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सावन सोमवार व्रत की पूजा विधि, Sawan Somvar Vrat Vidhi In Hindi
सावन के महीने में सोमवार व्रत का विशेष महत्व होता है। इस दिन विधि विधान से पूजा कर भगवान शिव को प्रसन्न करने का शुभ अवसर होता है। सावन के सोमवार का व्रत करने से संतान सुख, धन, निरोगी काया और मनोवांछित जीवन साथी पाने की मनोकामना पूर्ण होती है, साथ ही दाम्पत्य जीवन के दोष और अकाल मृत्यु जैसे संकट से भी मुक्ति मिलती है। ऐसे में अगर आप भी सावन के सोमवार के दिन व्रत रखने जा रही हैं, तो पहले जान लें कि सावन में सोमवार को ही क्यों रखा जाता है व्रत?

सावन में सोमवार को ही क्यों रखा जाता है व्रत?
पुराणों के अनुसार शिव भक्ति के लिए सोमवार का दिन खास माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति सोमवार के दिन शिव की आराधना पूरी निष्ठा के साथ करता है भोले बाबा उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. चंद्रमा का दूसरा नाम सोम है. जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है. यही वजह है कि सोमवार को भोलेबाबा की दिन माना जाता है. आइए जानते हैं सोमवार के दिन शिव आराधना से जुड़ी ऐसी ही कुछ और धार्मिक मान्यताएं.

सोम का पहला अर्थ है चंद्रमा.जो हर व्यक्ति के मन का प्रतीक माना जाता है. जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है. हर मनुष्य के मन की चेतनता और चंचलता को पकड़कर भगवान शिव ने अपने वश में कर रखा है. भक्त अपनी भक्ती से भोलेबाबा को प्रसन्न करके उस परमात्मा तक पहुंच सकें इसलिए महादेव की उपासना सोमवार को की जाती है. सोम का एक और अर्थ होता है. जिसका मतलब सौम्य. हिंदू धर्म में भगवान शिव को भी बेहद सौम्य देवता के रूप में देखा जाता है. उनकी सरलता और सहजता के कारण उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ कहकर बुलाते हैं. सोम का तीसरा अर्थ है सोमरस. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोमरस का सेवन देवता किया करते थे. जिसका पान करने से उन्हें आरोग्य की प्राप्ति होती थी. जिस प्रकार सोमरस को अमृत के समान समझा जाता है ठीक उसी तरह शिव मनुष्यों के लिए कल्याणकारी बने रहे इसलिए सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है. आइये जानते हैं सोमवार व्रत की पूजा विधि, भोजन, कथा, आरती के बारे में संपूर्ण जानकारी।

सावन के सोमवार व्रत की पूजा विधि, Sawan Somvar Vrat Vidhi In Hindi
सोमवार व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। साफ कपड़े पहनेकर पूजा घर में जाएं। वहां भगवान शिव की मूर्ति, तस्वीर या शिवलिंग को गंगा जल से धोकर साफ कर लें। फिर तांबे के लोटे या अन्य पात्र में जल भरकर उसमें गंगा जल मिला लें। फिर भोलेनाथ का जलाभिषेक करें और उनको सफेद फूल, अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, धूप आदि अर्पित करें। पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें-
‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये’
इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें-
‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥
ॐ नमः शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ॐ शिवायै’ नमः से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें।
दिनभर फलहार करते हुए उत्तम आचरण करें, मिथ्या न बोलें। शाम के समय शिव पुराण का पाठ करें अर्थात् सोमवार व्रत कथा सुनें। और आरती के बाद प्रसाद ग्रहण कर भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

सावन के सोमवार व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
कैसा आटा या अनाज है बेहतर
1- कुट्टू का आटा: सावन सोमवार व्रत में कुट्टू का आटा ज्यादा इस्तेमाल होता है. इससे पराठा, पूड़ी, कचौड़ी, हलवा, रोटी, चीला और पकौड़े बनाए जा सकते हैं.
2- सिंघाड़े का आटा: सिंघाड़े के आटे से पराठे, पकौड़े, हलवा, चीला और बर्फी बनाई जा सकती है.
3- चौलाई: सोमवार के व्रत में चौलाई के दानों के लड्डू, चिक्की और पट्टी खाई जाती है. इसे भूनकर दूध के साथ उबालकर हेल्दी दलिया भी बनाई जा सकती है. वहीं इसके आटे से व्रत वाली पूड़ी, हलवा, पराठा भी बनाया जा सकता है.
4- समा के चावल: समा के चावल की खिचड़ी, पुलाव, और खीर बनाई जा सकती है. इसके आटे से व्रत की इडली, उत्तपम, पूड़ी, ढोकला और डोसा बनाया जा सकता है.
5- साबूदाना: व्रत में सबसे ज्यादा साबूदाने से बनी चीजें खाई जाती हैं. इसमें खिचड़ी, टिक्की, खीर तो बनती हैं लेकिन आप साबूदाना वड़ा या बड़ा बना सकते हैं. इसकी फलाहारी नमकीन भी बना सकते हैं.

कौन-कौन सी सब्जियां खाई जा सकती हैं
1- आलू: सूखे आलू, दही आलू, जीरे वाले आलू, आलू टमाटर की सब्जी, आलू चाट, आलू की टिक्की बढ़िया व्रत के पकवान हो सकते हैं.
सीताफल या कद्दू: इसकी सब्जी, पकौड़े, हलवा के अलावा इसकी खीर भी बना सकते हैं. वहीं इसे टुकड़ों में काटकर उबालकर भी खाया जाता है.
2- अरबी: सूखी अरबी, टिक्की, कटलेट के अलावा ग्रेवी वाली अरबी भी बना सकते हैं.
3- जिमीकंद: इसकी चिप्स या सब्जी बनाई जा सकती है.
4- कच्चा केला: सब्जी, चिप्स या फ्राइज, या टिक्की काफी लजीज लगती है.
5- खीरा: सलाद या रायते के रूप में खा सकते हैं. इसका जूस भी पी सकते हैं.
6- लौकी: सब्जी या हलवा और कोफ्ते बना सकते हैं.
7- टमाटरः टमाटर की सब्जी या सलाद के रूप में खा सकते हैं. जबकि पालक और गाजर सब्जी या सूप व्रत के दौरान पिया जा सकता है.
8- मौसमी फल : इस व्रत में मौसमी फल खाना चाहिए. लेकिन तरबूज या खरबूज न खाएं.

किस तरह के तेल-मसाले का इस्तेमाल होना चाहिए
व्रत में जीरा, सेंधा नमक, काली मिर्च, छोटी इलायची, लौंग, जायफल, अनारदाना, अदरक, अदरक, हरी मिर्च और धनिया का इस्तेमाल होता है. जबकि काला नमक और अमचूर पाउडर भी कुछ लोग व्रत वाले खाने में डालते हैं. इन तमाम मसालों से व्रत वाले खाने का स्वाद बढ़ जा सकता है. जबकि देसी घी, घर का बनाया मक्खन या फिर मूंगफली का तेल व्रत का खाना बनाने के लिए बढ़िया हो सकता है.

सावन सोमवार के व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए
सोमवार के व्रत में सात्विक भोजना की परंपरा चली आ रही है. साथ ही अनाज वाली चीजें नहीं खाई जाती हैं. लहसुन और प्याज, दालें, गेहूं, चावल, मैदा, बेसन, सूजी, शराब, नॉनवेज, कॉर्न, ओट्स, फ्लैक्ससीड्स, कॉफी, आइसक्रीम, हल्दी, हींग, सरसों, मेथी दाना, गरम मसाला, धनिया पाउडर, सरसों का तेल आदि चीजों से व्रत का खाना नहीं बनाना चाहिए.

सावन सोमवार व्रत के लाभ, Sawan Somvar Vrat Ke Fayde
1- सावन के सोमवार का व्रत वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों को दूर करने के लिए भी रखा जाता है.
2- कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए भी सोमवार का व्रत रखती हैं.
3- सोमवार का व्रत करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु और दुर्घटना से मुक्ति मिलती है.
4- इस व्रत को करने से रोगी व्यक्ति को निरोग काया का वरदान मिलता है.
5- संतान सुख की चाह रखने वाले व्यक्ति को सावन में रोजाना शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने से संतान सुख का योग प्रबल बनता है.

सावन के सोमवार की व्रत कथा, Sawan Somvar Vrat Katha
हिंदू धर्म में उपवास रखने का खास महत्व होता है। और हर भगवान के लिए रखे जाने वाले व्रत की कोई न कोई कथा जरूर होती है जिसके बिना उपवास पूरा नहीं माना जाता है। भगवान शिव को सोमवार का दिन प्रिय होने के कारण इस दिन भगवान शंकर की कृपा पाने के लिए सावन सोमवार व्रत रखा जाता है। विधि विधान के साथ पूजा करके व्रत कथा सुनी जाती है। माना जाता है कि सोमवार व्रत में इस कथा का सुनना बेहद जरूरी होता है क्योंकि बिना इसके व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता। जानिए क्या है सोमवार व्रत की व्रत कथा…

एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा।

कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े. रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।’

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शिव जी की आरती, Lord Shiva Aarti 
ॐ जय शिव ओंकारा 
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

श्री सोमवार की आरती
आरती करत जनक कर जोरे।
बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥
जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए।
सब भूपन के गर्व मिटाए॥
तोरि पिनाक किए दुइ खंडा।
रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥
आई सिय लिए संग सहेली।
हरषि निरख वरमाला मेली॥
गज मोतियन के चौक पुराए।
कनक कलश भरि मंगल गाए॥
कंचन थार कपूर की बाती।
सुर नर मुनि जन आए बराती॥
फिरत भांवरी बाजा बाजे।
सिया सहित रघुबीर विराजे॥
धनि-धनि राम लखन दोउ भाई।
धनि दशरथ कौशल्या माई॥
राजा दशरथ जनक विदेही।
भरत शत्रुघन परम सनेही॥
मिथिलापुर में बजत बधाई।
दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥

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