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स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती, Swami Dayanand Saraswati Jayanti, महर्षि दयानंद सरस्वती के कार्य
महर्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे. वे महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक के रूप में भी जाने जाते हैं. स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात के राजकोट जिले के काठियावाड़ क्षेत्र में टंकारा गाँव के निकट मौरवी नामक स्थान पर भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, नवमी, गुरूवार, विक्रमी संवत् 1881 (फरवरी, 1824) को साधन संपन्न एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था. मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया था. उनके पिता का नाम अंबाशकर तिवारी और माता का नाम अमृतबाई था. वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. वे तीन भाईयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे. उन्होंने मात्र पाँच वर्ष की आयु में देवनागरी लिपि का ज्ञान हासिल कर लिया था और संपूर्ण यजुर्वेद कंठस्थ कर लिया था. उन्होंने 21 वर्ष की आयु (1846) में सन्यासी जीवन का चुनाव किया और अपने घर से विदा ले लिया. उनके गुरु विरजानंद थे. आज महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती (Swami Dayanand Saraswati Jayanti) पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनके द्वारा किए गए खास कार्यो के बारे में.

1. आर्य समाज की स्थापना, Arya Samaj Ki Sthapna In Hindi
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सन् 1875 में 10 अप्रैल गुड़ी पड़वा के दिन मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी. 1892-1893 ई. में आर्य समाज में दो फाड़ हो गई. फूट के बाद बने दो दलों में से एक ने पाश्चात्य शिक्षा का समर्थन किया. इस दल में लाला हंसराज और लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे. इन्होंने दयानन्द एंग्लो-वैदिक कॉलेज की स्थापना की. इसी प्रकार दूसरे दल ने पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया जिसके परिणामस्वरूप विरोधी दल के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी ने 1902 ई. में हरिद्वार में एक गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की. इस संस्था में वैदिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से दी जाती थी. इससे स्वामी श्रद्धानंद, लेखाराम और मुंशी राम आदि जुड़े थे.

2. शुद्धि आंदोलन, Shuddhi Andolan, Shuddhi Movement In Hindi
आर्य समाज ने शुद्धि आंदोलन को जन्म दिया। शुद्धि से अभिप्राय उस संस्कार से है, जिसमें गैर-हिन्दुओं, अछूतों, दलित वर्गों तथा ईसाई व मुसलमान बनाये हुए हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में स्वीकार कर लिया जाता था। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया. दयानंद सरस्वती द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन के अंतर्गत उन लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में आने का मौका मिला जिन्होंने किसी कारणवश इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. आज भी यदि कोई ईसाई या मुस्लिम पुन: अपने पूर्वजों के धर्म में आना चाहता है तो उसके लिए आर्य समाज के दरवाजे खुले हैं जहां किसी भी प्रकार का जातिवाद, बहुदेववाद, मूर्तिपूजा आदि नहीं है. शायद इसीलिए एनी बेसेंट ने कहा था कि स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि भारत भारतीयों के लिए है.

3. स्वतंत्रता आंदोलन, Swatantrata Andolan In Hindi
कहा जाता है कि 1857 में स्वतंत्रता-संग्राम में भी स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वह सदैव मार्गदर्शन का काम करता रहेगा. स्वामी दयानंद जी का कहना था कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं होता. दयानंद सरस्वती जी ने अंग्रेजों के खिलाफ कई अभियान चलाए भारत, भारतीयों का है उन्हीं में से एक आंदोनल था. उन्होंने अपने प्रवचनों के माध्यम से भारतवासियों को राष्ट्रीयता का उपदेश दिया और भारतीयों को देश पर मर मिटने के लिए प्रेरित करते रहे. यही कारण था कि अंग्रेज उनसे नाराज हो गए थे.

4. सत्यार्थ प्रकाश, Satyarth Prakash In Hindi
आर्य समाज के अनुसार ईश्वर एक ही है जिसे ब्रह्म कहा गया है. सभी हिन्दुओं को उस एक ब्रह्म को ही मानना चाहिए. देवी और देवताओं की पूजा नहीं करना चाहिए. स्वामीजी ने अपने उपदेशों का प्रचार आगरा से प्रारम्भ किया तथा झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए पाखण्ड खण्डनी पताका लहराई. स्वामी जी के विचारों का संकलन इनकी कृति सत्यार्थ प्रकाश में मिलता है, जिसकी रचना स्वामी जी ने हिन्दी में की थी. दयानंद जी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हुए पुनः वेदों की ओर चलो का नारा दिया. सत्यार्थ प्रकाश में चौदह अध्याय हैं. स्वामी दयानंद सरस्वती की इस रचना (सन 1875) का मुख्य प्रयोजन सत्य को सत्य और मिथ्या को मिथ्या ही प्रतिपादन करना है.
सत्यार्थ प्रकाश की रचना कब और किसने की थी
आर्य समाज का प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश है, सत्यार्थ प्रकाश की रचना महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने 1875 ई में हिन्दी में की थी। ग्रन्थ की रचना का कार्य महर्षि दयानन्द सरस्वती ने उदयपुर में पूरा किया.

5. सुधार आंदोलन, Sudhar Andolan
भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए 1876 में हरिद्वार के कुंभ मेले के अवसर पर पाखण्डखंडिनी पताका फहराकर पोंगा-पंथियों को चुनौती दी थी. आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है. इस समाज का उद्देश्य वैदिक धर्म को पुन: स्थापित कर संपूर्ण हिन्दू समाज को एकसूत्र में बांधना है. जातिप्रथा, छुआछूत, अंधभक्ति, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि के सख्त खिलाफ है आर्य समाज. आर्य समाज के लोग पुराणों की धारणा को नहीं मानते हैं और एकेश्‍वरवाद में विश्वास करते हैं.

6. साहित्यिक एवं शैक्षणिक सुधार के कार्य
स्वामी दयानंद सरस्वती ने तथा उनके अनुयायियों एवं उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने साहित्यिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये. स्वामी दयानंद ने अपने ग्रंथ हिन्दी में लिखकर राष्ट्र-भाषा के विकास में योगदान दिया. स्वामी दयानंद संस्कृत के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रसार करना था, अतः उसने प्राचीन आश्रम व्यवस्था को पुनः स्थापित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया. उसने शिक्षा की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली को प्रचलित किया, जहाँ विद्यार्थी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गुरु के आश्रम में विद्या – अध्ययन कर सकें. आर्य समाज ने ही मैकाले की माया से मुग्ध भारतीयों की मोह -निद्रा को भंग किया. उस समय हिन्दुओं में नारी-शिक्षा के विरुद्ध वातावरण व्याप्त था तथा स्त्रियों को पढाना समाज में अनुचित माना जाता था और वेदों को पढना-पढाना स्त्रियों के लिए वर्जित था. स्त्रियों में कठोर पर्दा-प्रथा भी स्त्रियों की शिक्षा में बाधक थी.

स्वामी दयानंद सरस्वती ने तथा उनके अनुयायियों एवं उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने साहित्यिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये. स्वामी दयानंद ने अपने ग्रंथ हिन्दी में लिखकर राष्ट्र-भाषा के विकास में योगदान दिया. स्वामी दयानंद संस्कृत के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रसार करना था, अतः उसने प्राचीन आश्रम व्यवस्था को पुनः स्थापित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया. उसने शिक्षा की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली को प्रचलित किया, जहाँ विद्यार्थी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गुरु के आश्रम में विद्या – अध्ययन कर सकें. आर्य समाज ने ही मैकाले की माया से मुग्ध भारतीयों की मोह -निद्रा को भंग किया. उस समय हिन्दुओं में नारी-शिक्षा के विरुद्ध वातावरण व्याप्त था तथा स्त्रियों को पढाना समाज में अनुचित माना जाता था और वेदों को पढना-पढाना स्त्रियों के लिए वर्जित था. स्त्रियों में कठोर पर्दा-प्रथा भी स्त्रियों की शिक्षा में बाधक थी.

7. राष्ट्रीय सुधार के कार्य, Rastriya Sudhar Ke Karya
भारतवासियों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने में भी आर्य समाज का महत्त्वपूर्ण जोगदारन रहा है. आर्य समाज द्वारा किये गये सामाजिक और धार्मिक सुधारों का परिणाम यह हुआ कि भारतीयों में परोक्ष रूप से आत्मविश्वास और स्वाभिमान का विकास हुआ. भारतीयों में आत्मविश्वास और स्वावलंबन का विकास अंग्रेज प्रशासकों को कैसे पसंद आ सकता था. अतः कुछ अंग्रेज लेखकों,अधिकारियों एवं ईसाई धर्म-प्रचारकों ने आर्य समाज के संबंध में उल्टे-सीधे प्रचार किये. वेलेण्टाइन शिरोल ने बताया कि आर्य समाज का उद्देश्य सुधार की अपेक्षा हिन्दू धर्म को विदेशी प्रभाव से मुक्त करना था. शिरोल के इन आरोपों का प्रत्युतर लाला लाजपतराय ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ द आर्य समाज में बङे प्रभावशाली ढंग से दिया है.

वस्तुतः आर्य समाज ने भारत के प्राचीन गौरव की चर्चा करते हुए स्वावलंबन के विकास को प्रोत्साहन दिया. इससे राष्ट्रीयता और स्वराष्ट्र प्रेम की भावना को बल मिला. स्वामी दयानंद सरस्वती के एक जीवनी लेखक ने लिखा है कि दयानंद का एक मुख्य लक्ष्य राजनीतिक संवतंत्रता था. वास्तव में वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया. वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा विदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया. वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा स्वीकार किया.

दयानंद ने वेदकालीन भारत को इसलिए गौरवमय बताया कि उस समय भारत में स्वराज्य था. बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपतराय, गोपालकृष्ण गोखले आदि जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया, आर्य समाज से प्रभावित थे. आर्य समाज ने परस्पर अभिवादन करने हेतु विख्यात नमस्ते शब्द का प्रचलन किया, जो आज न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है.

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु के बाद उनके आंदोलन के विकास को धक्का लगा,क्योंकि कुछ विषयों पर मतभेद हो जाने के कारण 1892 में आर्य समाजियों के दो दल बन गये,किन्तु प्रत्येक दल ने अपनी पद्धति एवं विचारधारा के आधार पर इस आंदोलन को शक्तिशाली बनाया. लाला हंसराज के नेतृत्व में वैदिक सिद्धांतों के साथ पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार किया गया, तो महात्मा मुंशीराम ने हरिद्वार के पास गुरुकुल कांगङी की स्थापना की. यह देश का पहला विश्वविद्यालय था, जहाँ राष्ट्र भाषा हिन्दी के माध्यम से उच्च शिक्षा सफलतापूर्वक दी गई. महात्मा मुंशीराम ही आगे चलकर श्रद्धानंद के नाम से विख्यात हुए. उन्होंने आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का अथक प्रयास किया.

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