Laxmi Katha

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दिवाली पर लक्ष्मी जी की कहानी / दीपावली व्रत कथा / Diwali Vrat Katha In Hindi/ Lakshmi Ji Ki Kahani
दीपावली के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है. दीपावली व्रत के समय माता लक्ष्मी की कहानी या कथा (Lakshmi ji ki kahani) कहने सुनने से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ पढ़ें , सुने और सुनाएँ लक्ष्मी माता की विशेष कहानी-
पहली कथा- लक्ष्मी जी और साहूकार की बेटी की कहानी
गरीब साहूकार की एक बेटी थी, जो रोजाना पीपल के पेड़ में पानी डालने जाती थी और पूजा करती थी। पीपल के पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मी जी ने प्रकट होकर उससे कहा तू मेरी सहेली बन जा। वह लड़की माता पिता की आज्ञाकारी थी। उसने कहा यदि मेरे मेरे माता पिता आज्ञा दे देंगे तो मै आपकी सहेली बन जाउंगी। उसके माता पिता ने उसे आज्ञा दे दी। दोनों सहेली बन गई।
एक दिन माता लक्ष्मी ने साहूकार की लड़की को खाना खाने के लिए निमंत्रण दिया। माता पिता की आज्ञा लेकर वह लक्ष्मी जी के यहाँ जीमने चली गई। लक्ष्मी जी ने उसे शाल दुशाला भेंट किया , रूपये दिए। उसे सोने से बनी चौकी पर बैठाया। सोने की थाली , कटोरी में छत्तीस प्रकार के व्यंजन परोस कर खाना खिलाया। जब वह अपने घर के लिए रवाना होने लगी तो लक्ष्मी जी ने कहा मैं भी तुम्हारे यहाँ जीमने आऊँगी। उसने कहा ठीक है , जरूर आना।

घर आने के बाद वह उदास होकर कुछ सोच में पड़ गई । पिता ने पूछा सहेली के यहाँ जीम कर आई तो उदास क्यों हो। उसने अपने पिता को कहा लक्ष्मीजी ने उसे बहुत कुछ दिया अब वो हमारे यहाँ आएगी तो मैं उसे कैसे जिमाउंगी ,अपने घर में तो कुछ भी नहीं है।
पिता ने कहा बेटी तुम जरा भी चिंता ना करो। बस तुम अच्छे से घर की साफ सफाई करके लक्ष्मी जी के सामने एक चौमुखी दिया जला कर रख देना। सब ठीक होगा । वह दिया लेकर बैठी थी। एक चील रानी का नौलखा हार पंजे में दबाकर उड़ती हुई जा रही थी। उसके पंजे से वह हार छूटकर लड़की के पास आकर गिरा। लड़की हार को देखने लगी। उसने अपने पिता को वह हार दिखाया। बाहर शोर हो रहा था की एक चील रानी का नौलखा हार उड़ा ले गई है। किसी को मिले तो लौटा दे। एक बार तो दोनों के मन विचार आया की इसे बेचकर लक्ष्मी जी के स्वागत का प्रबंध हो सकता है।
लेकिन अच्छे संस्कारों के चलते पिता ने अपनी बेटी से कहा यह हार हम रानी को लौटा देंगे। लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए धन तो नहीं पर हम पूरा मान सम्मान देंगे । उन्होंने हार राजा को दिया तो राजा ने खुश होकर कहा जो चाहो मांग लो।

साहूकार ने राजा से कहा कि बेटी की सहेली के स्वागत के लिए शाल दुशाला, सोने की चौकी, सोने की थाली कटोरी और छत्तीस प्रकार के व्यंजन की व्यवस्था करवा दीजिये। राजा ने तुरंत ऐसी व्यवस्था करवा दी।लड़की ने गणेश और लक्ष्मी जी दोनों को बुलाया। लक्ष्मी जी को सोने की चौकी पर बैठने को कहा। लक्ष्मी जी ने कहा की मैं तो किसी राजा महाराजा की चौकी पर भी नहीं बैठती। लड़की ने कहा मुझे सहेली बनाया है तो मेरे यहाँ तो बैठना पड़ेगा। गणेश और लक्ष्मी जी दोनों चौकी पर बैठ गए। लड़की ने बहुत आदर सत्कार के साथ और प्रेम पूर्वक भोजन करवाया। लक्ष्मी जी बड़ी प्रसन्न हुई। लक्ष्मी जी ने जब विदा मांगी तो लड़की ने कहा अभी रुको मैं लौट कर आऊं तब जाना ,और चली गई। लक्ष्मी जी चौकी पर बैठी इंतजार करती रही। लक्ष्मी जी के वहाँ होने से घर में धन धान्य का भंडार भर गया। इस प्रकार साहूकार और उसकी बेटी बहुत धनवान हो गए।
हे लक्ष्मी माँ। जिस प्रकार आपने साहूकार की बेटी का आतिथ्य स्वीकार करके भोजन किया और उसे धनवान बनाया। उसी प्रकार हमारा भी आमंत्रण स्वीकार करके हमारे घर पधारें और हमें धन धान्य से परिपूर्ण करें। जय लक्ष्मी माँ , तेरी कृपा हो , तेरी जय हो।

दूसरी कथा- लक्ष्मी जी की कथा/ Laxmi Ji Ki Katha In Hindi
एक बार की बात है माता लक्ष्मी कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पृथ्वी लोक में विचरण कर रही थीं, तभी वह रास्ता भूल गईं। हर ओर घोर अंधेरा था। पृथ्वी लोक पर हर कोई सो रहा था, घर के दरवाजे बंद थे। माता लक्ष्मी भ्रमण करते हुए एक वृद्ध महिला के घर पहुंची, जो चरखा चला रही थी। उसने माता लक्ष्मी को विश्राम करने के लिए बिस्तर आदि की व्यवस्था की, जहां पर माता लक्ष्मी ने आराम किया
इस दौरान वह वृदा अपने काम में व्यस्त रही। काम करते-करते वह सो गई। जब उसकी आंख खुली तो उसकी कुटिया की जगह महल बन गया था। उसके घर में धन-धान्य के अतिरिक्त सभी चीजें मौजूद थीं। किसी चीज की कमी नहीं थी। माता लक्ष्मी वहां से ​कब चली गई थीं, उसे वृद्ध महिला को पता ही नहीं चल पाया था। माता लक्ष्मी उस महिला की सेवा से प्रसन्न होकर उस पर कृपा की थींं। उसके बाद से हर वर्ष कार्तिक अमावस्या को रात्रि में प्रकाशोत्सव करने की परंपरा शुरू हो गई। इस दिन माता लक्ष्मी के आगमन के लिए लोग अपने घरों के द्वार खोलकर रखने लगे।

तीसरी कथा- लक्ष्मी जी की कथा/भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कथाLaxmi Ji Ki Katha In Hindi/ Vishnu And Mata Laxmi Katha
दिवाली पर लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। लक्ष्मी पूजन से घर पर धन और सुख-समृद्धि आती है। लक्ष्मी पूजन में कई तरह की पूजन सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें गन्ने का विशेष महत्व होता है। मां लक्ष्मी की पूजा में गन्ने के प्रयोग के पीछे एक रोचक कथा है।
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी संग पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे। तभी अचानक विष्णुजी को कुछ याद आया। फिर उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि मैं दक्षिण की तरफ जा रहा हूं, तुम यहीं पर रुककर मेरी प्रतिक्षा करना। यह बात कहकर विष्णुजी चले गए। माता लक्ष्मी ने थोड़े समय उस स्थान पर रूककर भगवान विष्णु की प्रतिक्षा करने लगी।  लेकिन स्वभाव से चंचला होने के कारण वह कहां एक स्थान पर रुकने वाली थी। माता लक्ष्मी इधर-उधर विचरण करने लगी तभी उन्हें वहां पर एक गन्ने का खेत दिखा। माता लक्ष्मी ने खेत से गन्ने को तोड़कर चूसना आरंभ कर दिया। तभी भगवान विष्णु वहां पर लौट आए।

लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते देखकर वे नाराज हो गए और कहने लगे कि आपने बिना खेत के मालिक से पूछे गन्ना तोड़कर कैसे खा लिया। इस गलती के लिए सजा के तौर पर उन्होंने कहा कि तुम्हे इस किसान के घर 12 वर्षो तक रहना पड़ेगा और उसकी देखभाल करनी पड़ेगी। यह बात कहकर विष्णु जी वैकुंठ लौट गए और माता लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं। लक्ष्मीजी की कृपा से वह किसान थोडे ही दिनों में बहुत ही धनवान और सुखी रहने लगा।
12 वर्ष बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को बुलाने आए तो उस किसान ने उन्हें जाने से रोकने लगा। तब भगवान विष्णु ने उसे वर दिया कि लक्ष्मी जी के जाने के बाद वह अदृश्य होकर तुम्हारे घर पर निवास करेंगी। अगर तुम अपने घर में दीपक जलाओगे और मेरी पूजा करोगे तो मेरा वास हमेशा तुम्हारे घर पर होगा। तभी से लक्ष्मी पूजा में उनका प्रिय गन्ना रखा जाने लगा।

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