23rd March Shaheed Diwas

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शहीद दिवस के बारे में, शहीद दिवस क्या है – Shahid Diwas Kab Manaya Jata Hai
देश के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले बहादुर शहीदों को सम्मानित करने के लिए हर साल शहीद दिवस (Martyrs Day) मनाया जाता है. भारत में शहीद दिवस या Martyrs Day 30 जनवरी, 23 मार्च, 21 अक्टूबर, 17 नवम्बर, 19 नवम्बर तथा 27 मई को भी मनाया जाता है., लेकिन मुख्य रूप से शहीद की 2 तिथियां देश भर में अधिक जानी जाती हैं और मनाई जाती हैं. पहला शहीद दिवस, जिसे सर्वोदय दिवस या शहीद दिवस के रूप में भी जाना जाता है, पूरे भारत में 30 जनवरी को मनाया जाता है, जबकि दूसरा शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है.

कब-कब और क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस – भारत में कई तिथियाँ शहीद दिवस के रूप में मनायी जातीं हैं, जिनमें 30 जनवरी, 23 मार्च, 21 अक्टूबर, 17 नवम्बर, 19 नवम्बर तथा 27 मई मुख्य हैं. लेकिन हर दिन अलग-अलग बलिदानों के कारण शहीद दिवस मनाया जाता है.

  • 30 जनवरी – 30 जनवरी को गांधीजी की नाथुराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसीलिए इस दिन को भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है.
  • 23 मार्च – 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.
  • 13 जुलाई- जम्मू-कश्मीर में 22 लोगों की मौत को याद करने के लिए इसे शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. 13 जुलाई, 1931 को, शाही सैनिकों द्वारा कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के निकट प्रदर्शन करते हुए लोगों की हत्या कर दी गई थी.
  • 17 नवंबर- इस दिन को ओडिशा में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसे लाला लाजपत रे की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है, जिसे पंजाब का शेर भी कहा जाता है. उन्होंने ब्रिटिशों से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • 19 नवम्बर – 19 नवम्बर को रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिन के दिन भी शहीद दिवस मनाया जाता हैं.

23 मार्च को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस? Kyu Manaya Jata Hai Shaheed Diwas In Hindi
हमारे देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीनों नायक- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च 1931 को 7:23 बजे सायंकाल को ही फांसी लगा दी थी. इतनी कम उम्र में इस बहादुरी के साथ देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले इन शहीदों की पुण्यतिथि पर प्रतिवर्ष इन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है. ये तीनों ही भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं. भारत के इन नवयुवकों ने बापू से अलग रास्ता अपनाया था लेकिन यह देश के कल्याण के लिए था.

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी क्यों हुई थी? 
भगतसिंह हमेशा चाहते थे कि कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे. इसलिए योजना बनाकर भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था. दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों की अंग्रेज़ी हुकूमत को हिला देने वाली घटना की वजह से हुई. 8 अप्रैल 1929 के दिन चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया. दरअसल जैसे ही बिल संबंधी घोषणा हुई वैसे ही भगतसिंह ने अपने साथियों के साथ केन्द्रीय विधायी सभा में इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए बम फेंका. उस बम के साथ उन्होंने कुछ पर्चे भी फेंके, जिसमें लिखा था- आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचार को नहीं. बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है.

इस घटना के बाद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की गिरफ्तारी हुई और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में शामिल होने के कारण उनपर देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चलाया गया. अदालती आदेश के मुताबिक़ भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को सुबह क़रीब 8 बजे फाँसी लगाई जानी थी. लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च, 1931 को ही इन तीनों को देर शाम क़रीब 7:33 बजे फाँसी लगा दी और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात सतलुज नदी के किनारे जला दिए गए.

भगतसिंह – संक्षिप्त परिचय (Bhagat Singh Short Introduction)
शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 बजे उन्हें फांसी दे दी गई थी. जब भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया उस समय भगत सिंह महज 23 साल के थे. लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार बहुत व्यापक और आला के दर्जे के थे. न केवल उनके विचारों ने लाखों भारतीय युवाओं को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया, बल्कि आज भी उनके विचार युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं. इंकलाब का नारा बुलंद करने वाले भगत सिंह अपने आखिरी समय में भले ही अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में जकड़े थे लेकिन उनके विचार आजाद थे वे कहते थे कि बेहतर जिंदगी सिर्फ अपने तरीकों से जी जा सकती हैं. यह जिंदगी आपकी है और आपको तय करना है कि आपको जीवन में क्या करना है. भगत सिंह कहा करते थे, मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है और मेरी गर्मी से ही राख का हर एक कण गतिमान हैं.

शहीद सुखदेव – संक्षिप्त परिचय (Sukhdev Short Introduction)
सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था. का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर में हुआ था, यह इलाका अब पाकिस्तान में है. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे. भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में आसपास ही रहते थे, इन दोनों के परिवारों में गहरी दोस्ती थी. दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे. सुखदेव थापर ने लाला लाजपत राय का बदला लिया था. इन्होने भगत सिंह को मार्ग दर्शन दिखाया था. इन्होने ही लाला लाजपत राय जी से मिलकर चंद्रशेखर आजाद जी को मिलने कि इच्छा जाहिर की थी. सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव ने भगतसिंह और राजगुरु का साथ दिया था. सुखदेव को भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था. इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे. दोनों एक ही वर्ष पंजाब में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए. इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र २३वर्ष की आयु में शहीद हो गये.

शहीद राजगुरु – संक्षिप्त परिचय (Rajguru Short Introduction)
शहीद राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था. उनका जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में हुआ था. 6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे. वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ. वे चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये. आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था. पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे. शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे. पुलिस की बर्बर लाठी चार्ज के कारण स्वतंत्रता संग्राम के एक बड़े नेता लाला लाजपत राय का निधन हो गया था, उनकी मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद को गिरफ्तार करवा लिया था. इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी.

कैसे मनाया जाता है शहीद दिवस , Kaise Manaya Jata Hai Shaheed Diwas
शहीद दिवस (23 मार्च) मौके पर पूरा देश शहीदों की कुर्बानी को याद करता है और उन्हें नमन करता है. देश के गणमान्य लोग एक साथ इकट्ठा होकर शहीदों की प्रतिमाओं पर फूल चढ़ाते हैं. वहीं, देश के सशस्त्र बल के जवान शहीदों को सम्मानजनक सलामी देते हैं. इसके अलावा, स्कूल-कॉलेज में भी इस उपलक्ष्य में वाद-विवाद, भाषण, कविता-पाठ और निबंध प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है. इसके अलावा शहीद दिवस (30 जनवरी) के दिन भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री आदि दिल्ली के राजघाट पर बापू की समाधि पर फूलों की माला चढ़ाकर व सैन्य बलों द्वारा सलामी देकर श्रद्धाजलि देते हैं. इसके उपरांत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अन्य शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन धारण करते हैं.

शहीद दिवस का महत्व , Shaheed Diwas ka Mahatva, Importance of Shaheed Diwas In Hindi
देश को आजादी कितने साल संघर्ष करने के बाद मिली, इस बात का अंदाजा शायद ही वर्तमान समय के लोगों को हो. ऐसे में शहीद दिवस जैसे मौकों को सेलिब्रेट करके लोगों में जागरुकता पैदा होती है. इस दिन को मनाकर हम न केवल शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं बल्कि आज की पीढ़ी को उन शहीदों के जीवन और बलिदानों से परिचित भी कराते हैं. आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जान की परवाह तक नहीं की, इतने मुश्किलों से मिली इस आजादी के मोल को समझने के लिए भी इस दिन को मनाना जरूरी है.

शहीद दिवस के नारे, Shaheed Diwas Ke Naare
1- शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का बाकी यही निशां होगा.
2- खून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्किल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
3- मिटा दिया है वजूद उनका जो भी इनसे भिड़ा है, देश की रक्षा का संकल्प लिए जो जवान सरहद पर खड़ा है.
4- अपनी आज़ादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं, सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं.
5- सैकड़ो परिंदे आसमान पर आज नज़र आने लगे, शहीदो ने दिखाई है राह उन्हें आजादी से उड़ने की.
6- वतन की मोहब्बत में खुद को तपाये बैठे है, मरेंगे वतन के लिए शर्त मौत से लगाये बैठे हैं.

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