Budhashtami Vrat

बुध अष्टमी का व्रत कैसे करें, बुध अष्टमी व्रत पूजा विधि, बुधाष्टमी व्रत कथा, बुधाष्टमी पूजा मंत्र, बुधाष्टमी व्रत का महत्व, बुधाष्टमी व्रत फल, Budhashtami Vrat Puja Vidhi, Budh Ashtami Vrat Katha In Hindi, Budhashtami Puja Mantra, Budhashtami Vrat Ka Mahtva

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बुध अष्टमी/ बुधाष्टमी के बारे में
शास्त्रों में अष्टमी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. जिस बुधवार के दिन अष्टमी तिथि पड़ती है उसे बुध अष्टमी कहा जाता है. इस दिन विधिवत बुद्धदेव और सूर्य देव की पूजा अर्चना करने का विधान है. मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए बुध अष्टमी का व्रत बहुत ही फलदाई होता है. हिंदू धर्म के अनुसार जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा पूर्वक पूरे विधि विधान से बुध अष्टमी का व्रत करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मृत्यु के पश्चात नरक नहीं जाना पड़ता है. आज इस लेख में हम आपके लिए बुध अष्टमी व्रत के बारे में संपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं. यहां जानिए बुध अष्टमी व्रत पूजा विधि, व्रत का फल, बुधाष्टमी के मन्त्र, बुधाष्टमी व्रत की कथा और महत्व-

बुध अष्टमी व्रत पूजा विधि (Budhaashtami Vrat Puja Vidhi In Hindi)
1- बुधअष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त समय पर उठना चाहिए. प्रातः काल उठकर स्नान कार्य करना चाहिए. यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें. पर अगर ये संभव न हो सके तो घर पर ही अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
2- स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें.
3- अब एक कलश में गंगाजल भर कर अपने घर के पूजा कक्ष स्थापित करें. उसमे सोना छोड़ दें.
4- गणेशजी का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात् बुध ग्रह की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए.
5- बुधाष्टमी के दिन 8 प्रकार के पकवान क्रमशः मोदक, फेनी, घी का अपूप, वटक, श्वेत कसार से बने पदार्थ, सोहालक [ खांड युक्त अशोक वर्तिका ] और फल पुष्प तथा फेनी आदि को बांस के पत्तों में रखकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.
6- बुधाष्टमी के दिन बुध देव की पूजा के साथ बुधाष्टमी की कथा भी अवश्य सुननी चाहिए.
7- इस भोग को फल, फूल, धूप आदि के साथ बुध देव को चढ़ाना चाहिए. पूजा खत्म होने के पश्चात् भगवान् पर चढ़ाये गए भोग को परिवार के सभी लोगों के साथ मिलकर ग्रहण करना चाहिए.
8- कई जगहों पर बुध अष्टमी के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा का भी नियम है.
9- शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है.
10- इस दिन बुध देव के बीज मंत्र या गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ जरूर करें. गणेशजी के सरल मंत्र ओम गं ओम का अधिक से अधिक जाप करें.

बुधाष्टमी / बुध अष्टमी व्रत का फल (Budhaashtami Vrat ka Fal)
जो भी मनुष्य पूरे विधि विधान से बुध अष्टमी का व्रत करता है उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. बुध अष्टमी का व्रत करने से धन-धान्य पुत्र और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. बुध अष्टमी का व्रत करने से मनुष्य धरती पर सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग को प्राप्त होता है. मान्यता है कि इस व्रत को पूर्ण करने के लिए लगातार आठ वर्ष तक उपवास करना चाहिए. आज के दिन हरे रंग के कपड़े पहनें.

बुधाष्टमी पूजा मन्त्र (Budhaashtami Puja Mantra)
ॐ बुधाय नम: ,
ॐ सोमात्म्जाय नम: ,
ॐ दुर्बुद्धिनाशय नम: ,
ॐ सुबुद्धिप्रदाय नम : ,
ॐ ताराजाताय नम : ,
ॐ सौम्यप्ग्रहाय नम: ,
ॐ सर्व सौख्य प्रदाय नम:

बुध अष्टमी पूजा का महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार जो जातक बुद्ध अष्टमी का व्रत रखते हैं उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं. मान्यता है कि जिनकी कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए यह व्रत काफी लाभदायक होता है.  यह विजय दिलाने वाली तिथि है, इस कारण जिन भी चीजों में व्यक्ति को सफलता चाहिए वह सभी काम इस तिथि में करे तो उसे सकारात्मक फल मिल सकते हैं. यह दिन बुरे कर्मों के बंधन को दूर करता है. इस दिन लेखन कार्य, घर इत्यादि वास्तु से संबंधित काम, शिल्प निर्माण से संबंधी काम, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले काम का आरम्भ भी सफलता देने वाला होता है. धर्मराज, माँ दुर्गा और भगवान शिव की शक्ति के लिए भी बुधाष्टमी के व्रत का काफी महत्व है. इस व्रत की ऊर्जा का प्रवाह व्यक्ति को जीवन शक्ति और विपदाओं से आगे बढ़ने की क्षमता देता है.

बुधाष्टमी व्रत की कथा (Budhaashtami Vrat Ki Katha In Hindi)
विदेह राजाओ की नगरी मिथिला में निमि नामके एक राजा थे. वे शत्रुओ द्वारा लड़ाई के मैदान में मार डाले गये. उनकी स्त्री का नाम उर्मिला था. उर्मिला जब राज्य – च्युत एवं निराश्रित हो इधर उधर घुमने लगी , तब अपने बालक और कन्या को लेकर वह अवन्ति देश चली गई और वहाँ एक ब्राह्मण के घर में कार्य कर अपना निर्वाह करने लगी. वह विपत्ति से पीड़ित थी , गेहु पिसते समय वह थोड़े से गेहु चुराकर रख लेती और उसे से शुधा से पीड़ित अपने बच्चो का पालन करती. कुछ समय बाद उर्मिला का निर्धन हो गया. उर्मिला का पुत्र बड़ा हो गया , वह अवन्ति से मिथिला आया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर शासन करने लगा. उसकी बहन श्यामला विवाह योग्य हो गई थी. वह अत्यंत रूपवती थी. अवन्ति देश के राजा धर्मराज ने उसके उत्तम रूप की चर्चा सुनकर उसे अपनी रानी बना लिया.

एक दिन धर्मराज ने अपनी प्रिया श्यामला से कहा – “ वैदेहीनंदनी ! तुम और सभी कामों को तो करना , परन्तु ये सात स्थानों जिनमे तालें बंद हैं , इनमे तुम कभी मत जाना. “ श्यामला ने ‘ बहुत अच्छा ‘ कह कर पति की बात मान ली , उसके मन में कुतुहल बना रहा.
एक दिन जब धर्मराज अपने किसी कार्य में व्यस्त थे , तब श्यामला ने एक मकान का ताला खोलकर वहां देखा कि उसकी माता उर्मिला को अति भयंकर यमदूत बांध कर तप्त तेल के कडाह में बार – बार डाल रहे हैं. लज्जित होकर श्यामला ने वह कमरा बंध कर दिया , फिर दुसरा कमरा खोला तो देखा कि वहाँ भी उसकी माता को यमदूत शिला के ऊपर रखकर पिस रहें हैं और माता चिल्ला रही हैं इसी प्रकार तीसरा कमरा खोला देखा की यमदूत उसकी माता के मस्तक में किले ठोक रहे हैं ,इसी तरह चौथे में अति भयंकर श्रवान उसका भक्षण कर रहें हैं , पांचवे में लोहे के स्न्दंश उसे पीड़ित कर रहे हैं. छठे में कोल्हू के बिच ईख के समान पेरी जा रही हैं और सातवे को खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी माता को हजारो कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदि से लथपथ हो रही हैं.

यह देख कर श्यामला ने विचार किया कि मेरी माता ने ऐसा कौन – सा पाप किया , जिससे वह इस दुर्गति को प्राप्त हुई. वह सोचकर उसने सारा वृतांत अपने पति धर्मराज को बताया.
धर्मराज बोले – प्रिये ! मैंने इसलिए कहा था की ये सात ताले कभी न खोलना , नही तो तुम्हे वहां पश्चाताप होगा. तुम्हारी माता ने सन्तान के स्नेह से ब्राह्मण के खेत से गेहु चुराये थे , क्या तुम इस बात को नही जानती जों तुम इस बात को मुझसे पूछ रही हो ? यह सब उसी कर्म का फल हैं. ब्राह्मण का धन स्नेह से भी भक्षण करे तो भो सात कुल अधोगति को प्राप्त होते हैं और चुराकर खाए तो जब तक सूर्य और चन्द्रमा और तारें हैं , तबतक नरक से उद्धार नही होता. जों गेहु इसने चुराये थे , वे ही कृमि बनकर इसका भक्षण कर रहे हैं.

श्यामला ने कहा – महाराज ! मेरी माता ने जों कुछ भी पहले किया वह सब मैं जानती हूँ फिर भी अब आप कोई ऐसा उपाय बतलाये , जिससे मेरी माता का नरक से उद्दार हो जाय. इस पर धर्मराज ने कुछ समय विचार किया और कहने लगे — प्रिये ! आज से सात जन्म पूर्व ब्राह्मणी थी. उस समय तुमने अपनी सखियों के साथ जों बुधाष्टमी का व्रत किया था , यदि उसका फल तुम संकल्प पूर्वक अपनी माता को दे दो तो इस संकट से उसके मुक्ति हो जायेगी. यह सुनते ही श्यामला सी स्नानकर अपने व्रत का पुण्य फल संकल्प पूर्वक माता के लिए दान कर दिया. व्रत के फल के प्रभाव से उसकी माता भी उसी क्षण दिव्य देह धारण कर विमान में बैठकर अपने पति सहित स्वर्ग लोक की चली गई और बुध ग्रह के समीप हो गई.यह व्रत अपनी सन्तान को अपनी माता के लिए रखना चाहिये. इस व्रत को रखने से धन , धान्य , पुत्र , पौत्र , दीर्घ आयु और एश्वर्य मिलता हैं.

बुद्ध दोष दूर करने के लिए बुद्धअष्टमी के दिन करें ये उपाय 
1- अगर आप बुद्ध दोष से छुटकारा पाना चाहते हैं तो बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को मोदक का प्रसाद चढ़ाये. भगवान् गणेश को मोदक बहुत प्रिय है.
2- कुंडली से बुध दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए बुद्ध अष्टमी के दिन अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पन्न रत्न धारण करें. पन्ना रत्न धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी से सलाह जरूर लें.
3- बुधवार के दिन गाय को हरी घास खिलाने से भी भगवान् गणेश प्रसन्न होते हैं और बुध दोष का असर कम होता है.
4- बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को सिंदुर अर्पित करें.
5- बुद्ध अष्टमी के दिन स्नान करने के पश्चात् किसी मंदिर में जाकर गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं. अगर आप भगवान गणेश को दूर्वा की 11 या 21 गांठ चढ़ाते है तो इससे आपको बहुत जल्द फल प्राप्त होगा.

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