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यादव कुल, यदुकुल का संहार
जब १८-दिन का युद्ध समाप्त हो जाता है, तो श्रीकृष्ण, अर्जुन को उसके रथ से नीचे उतर जाने के लिए कहते हैं। जब अर्जुन उतर जाता है तो वे उसे कुछ दूरी पर ले जाते हैं। तब वे हनुमानजी को रथ के ध्वज से उतर आने का संकेत करते हैं। जैसे ही श्री हनुमान उस रथ से उतरते हैं, अर्जुन के रथ के अश्व जीवित ही जल जाते हैं और रथ में विस्फोट हो जाता है। Mahabharat Katha in hindi The Destruction of Yadukul
यह देखकर अर्जुन दहल उठता है। तब श्रीकृष्ण उसे बताते हैं की पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कर्ण, और अश्वत्थामा के धातक अस्त्रों के कारण अर्जुन के रथ में यह विस्फोट हुआ है। यह अब तक इसलिए सुरक्षित था क्योंकि उस पर स्वयं उनकी कृपा थी और श्री हनुमान की शक्ति थी जो रथ अब तक इन विनाशकारी अस्त्रों के प्रभाव को सहन किए हुए था। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी गांधारी के पास गये। Mahabharat Katha in hindi The Destruction of Yadukul
गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्री कृष्णचन्द्र को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारे कारण से जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का आपस में लड़ कर के नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। Mahabharat Katha in hindi The Destruction of Yadukul
भगवान श्री कृष्णचन्द्र ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति को फेर दिया। एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाये। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। Mahabharat Katha in hindi The Destruction of Yadukul
पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह से भगवान श्री कृष्णचन्द्र को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा। इस घटना के बाद भगवान श्री कृष्णचन्द्र महाप्रयाण कर के स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गये। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो के उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। Mahabharat Katha in hindi The Destruction of Yadukul
दो महान श्रापों ने कर दिया श्रीकृष्ण के वंश का विनाश
प्रत्येक जाति की कई उपजातियां होती हैं। श्री कृष्ण यादव वंश के वृष्णि शाखा से थे। महाभारत के युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण माता गांधारी के पास सांत्वना देने पहुँचे। कुछ ही लोग थे जो श्री कृष्ण की महिमा से औसत से ज्यादा परिचित थे, उनमे माता गांधारी भी थीं। उन्होंने श्री कृष्ण को युद्ध का उत्तरदायी बताया और कहा की वो चाहते तब युद्ध टल सकता था। त्रिकालदर्शी श्री कृष्ण ने कहा कि वे निःसंदेह युद्ध को टाल सकते थे लेकिन ये युद्ध अनिवार्य था। इस कटु सत्य को सुन कर माता गांधारी ने अपने वंश की तरह ही श्री कृष्ण को भी वंश विहीन हो जाने का श्राप दे दिया। श्री कृष्ण ने भी श्राप को स्वीकार कर लिया अन्यथा उनकी इक्षा के विरुद्ध कौन क्या कर सकता था।
नियति और श्राप की पूर्ति के लिए कहानी होना स्वाभाविक है। एक दिन ऋषि दुर्वासा द्वारका पहुँचे जहां सब यादव युद्ध में अपने पराक्रम का गुणगान कर रहे थे। कुछ यादवों ने ऋषि दुर्वासा के सामने एक युवक को स्त्री भेष में सामने किया और उनसे कहा कि ये स्त्री गर्भ से है कृपया बताएं कि इसे लड़का होगा या लड़की। ऋषि दुर्वासा जो की रुद्र के ही अवतार थे और स्वभाव से क्रोधी। उन्हें ये उदंडता पसंद नही आयी और उन्होंने ने श्राप दे दिया कि समय आने पर इसके गर्भ से मूसल उत्पन्न होगा जो तुम्हारे अंत का कारण होगा।
ऋषि दुर्वासा का श्राप समय आने पर फलित हुआ और उस युवक के गर्भ से मूसल हुआ। इस पर अधिकार को लेकर विवाद हुआ जो युद्ध में परिवर्तित हुआ और समस्त यादवों ने एक दूसरे से लड़कर अपने कुल का अंत कर लिया।
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