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प्राचीनकाल में एक हिरण्‍यकश्‍यप नाम का राजा था, वह काफी बलशाली असुर था. उसको अपनी शक्तियों का भी खूब गुमान था. उसका यह अभिमान इस कदर बढ़ गया था कि उसने संपूर्ण प्रजा को उसे भगवान मानकर पूजा करने का आदेश दे डाला. लेकिन उसका बेटा प्रह्लााद नारायण का परम भक्‍त था. वह हर समय श्री हर‍ि-श्री हरि का नाम जपता रहता था. हिरण्‍यकश्‍यप को इससे काफी समस्‍या थी. कई बार उसे खुद समझाया तो कई बार अपनी सभा के मंत्रिमंडल को भेजा. जब भक्त प्रह्लााद नही माना तो परेशान हिरण्यकश्‍यप ने उससे छुटकारा पाने के लिए उसे नदी में डुबोया, पहाड़ से गिरवाया किन्तु उसका बाल भी बांका नहीं हुआ और वह तो बस हरि का भक्ति में ही लीन रहा. पिता के बहुत समझाने के बाद भी जब पुत्र ने श्री विष्णु जी की पूजा करनी बन्द नहीं कि तो हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को दण्ड देने के लिए दूसरी ही युक्ति निकाली.

हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलवाया. होलिका अग्निदेव की उपासक थी. अग्निदेव से इन्हें वरदान में ऐसा वस्त्र मिला था जिसे धारण करने के बाद अग्नि उन्हें जला नहीं सकती थी. बस इसी बात के चलते हिरण्‍यकश्‍यप ने उन्‍हें यह आदेश दिया कि वह उनके पुत्र प्रह्लाद यानी कि होलिका के भतीजे को लेकर हवन कुंड में बैठें. भाई के इस आदेश का पालन करने के लिए वह प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गईं. इसके बाद ईश्‍वर की कृपा से इतनी तेज हवा चली कि वह वस्‍त्र होलिका के शरीर से उड़कर भक्‍त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया. इससे प्रहलाद तो बच गया लेकिन होलिका जलकर भस्‍म हो गईं. यह देख हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से और अधिक नाराज हुआ.

हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह वह न दिन में मर सकता है न रात में, न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में, न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी, इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नृसिंह अवतार. हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला. तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा.

इस कथा से यही धार्मिक संदेश मिलता है कि प्रह्लाद धर्म के पक्ष में था और हिरण्यकश्यप व उसकी बहन होलिका अधर्म निति से कार्य कर रहे थे. अतंत: देव कृपा से अधर्म और उसका साथ देने वालों का अंत हुआ. इस कथा से प्रत्येक व्यक्ति को यह प्ररेणा लेनी चाहिए, कि प्रह्लाद प्रेम, स्नेह, अपने देव पर आस्था, द्र्ढ निश्चय और ईश्वर पर अगाध श्रद्धा का प्रतीक है. वहीं, हिरण्यकश्यप व होलिका ईर्ष्या, द्वेष, विकार और अधर्म के प्रतीक है. होलिका दहन के पूर्व पूजन के दौरान असुर राज ह‍िरण्‍यकश्‍यप और भक्‍तपरायण प्रह्लााद की यह कथा पढ़ने का विधान है. मान्‍यता है कि जो भी जातक इस कथा को पूरी श्रद्धा से पढ़ता या सुनता है. उसपर श्री हरि विष्‍णु की कृपा बनी रहती है. उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं. साथ ही जीवन की सभी परेशान‍ियां भी दूर हो जाती हैं. सुख-समृद्धि का वास होता है.

इलोजी-होलिका की प्रेम कहानी
हम लोग होलिका को एक खलनायिका के रूप में जानते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश में होलिका के प्रेम की व्यथा जन-जन में प्रचलित है. इस कथा को आधार मानें तो होलिका एक बेबस प्रेयसी नजर आती है जिसने प्रिय से मिलन की खातिर मौत को गले लगा लिया.
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलोजी से तय हुआ था और विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली. इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था. उसकी महात्वाकांक्षा ने बेटे की बलि को स्वीकार कर लिया. बहन होलिका के सामने जब उसने यह प्रस्ताव रखा तो होलिका ने इंकार कर दिया. फिर हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी. बेबस होकर होलिका ने भाई की बात मान ली. और प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने की बात स्वीकार कर ली. वह अग्नि की उपासक थी और अग्नि का उसे भय नहीं था.
उसी दिन होलिका के विवाह की तिथि भी थी. इन सब बातों से बेखबर इलोजी बारात लेकर आ रहे थे और होलिका प्रहलाद को जलाने की कोशिश में स्वयं जलकर भस्म हो गई. जब इलोजी बारात लेकर पहुंचे तब तक होलिका की देह खाक हो चुकी थी. इलोजी यह सब सहन नहीं कर पाए और उन्होंने भी हवन में कूद लगा दी. तब तक आग बुझ चुकी थी. अपना संतुलन खोकर वे राख और लकड़ियां लोगों पर फेंकने लगे. उसी हालत में बावले से होकर उन्होंने जीवन काटा. होलिका-इलोजी की प्रेम कहानी आज भी हिमाचल प्रदेश के लोग याद करते हैं.

होलिका से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब
सवाल – होलिका कौन थी?
जवाब – होलिका हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नामक राजा की बहन और प्रह्लाद नामक विष्णु भक्त की बुआ थी. जिसका जन्म जनपद- कासगंज के सोरों शूकरक्षेत्र नामक स्थान पर हुआ था.
सवाल – होलिका के पति का नाम क्या था?
जवाब – होलिका के पति का नाम इलोजी बताया जाता है. हालाकि दोनो की शादी नही हुई थी.
सवाल – होलिका कहां जली थी? भगवान नृसिंह कहां प्रकट हुए थे
जवाब – पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में आज भी वह स्‍थान मौजूद हैं, जहां असली में होलिका भक्‍त प्रह्लाद को लेकर जली थी. मान्‍यता है कि इसी स्‍थान पर होलिका अपने भाई हिरण्‍यकश्‍यप के कहने पर भक्‍त प्रह्लाद को लेकर जलती चिता पर बैठ गई थी. दावा किया जाता है कि यहीं पर वह खंभा भी मौजूद जहां से भगवान विष्‍णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे और हिरण्‍यकश्‍यप का वध किया था.
सवाल – होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?
जवाब – होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है.

सवाल –  हिरण्यकश्यप की पत्नी का क्या नाम था?
जवाब –  हिरण्यकश्यप की पत्नी का नाम कयाधु था
सवाल – हिरण्यकश्यप की माता का नाम क्या था?
जवाब – हिरण्यकश्यप की माता का नाम दिति था. बता दें कि कश्यप ऋषि की अनेक पत्निया थी, उनमे से एक दिति थी. दिति के दो पुत्र थे हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष.
सवाल – हिरण्यकश्यप के बेटे का क्या नाम था?
जवाब – हिरण्यकशिपु ने कयाधु नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे पांच पुत्र – प्रह्लाद, संह्लाद, आह्लाद, शिवि एवं वाष्कल तथा एक पुत्री सिंहिका की प्राप्ति हुई. सिंहिका ने विप्रचित्ति दानव से विवाह किया जिससे उसे स्वर्भानु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई.
सवाल – हिरण्यकश्यप को क्या वरदान मिला था?
जवाब – हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह न तो दिन में मरेगा या रात में, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न घर के भीतर मरेगा और न बाहर. ऐसी विचित्र और कठिन शर्तों के साथ मिला वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया, क्योंकि वरदान के साथ उसने भगवान से विवेक नहीं मांगा.

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