Vaibhav Laxmi Vrat Vidhi

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लक्ष्मी पूजा, Vaibhav Lakshmi Pooja Vidhi

हिन्दू धर्म में शुक्रवार के दिन ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ रखा जाता है. इस दिन नियम पूर्वक पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि, धन-वैभव और एश्वर्य की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि यदि लाखों कोशिशो के बाद भी कोई काम अटका हुआ है, लगातार धन का नुकसान हो रहा है, कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं या फिर विद्यार्थियों को कड़ी मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो उन्हें शुक्रवार को वैभव लक्ष्‍मी व्रत करना चाहिए. इसे करने से उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी. महिलाएं, पुरुष सभी इस व्रत को कर सकते हैं. वैभव लक्ष्‍मी की कृपा से सभी मनोकामना पूरी होती है. अगर आप भी ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ करने की सोच रहे हैं लेकिन व्रत कब और कैसे करना है यह मालूम नहीं है तो ये लेख खास आपके लिए ही है. आइए जानते हैं ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ पूजा विधि, नियम, कथा, आरती और उद्यापन विधि के बारे में संपूर्ण जानकारी…

कितनी संख्या में करें वैभव लक्ष्मी का व्रत? (Kitni sankhya me kare Vaibhav Laxmi Vrat)
इस व्रत को 11 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए. अगर आप घर से बाहर जा रही हैं या किसी कारणवश व्रत नहीं कर पाईं तो उसके अगले शुक्रवार को व्रत करें. और उसी व्रत की गिनती करें. इस व्रत का पालन अपने घर पर ही करें.
कब से शुरू करें वैभव लक्ष्मी व्रत (Vaibhav Laxmi Vrat kab se shuru kare? )
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से इस व्रत की शुरुआत करें.
वैभव लक्ष्मी व्रत फल और महत्‍व (Vaibhav Laxmi Vrat fal)
इस व्रत को करने से जीवन में चली आ रही धन संबंधी तंगी दूर होती है. धन और सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में लक्ष्मी का स्थिर वास बना रहता है. व्‍यापार में मुनाफे की इच्‍छा रखने वाले लोगों के लिए ये व्रत विशेष रूप से फलदायी माना गया है. व्रत के दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा के साथ श्रीयंत्र की पूजा का भी विधान है.
वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम (Vaibhav Laxmi Vrat ke Niyam )
दिन के समय सोएं नहीं. न ही दैनिक कार्य त्‍यागें. आलस्‍य दूर रखें. आलसी लोगों से मां लक्ष्‍मी दूर रहती हैं. व्रत के दिन सुबह उठकर घर की सफाई करें. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता, वहां देवी लक्ष्मी निवास नहीं करतीं. किसी की भी निंदा या चुगली न करें, दिन भर मां वैभव लक्ष्मी के नाम का जाप करें.

वैभव लक्ष्मी व्रत पूजा विधि (Vaibhav Laxmi Vrat Puja Vidhi in Hindi)
वैभव लक्ष्मी व्रत में शुक्रवार को प्रातःकाल उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पहले शुक्रवार को हाथ में सफेद फूल लेकर व्रत का संकल्प लें. पुरे दिन मां का ध्यान कर उपवास करें. शाम के समय हो सके तो व्रती एक बार फिर से स्नान कर साफ कपड़े पहन लें. अब पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं. इसके बाद एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. अब इस पर श्री वैभव लक्ष्मी की तस्वीर और श्री यंत्र स्थापित करें, तस्वीर या श्री यंत्र के सामने चौकी पर चावल का ढ़ेर बनाकर उसपर जल से भरा तांबे का कलश रख दें. कलश के मुख पर एक कटोरी रखें और उस कटोरा में सोने या चांदी का कोई आभूषण या सिक्का डाल दें. अब कटोरी में रखें इस गहने या रुपये पर हल्दी, कुमकुम और चावल चढ़ाएं. मां लक्ष्मी के सामने दीपक जलाएं, सफेद फूल और सफेद चंदन से पूजा करें. मां लक्ष्मी को खीर या सफेद मीठाई का भोग लगाएं. मां लक्ष्मी के आठों स्वरूपों का नाम लें. इसके बाद लक्ष्मी मंत्र का जाप करें या फिर लक्ष्मी स्तवन का पाठ करें. जाप के बाद वैभवलक्ष्मी व्रत कथा पढ़ें और आरती करें. अंत में प्रसाद ग्रहण करके घर के मुख्य द्ववार पर एक दीप जला दें. पूजा के बाद शाम में एक समय भोजन करें.


लक्ष्मी स्तवन का पाठ

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

संस्कृत भाषा या व्याकरण की जानकारी के अभाव में आप इसकी हिन्दी अर्थ का भी पाठ कर लक्ष्मी की प्रसन्नता से दरिद्रता दूर कर सकते हैं.
इस लक्ष्मी स्तवन का सरल अर्थ है – लाल कमल पर रहने वाली, अद्भुत आभा और कांतिवाली, असह्य तेजवाली, रक्त की भाति लाल रंग वस्त्र धारण करने वाली, मन को आनंदित करने वाली, समुद्रमंथन से प्रकट हुईं विष्णु भगवान की पत्नी, भगवान विष्णु को अति प्रिय, कमल से जन्मी है और अतिशय पूज्य मां लक्ष्मी आप मेरी रक्षा करें और मनोरथ पूरे कर जीवन वैभव और ऐश्वर्य से भर दे.

मां लक्ष्मी के आठों स्वरूपों का नाम लें
श्री धनलक्ष्मी व वैभव लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, अधिलक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, ऐश्‍वर्यलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी. इसके पश्चात मंत्र बोलना चाहिए.


वैभव लक्ष्मी मंत्र का जाप, Vaibhav Laxmi Mantra

या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।

वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा (Vaibhav Laxmi Vrat katha )

किसी शहर में अनेक लोग रहते थे. सभी अपने-अपने कामों में लगे रहते थे. किसी को किसी की परवाह नहीं थी. भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए. शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं. शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे. इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे.
ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी. शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी. उनका पति भी विवेकी और सुशील था. शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे. शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे.

देखते ही देखते समय बदल गया. शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा. अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा. इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया. यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी. शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया. दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई. इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गंवा दिया.
शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी. वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी. अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी. शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी. उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था. उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था. उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था. उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई. शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया. शीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई. घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था. अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया.

मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं.’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी. फिर मांजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई.’
मांजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया. उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी. मांजी ने कहा- ‘बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं. धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता.’
मांजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई.
कहानी सुनकर माँजी ने कहा- ‘कर्म की गति न्यारी होती है. हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं. इसलिए तू चिंता मत कर. अब तू कर्म भुगत चुकी है. अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे. तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त है. माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं. वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं. इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर. इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा.’

शीला के पूछने पर मांजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई. मांजी ने कहा- ‘बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है. उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है. यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है. वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है.’
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था. वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं.
दूसरे दिन शुक्रवार था. सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया. आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ. यह प्रसाद पहले पति को खिलाया. प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया. उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं. शीला को बहुत आनंद हुआ. उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई.

शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया. इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं. फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो. हमारा सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना. कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना. जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना. सभी को सुखी करना. हे माँ! आपकी महिमा अपार है.’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया.
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा. उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए. घर में धन की बाढ़ सी आ गई. घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई. ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं.


वैभव लक्ष्मी की आरती, लक्ष्मी माता की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या खाना चाहिए, Vaibhav Laxmi Vrat Me Kya Khaaye

नमक, तेल, लहसून, प्याज न खाएं. व्रत के दौरान खट्टी चीजों का सेवन न करें. व्रत के दौरान शुद्ध और सात्विक भोजन का ही सेवन करें. एक समय फलाहार खाएं. मूंगफली, सिंहाड़े के आटे का हलवा. सफेद फल व सफेद मीठाई खाएं. साबू दाने की खीर भी खा सकती हैं. व्रत के दौरान अपने भोजन में चावल की खीर अवश्य शामिल करें.

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि, Vaibhav Laxmi Vrat Udyapan Vidhi

11 या 21 शुक्रवार ‍तक व्रत करने के बाद आखिरी दिन यानी 11वें या 21वें शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करें. आखिरी शुक्रवार को प्रसाद के लिए खी‍र बनाए. हर शुक्रवार की तरह आखिरी शुक्रवार को भी वैभव लक्ष्मी की पूजा करें. पूजन के बाद माँ के सामने एक नारियल फोड़ें. इसके बाद कम से कम 7, 11, 21 या 51 कुंआरी कन्याओं या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक लगाकर मां वैभवलक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक और खीर का प्रसाद दें. इसके बाद माँ लक्ष्मीजी को प्रणाम कर प्रार्थना करें- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ पूरे विधिवत आज पूर्ण किया है. हे माँ! हमारी (जो मनोकामना हो वह बोले) मनोकामना पूर्ण करों. विपत्ति दूर करो, हम सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना. कुँआरी लड़की को मनभावन पति देना. जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना. सभी को सुखी करना. हे माँ! आपकी महिमा अपार है.’ आपकी जय हो! ऐसा बोलकर पूरी श्रद्धापूर्वक मां का आशीर्वाद लें.

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