामन सारे अमले की धज्जियाँ बिखेर दें। बावर्ची ,बहिश्ती ,धोबी और चपरासियों ने तो अपनी बीवीयों की मुरम्मत की। यहां तक कि बहू के मुआमला पर मेरी मुहज़्ज़ब भाबियों और शरीफ़ भाईयों में भी कट पुट हो गई , और भाबियों के मैके तार जाने लगे। ग़रज़ बहू हरे-भरे ख़ानदान के लिए सूई का कांटा बन गई।
मगर दो-चार दिन के बाद बूढ़ी मिहतरानी के देवर का लड़का राम रत्ती अपनी ताई से मिलने आया , और फिर वहीं रह पड़ा । दो-चार कोठियों में काम बढ़ गया था सो वो भी उसने सँभाल लिया। अपने गांव में आवारा तो घूमता था। इस की बहू अभी नाबालिग़ थी। इस लिए गौना नहीं हुआ था।
रत्ती राम के आते ही मौसम एक दम लोट-पोट कर बिलकुल ही बदल गया जेयू घनघोर घटाऐं हुआ के झोंकों के साथ तित्र बित्तर हो गईं। बहू के कहके ख़ामोश हो गए। कांस्य के कड़े गूँगे हो गए , और जैसे गुब्बारे से हुआ निकल जाये तो वो चुप-चाप झूलने लगा। ऐसे बहू का घूँघट झूलते झूलते नीचे की तरफ़ बढ़ने लगा । अब वो बजाय नथे बेल के निहायत शर्मीली बहू बन गई । जुमला महीलाओं ने इतमीनान का सांस लिया। स्टाफ़ के मर्द उसे छेड़ते भी तो वो छुई-मुई की तरह लजा जाती , और ज़्यादा-तर वो घूँघट में से भैंगी आँख को और तिर्छा करके रत्ती राम की तरफ़ देखती जो फ़ौरन बाज़ू खुजलाता सामने आकर डट जाता । बढ़िया पुरसुकून अंदाज़ में दहलीज़ पर बैठी अध-खुली आँखों से ये तरबिया ड्रामा देखती और गड़ गड़ी पिया करती। चारों तरफ़ ठंडा ठंडा सुकून छा गया जैसे फोड़े का मवाद निकल गया हो।
मगर अब के बहू के ख़िलाफ़ एक नया महाज़ क़ायम हो गया , वो अमले की मर्द जाती पर मुश्तमिल था। बात बे बात बावर्ची जो उसे पराठे तिल कर दिया करता था कोंडी साफ़ ना करने पर गालियां देता। धोबी को शिकायत थी कि वो कलफ़ लगा कर कपड़े रस्सी पर डालता है ये हरामज़ादी ख़ाक उड़ाने आ जाती है। चपरासी मर्दाने में दस दस मर्तबा झाड़ू दिलवाते फिर भी वहां की ग़लाज़त का रोना रोते रहते ,बहिश्ती जो उस के हाथ धुलाने के लिए कई मुशकीं लिए तैयार रहता था अब घंटों सेहन में छिड़काओ करने को कहती मगर टालता रहता। ताकि वो सूखी ज़मीन पर झाड़ू दे , तो चपरासी गर्द उड़ाने के जुर्म में उसे गालियां दे सके।
मगर बहू सर झुकाए सबकी डाँट फटकार एक कान से सुनती दूसरे कान से उड़ा देती । ना जाने सास से किया जा कर कह देती कि वो काएं काएं कर के सब का बीजाज चाटने लगती ।अब उस की नज़र में बहू निहायत पार सा और नेक हो चुकी थी।
फिर एक दिन दाढ़ी वाले दारोगा जी जो तमाम नौकरों के सरदार थे और अब्बा के ख़ास मुशीर समझे जाते थे। अब्बा के हुज़ूर में दस्त-बस्ता हाज़िर हुए , और इस भयानक बदमाशी और ग़लाज़त का रोना रोने लगे। जो बहू और रत्ती राम के नाजायज़ ताल्लुक़ात से सारे शागिर्द पेशे को गंदा कर रही थी।अब्बा जी ने मुआमला सैशन सपुर्द कर दिया। यानी अम्मां को पकड़ा दिया। महीलाओं की सभा फिर से छड़ी और बढ़िया को बुला कर उस के लत्ते लिए गए।
“अरी निगोड़ी ख़बर भी है ये तेरी बहू क़तामा क्या गुल खिला रही है?”
मिहतरानी ने ऐसे चनधरा कर देखा जैसे कुछ नहीं समझती ग़रीब । कि किस का ज़िक्र हो रहा है और जब उसे साफ़ साफ़ बताया गया कि चशम दीदा गवाहों का कहना है कि बहू और रत्ती राम के ताल्लुक़ात नाज़ेबा हद तक ख़राब हो चुके हैं , दोनों बहुत ही काबिल एतराज़ हालतों में पकड़े गए हैं तो इस पर बढ़िया बजाय अपनी बेहतरी चाहने वालों का शुक्रिया अदा करने के , बहुत चिराग़-ए-पा हुई। बड़ा वावेला मचाने लगी। कि” राम ओतरवा होता तो उन लोगों की ख़बर लेता जो उस की मासूम बहू पर तोहमत लगाते हैं। बहू निगोड़ी तो अब चुप-चाप राम अवतार की याद में आँसू बहाया करती है । काम काज भी जान तोड़ करती है ।किसी को शिकायत नहीं होती। ठटोल भी नहीं करती । लोग उस के नाहक़ दुश्मन हो गए हैं । बहुत समझाया मगर वो मातम करने लगी कि सारी दुनिया उस की जान की लागों हो गई है । आख़िर बढ़िया और इस की मासूम बहू ने लोगों का क्या बिगाड़ा है । वो तो किसी के लेने में ,ना देने में , वो तो सबकी राज़-दार है। आज तक उसने किसी का भांडा फोड़ा , उसे क्या ज़रूरत जो किसी के फेक में पैर उड़ाती फिरे । कोठियों के पिछवाड़े क्या नहीं होता । मिहतरानी से किसी का मेला नहीं छुपता। इन बूढ़े हाथों ने बड़े बड़े लोगों के गुनाह दफ़न किए हैं । ये दो हाथ चाहें तो रानियों के तख़्त उलट दें। पर नहीं उसे किसी से बुग़ज़ नहीं । अगर उस की गले में छुरी दबाई गई तो शायद ग़लती हो जाये । वैसे वो किसी के राज़ अपने बूढ़े कलेजे से बाहर नहीं निकलने देगी।”
इस का तीहा देखकर फ़ौरन छुरी दबाने वालों के हाथ ढीले पड़ गए । सारी महेलाएं उस की पिच करने लगीं। बहू कुछ भी करती थी उनके अपने क़िले तो महफ़ूज़ थे तो फिर शिकायत कैसी? फिर कुछ दिन हुए बहू के इशक़ का चर्चा कम होने लगा। लोग कुछ भूलने लगे , ताड़ने वालों ने ताड़ लिया कि कुछ दाल में काला है। बहू का भारी भरकम जिस्म भी दाल के काले को ज़्यादा दिन ना छिपा सका , और लोग शुद-ओ-मद से बढ़िया को समझाने लगे। मगर इस नए मौज़ू पर बढ़िया बिलकुल उड़न घाईआं बताने लगी , बिलकुल ऐसे बन जाती जैसे एक दम ऊंचा सुनने लगी है। अब वो ज़्यादा-तर खाट पर लेटी बहू और रत्ती राम पर हुक्म चलाया करती , कभी खाँसती , छींकती बाहर धूप में आ बैठती तो वो दोनों उस की ऐसी देख रेख कृत्य जैसे वो कोई पटरानी हो।
भली बीवीयों ने उसे समझाया। राती राम का मुँह काला करो और इस से पहले कि राम अवतार लौट आए। बहू का ईलाज करवा डाल। वो ख़ुद इस फ़न में माहिर थी। दो दिन में सफ़ाई हो सकती थी। मगर बढ़िया ने कुछ समझ कर ही ना दिया। बिलकुल इधर उधर की शिकायतें करने लगी कि उसने घुटनों में पहले से ज़्यादा ईंठन होती है नीज़ कोठियों में लोग बहुत ही ज़्यादा बादी चीज़ें खाने लगे हैं। किसी ना किसी कोठी में दस्त लगे ही रहते हैं । इस की टाल मटोल पर नासिहीन जल कर मरुन्डा हो गए। माना कि बहू औरत ज़ात है, नादान है ,भोली । बड़ी बड़ी शरीफ़ ज़ादियों से ख़ता हो जाती है , लेकिन उनकी आला ख़ानदान की मुअज़्ज़िज़ सासें यूं कान में तेल डाल कर नहीं बैठ जातीं , पर ना जाने ये बढ़िया क्यों सठिया गई थी। जिस बिल्ला को वो बड़ी आसानी से कोठी के कूड़े के तह में दफ़न कर सकती थी उसे आँखें मीचे पलने दे रही थी।
राम अवतार के आने का इंतिज़ार था। हरवक़त की धमकीयां तो देती रहती थी।
“आन दे राम अवतार का , कहाँगी। तोरी हड्डी पिसली एक कर दे।” और अब राम अवतार लाम से ज़िंदा वापिस आ रहा था । फ़िज़ा ने सांस रोक ली थी। लोग एक मुहीब हंगामे के मुंतज़िर थे।
मगर लोगों कोफ़त हुई जब बहू ने लौंडा जना। बजाय उसे ज़हर देने के बढ़िया की मारे ख़ुशी के बाछें खुल गई। राम अवतार के जाने के दो साल बाद पोता होने पर क़तई मुतअज्जिब ना थी। घर-घर फटे पुराने कपड़े और बधाई समेटती फिरी। इस का भला चाहने वालों ने उसे हिसाब लगा कर बहतरा समझाया कि ये लौंडा राम अवतार का हो ही नहीं सकता , मगर बढ़िया ने क़तई समझ कर ना दिया। इस का कहना था ओसाढ़ में राम अवतार लाम पे गया। बढ़िया पीली कोठी के नए अंग्रेज़ी वज़ा के महीने में संडास में गिर पड़ी थी । अब चेत लग रहा है , और जेठ के महीने में बढ़िया को लू लगी थी । मगर बाल बाल बच गई थी। जभी से इस के घुटनों का दर्द बढ़ गया।।। “वेद जी पूरे हरामी हैं दवाएं खरया मिला कर देते हैं।” इस के बाद वो बिलकुल असल सवाल से हट कर ख़ैलाओं की तरह अव्वल फ़ूल बिकने लगती । किस के दिमाग़ में इतना बूता था कि वो बात इस काईयां बढ़िया को समझाता जिसे ना समझने का वो फ़ैसला कर चुकी थी।
लौंडा पैदा हुआ तो उसने राम अवतार को छुट्टी लिखवाई।
“राम अवतार को बाद चुम्मा , प्यार के मालूम हो कि यहां सब कुशल हैं और तुम्हारी कुशलता भगवान से नेक चाहते हैं और तुम्हारे घर में पोत पैदा हुआ है सो तुम इस ख़त को तार समझो और जल्दी से आ जाओ।”
लोग समझते थे कि राम अवतार ज़रूर चिराग़-ए-पा होगा मगर सबकी उम्मीदों पर ओस पड़ गई जब राम अवतार का मुसर्रत लबरेज़ ख़त आया कि वो लौंडे के लिए मौज़े और बिनयान ला रहा था। बढ़िया पोते को घुटने पर लुटाए खाट पर बैठी राज क्या करती , भला इस से ज़्यादा हसीन बढ़ाया क्या होगा , सारी कोठियों का काम तुरत-फिरत हो रहा हो, महाजन का सूद पाबंदी से चक रहा हो और घुटने पर पोता सो रहा हो।
ख़ैर लोगों ने सोचा, राम अवतार आएगा। असलीयत मालूम होगी। तब देख लिया जाएगा और राम अवतार जंग जीत कर आ रहा था। आख़िर को सिपाही है क्यों ना ख़ून खोलेगा। लोगों के दिल धड़क रहे थे। शागर दपीशे की फ़िज़ा जो बहू की तोता चश्मी की वजह से सौ गई थी। दो-चार ख़ून होने और नाकें कटने की आस में जाग उठी।
लौंडा साल भर का होगा। जब राम अवतार लूटा शागिर्द पेशे में खलबली मच गई। बावर्ची ने हांडी में ढेर सा पानी झोंक दिया ताकि इतमीनान से पीटने का लुतफ़ उठाए। धोबी ने कलफ़ का बर्तन उतार कर मुंडेर पर रख दिया और बहिश्ती ने डोल कुवें के पास पटक दिया।
राम अवतार को देखते ही बढ़िया उस की कमर से लिपट कर चिंघाड़ने लगी मगर दूसरे लम्हे खीसें काढ़े लौंडे को राम अवतार की गोद में देकर ऐसे हँसने लगी जिसे कभी रोई ही ना हो।
राम अवतार लौंडे को देखकर ऐसे शरमाने लगा जैसे वही उस का बाप हो, झटपट उसने संदूक़ खोल कर सामान निकालना शुरू किया। लोग समझे खकरी या चाक़ू निकाल रहा है मगर जब उसने इस में लाल बनियाइन और पीले मौज़े निकाले तो सारे अमले की क़ुव्वत मर्दाना पर ज़रब कारी लगी। हित तिरे की ,साला सिपाही बनता है , हिजड़ा ज़माने भुरका।
और बहू सिमटी सिमटाई जैसे नई-नवेली दुल्हन , कांसी की थाली में पानी भर कर राम अवतार के बदबूदार फ़ौजी बूट उतारे और चरण धो कर पिए।
लोगों ने राम अवतार को समझाया , फब्तियां कसें , उसे गाव दी कहा मगर-ओ-ह गाव दी की तरह खीसें काढ़े हँसता रहा , जैसे उस की समझ में ना आरहा हो । रत्ती राम को गौना होने वाला था सो वो चला गया।
राम अवतार की इस हरकत पर ताज्जुब से ज़्यादा लोगों को ग़ुस्सा आया । हमारे अब्बा जो आम तौर पर नौकरों की बातों में दिलचस्पी नहीं लिया करते थे वो जिज़बिज़ हो गए । अपनी सारी क़ानूनदानी का दाओ लगा कर राम अवतार को क़ाइल करने प्रतुल गए।
“क्यूँ-बे तो तीन साल बाद लौटा है ना?”
“मालूम नहीं हुजूर थोड़ा कम ज्यादा।।। इताही रहा होगा।”
“और तेरा लौंडा साल भर का है।”
“इताही लगे है सरकार पर बड़ा बदमास है सुसर।” राम अवतार शरमाए।
“अबे तू हिसाब लगा ले।”
“हिसाब?।।। क्या लगाऊँ सरकार।” राम अवतार ने मर घुली आवाज़ में कहा।
“उल्लू के पट्ठे ये कैसे हुआ?”
“अब जे में का जानों सरकार।।। भगवान की देन है।”
“भगवान की देन , तेरा सर।।।ये लौंडा तेरा नहीं हो सकता।”
अब्बा ने उसे चारों और से घेर कर क़ाइल करना चाहा कि लौंडा हरामी है , तो वो कुछ क़ाइल सा हो गया। फिर मरी हुई आवाज़ में अहमक़ों की तरह बोला।
“तो अब का करूँ सरकार।।। हराम जादी को मैंने बड़ी मार दी”। वो ग़ुस्से से बिफर कर बोला।
“अबे निरा उल्लू का पट्ठा है तो।।। निकाल बाहर क्यों नहीं करता कम्बख़्त को।”
“नहीं सरकार कहीं ऐसा हुए सके हैं”.. राम अवतार घगयाने लगा।
“क्यूँ-बे?”
“हुजूर ढाई तीन सौ फिर सगाई के लिए काँ से लाऊँगा और बिरादरी जमाने में सौ दो सौ अलग खुरच हो जाऐंगे।”
क्यूँ-बे तुझे बिरादरी क्यों खिलानी पड़ेगी? बहू की बदमाशी का तावान तुझे क्यों भुगतना पड़ेगा?”
“जय में ना जानों सरकार हमारे में ऐसा होई है।”
“मगर लौंडा तेरा नहीं राम अवतार।।। इस हरामी रत्ती राम का है” अब्बा ने आजिज़ आकर समझाया।
” तो का हुआ सरकार।।। मेरा भाई होता है रत्ती राम कोई गीर नहीं अपना खून है”
“निरा उल्लू का पट्ठा है।” अब्बा भुना उठे।
“सरकार लौंडा बड़ा हो जावेगा अपना काम समेटेगा।”
राम अवतार ने गड़ गड़ कर समझाया। वो दो हाथ लगाएगा सो अपना बुढ़ापा तेरा हो जाएगा। नदामत से राम अवतार का सर झुक गया।
और ना जाने क्यों एक दम राम अवतार के साथ अब्बा का सरझक गया जैसे उनके ज़हन पर लाखों करोड़ों हाथ छा गए।।। ये हाथ हरामी हैं ना हलाली ,ये तो बस जीते जागते हाथ हैं जो दुनिया के चेहरे की ग़लाज़त धो रहे हैं उस के बुढ़ापे का बोझ उठा रहे हैं।
ये नन्हे मुन्हे मिट्टी में लुथड़े हुए स्याह हाथ धरती की मांग में सींदूर सजा रहे हैं۔
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