Vastu for worship

पूजा में बैठने के लिए आसन, Puja Ke Liye Aasan In Hindi, बैठने का आसन कैसा होना चाहिए, पूजा के लिए उत्तम आसन, किस तरह के आसन का प्रयोग न करें, Puja Me Baithne Ka Aasan Kaisa Hona Chahiye, Kis Trah Ka Aasan Prayog Na Kare

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पूजा में बैठने का आसन कैसा होना चाहिए, Puja Me Baithne Ka Aasan Kaisa Hona Chahiye
आप चाहे किसी भी समय या किसी भी भगवान की पूजा करें, नीचे जमीन पर आसन बिछाकर ही पूजा करनी चाहिए. लेकिन आप सोच रहे होंगे कि आखिर आसन बिछाना क्यों जरूरी है, तो बता दें कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है धरती की चुम्बकीय शक्ति यानी गुरुत्वाकर्षण शक्ति. जब कोई साधक ध्यानमग्न होकर विशेष मंत्र का जाप करता है तो उसके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है. अगर आसन बिछाया जाए तो ये ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से धरती में समाहित हो जाती है और आपको इसका कोई लाभ नहीं मिल पाता. इसलिए पूजा के दौरान आसन बिछाना जरूरी माना गया है. लेकिन आसन ऐसा होना चाहिए जो ऊर्जा का कुचालक हो. आसन के कुछ विशेष नियम भी हैं, जिनके बारे में हर किसी को जानकारी नहीं होती. ऐसे में कोई भी आसन किसी भी पूजा में इस्तेमाल कर लेते हैं. लेकिन वास्तव में पूजा के लिए कुछ खास आसनों को उपर्युक्त माना गया है. साथ ही अलग अलग भगवान की पूजा में भी विभिन्न आसनों के प्रयोग की बात शास्त्रों में कही गई है. यहां जानिए इसके बारे में.

आसन कैसा होना चाहिए
पूजा के लिए आसन का चुनाव करते वक्त भी बड़ी सावधानी रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार आप पूजा के लिए सूती, रेशमी या ऊनी कपड़े से बने आसन का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा हिरन और व्याघ्र चर्म के आसन पर बैठ कर भी पूजा की जा सकती है। इन आसन पर बैठकर साधना करने से ज्ञान, सौभाग्य, मोक्ष, लक्ष्मी और सिद्धि की प्राप्ति होती है.
कुशा का आसन – जो व्यक्ति कुशा के आसन पर बैठकर मंत्र, जप पूजा करते हैं उन्हें शुचिता, स्वास्थ्य, तन्मयता और स्वास्थ्य मैं सदैव वृद्धि होती है, उसे अंनत फल की प्राप्ति होती है. यह ऊर्जा के लॉस को बचाता है. कुशा का संबंध केतु से हैं और केतु दो चीजों के बीच में विरक्ति पैदा करता है. केतु देव तुल है मोक्षकारक है. कार्य सिद्ध की पूर्ण लालसा के लिए किए जाने वाले जप कंबल के आसन में बैठकर करना, सर्वोच्च लाभदायक होता है.
वैसे प्रावधान तो यह है कि मंत्रों द्वारा आसन को पवित्र एवं शुद्ध किया जाता है. जब भी पूजा करने जाएं तो जब अपना आसन उठाकर उसको अपने शीश पर लगाएं,, प्रणाम करें, और यथास्थान पर रख दें.

इन आसनों का प्रयोग सही नहीं
अब सवाल उठता है कि आखिर कैसा आसन पूजा के लिए उपर्युक्त है क्योंकि आजकल जैसे चटाई, दरी, पटरी आदि के बहुत सारे आसन बाजार में बिकते हैं. लेकिन इन्हें शास्त्र सम्मत नहीं माना गया है. ब्रह्म पुराण में आसन के संदर्भ में कहा गया है…
वंसासने तु दरिद्राम पाषाने व्याधि
सम्भव, धरण्याम दुख संभूति,
दौरभाग्यम छिद्र दारूजे, त्रने धन हानि,
यशो हानि, पल्लव चित्त विभ्रम.
यानी बांस से दरिद्रता, पत्थर से रोग, पृथ्वी पर दुख, लकड़ी से दुर्भाग्य, तिनके पर धन और यश हानि और पत्तों पर पूजा करने से मन भ्रमित हो जाता है.

दूसरे का आसन प्रयोग न करें
आसन के नियमों के अनुसार ये हमेशा आपका व्यक्तिगत होना चाहिए. कभी किसी दूसरे का आसन न तो प्रयोग में लेना चाहिए और न ही अपना आसन उसे प्रयोग के लिए देना चाहिए. क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की चित्तवृत्ति भिन्न होती है और आसन पर चित्तवृत्ति का प्रभाव शेष रहता है. दूसरे का आसन प्रयोग करने से उसकी चित्तवृत्ति का असर आप पर भी पड़ेगा. इसलिए बाहर जाने पर भी यदि संभव हो तो अपना ही आसन साथ लेकर जाएं.

रंगों का भी महत्व
अगर आप नियमित पूजा के लिए लाल, पीला, सफेद आसन प्रयोग करें. लेकिन अगर कोई विशेष साधना करनी है, तब आसन के रंगों का चुनाव उसी अनुरूप करना चाहिए. सुख शांति, ज्ञान प्राप्ति, विद्या प्राप्ति और ध्यान साधना के लिए पीला आसन श्रेष्ठ माना गया है. वहीं शक्ति प्राप्ति, ऊर्जा, बल बढ़ाने के लिए मंत्रों को जपते समय लाल रंग के आसन का प्रयोग करें.
महाकाली, भैरव की पूजा साधना में काले रंग के आसन का प्रयोग किया जाता है. शत्रु नाश के लिए की जाने वाली साधना में भी काले आसन और लाल आसन का प्रयोग मंत्र के अनुसार प्रयोग में लिया जाता है. वर्तमान समय में कुश आसन मिलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, ऐसे में सामान्य पूजा के लिए कंबल आसन सर्वोत्तम है.

पूजा के बाद आसन छोड़कर उठना भी गलत
पूजा के बाद आसन को यूं ही छोड़कर उठना भी गलत माना गया है. उठने से पहले धरती पर दो बूंद जल डालें इसके बाद धरती को प्रणाम करें. फिर जल को मस्तक से लगाएं. इसके बाद आसन को उठाकर यथा स्थान रखें. ऐसा करने से आपको अपनी साधना का पूर्ण फल मिलेगा.

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