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शिव-पार्वती प्रेम कथा, Shiv Parvati Prem Katha, Shiv Parvati Vivah
देवी पार्वती हिमनरेश हिमवान और उनकी रानी मैनावती की पुत्री हैं। पार्वती जी का विवाह भगवान शंकर से हुआ है। इन्‍हें पार्वती के अलावा उमा, गौरी और सती सहित अनेक नामों से जाना जाता है। माता पार्वती प्रकृति स्वरूपा कहलाती हैं। किंवदंतियों के अनुसार पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमालय नरेश के घर आये थे और उनके पूछने पर देवर्षि ने बताया कि ये कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है और उनका विवाह शंकरजी से होगा। साथ ही उन्‍होंने ये भी कहा कि महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये देवी पार्वती को घोर तपस्या करनी होगी। माता पार्वती शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप कर रही थीं। उनके तप को देखकर देवताओं ने शिव जी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। शिव जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा।

सप्तर्षियों ने देवी के पास जाकर यह समझाने के अनेक प्रयत्न किये कि शिव जी औघड़, अमंगल वेषधारी, जटाधारी और भूत प्रेतों के संगी हैं, इसलिए वे, उनके लिए उपयुक्त वर नहीं हैं। शिव जी के साथ विवाह करके पार्वती को सुख की प्राप्ति नहीं होगी, अत: वे अपना इरादा बदल दें, किन्तु पार्वती अपने निर्णय पर दृढ़ रहीं। सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वती जी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था। यह देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्हें सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव जी के पास वापस आ गये। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति गहन प्रेम की जानकारी पा कर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुये। विवाह से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिए शिव जी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी। भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हुए। इतने में जहां वह तप कर रही थीं, वही पास में तालाब में मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया। लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा। पार्वती जी से उस बच्चे की चीख सुनी न गई। द्रवित हृदय होकर वह तालाब पर पहुंचीं। देखती हैं कि मगरमच्छ लड़के को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है।

लड़के ने देवी को देखकर कहा- मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र… माता आप मेरी रक्षा करें.. .
पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो। मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है। ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं ? पार्वती जी ने विनती की- तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो। मगरमच्छ बोला- एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा। पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो। मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा। पार्वती जी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो। मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा।

मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं। पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता ? देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया। मगरमच्छ लुप्त हो गया। पार्वती जी ने विचार किया- मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया। भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो? पार्वती जी ने कहा- प्रभु ! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी।

महादेव बोले- मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही एक हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं….देवी ने महादेव को प्रणाम कर प्रसन्न मन से विदा किया।
इसके बाद सप्तऋषियों ने शिव, पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। विवाह के दिन भोलेनाथ बारात ले कर हिमालय के घर आये। दूल्‍हा बने भगवान शंकर बैल पर सवार थे, उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि सभी शामिल थे। इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव और पार्वती का विवाह हुआ। बाद में इनके दो पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हुए। कई पुराणों के अनुसार इनकी अशोक सुंदरी नाम की एक पुत्री भी थी।

सवाल – जवाब
सवाल – भगवान शिव के माता पिता का नाम क्या है?
जवाब – शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म है
सवाल – शिव और पार्वती का विवाह कब हुआ?
जवाब – भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। शिवजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था।
सवाल – भोलेनाथ की बारात में कौन कौन गए थे?
जवाब – क्योंकि शंकर जी की बारात में भूत-प्रेत और आत्माएं थीं, क्योंकि शिवजी देवताओं के साथ दानवों के भी इष्ट हैं। बारात में शिव जी का रूप देखकर पार्वती बहुत डर गईं। शिव जी का ये रूप देखकर पार्वती की मां ने कहा कि अपनी बेटी का हाथ ऐसे दूल्हे के हाथ में नहीं सौंपेंगी।

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