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शुक्ल पक्ष का अर्थ, कृष्ण पक्ष का अर्थ, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष किसे कहते हैं, एक महीने में कितने पक्ष होते हैं?, कौन सा पक्ष शुभ है, कृष्ण पक्ष की शुरुआत, शुक्ल पक्ष की शुरुआत, Shukla Paksha In Hindi, Krishna Paksha In Hindi, How To Start Krishna Paksha And Shukla Paksha, Krishna Paksha Katha, Shukla Paksha Katha

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हिंदू धर्म में किसी भी खास आयोजन में तिथियों की विशेष भूमिका होती है. पंचांग एक हिंदू कैलेंडर है. पंचांग दैनिक और मासिक होता है. दैनिक पंचांग में जहां एक दिन विशेष का विवरण होता है वहीं मासिक पंचांग में पूरे महीने भर का विवरण होता है. मासिक पंचांग यानी हिंदू कैलेंडर में एक महीने को 30 दिनों में बांटा गया है और इन महीनों की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है. चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है. जिसमें 15 दिन के एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहते है और बाकी बचे 15 दिन को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है. आइए जानते हैं वैदिक शास्त्र में इन दोनों पक्षो के बारे में कि कृष्ण पक्ष क्या है, शुक्ल पक्ष क्या है, कृष्ण पक्ष की शुरुआत कैसे हुई, शुक्ल पक्ष की शुरुआत कैसे हुई, कृष्ण पक्ष की तिथियां, शुक्ल पक्ष की तिथियां और इनसे जुड़ी कथाओं के बारे में…लेकिन इससे पहले जान लीजिए क्या है पक्ष का मतलब?

क्या है पक्ष का मतलब? – (Meaning Of Paksha)
हमारे ज्योतिषीय कैलेंडर के अनुसार, हर चंद्र महीने को दो पक्षों में बाँटा गया है. पक्ष एक चंद्र पखवाड़ा है. यह लगभग 14 दिनों की अवधि होती है. हिंदी भाषा में पक्ष शब्द का शाब्दिक अर्थ पक्ष या पहलू होता है. इसके अलावा, ज्योतिषीय घटनाओं के संदर्भ में, पक्ष का अर्थ है एक महीने का एक पक्ष. यह शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष होता है. यह चंद्रमा का चरण है. प्रत्येक चंद्रमा का चरण 15 दिनों तक रहता है. इसलिए आम तौर पर, हर महीने दो चंद्रमा चरण होते हैं! गणना के अनुसार, चंद्रमा एक दिन में 12 डिग्री की परिक्रमा पूरी करता है. तीस दिनों में, चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी एक परिक्रमा पूरी करता है. यह चन्द्रमा हर दो सप्ताह में एक चरण पूरा करता है जो विभिन्न धार्मिक कार्यों में बहुत मदद करता है.

एक महीने में कितने पक्ष होते हैं?
हिन्दू कैलेंडर यानी पंचांग के अनुसार हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है. चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है जिन्हे कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है.
कृष्ण पक्ष क्या है
पूर्णिमा और अमावस्या के मध्य के भाग को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के अगले ही दिन से ही कृष्ण पक्ष शुरू हो जाता है, जो अमावस्या तिथि के आने तक 15 दिनों तक रहती है.

कृष्ण पक्ष में नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष को किसी भी शुभ कार्य के लिए उचित नहीं माना जाता और ऐसा कहते हैं कि इस पक्ष में या इस दौरान कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो शुभ हो जैसे शादी, मुंडन या घर में कोई भी अन्य विशेष अवसर. मान्यता है कि जब भी कृष्ण पक्ष होता है तो उस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना उचित नहीं होता है. दरअसल इसके पीछे ज्योतिष में चंद्रमा की घटती हुई कलाएं होती है. पूर्णिमा के बाद जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है वैसे वैसे चंद्रमा घटता जाता है. यानी चंद्रमा का प्रकाश कमजोर होने लगता है. चंद्रमा के आकार और प्रकाश में कमी आने से रातें अंधेरी होने लगती है. इस कारण से भी कृष्ण पक्ष को उतना शुभ नहीं माना जाता. जितना शुक्ल पक्ष को मानते है. अगर आप को भी पंचांग में विश्वास है तो किसी भी विशेष काम को कृष्ण पक्ष में करने से नजरअंदाज करें.
कृष्ण पक्ष की तिथियां-  15 दिन (पूर्णिमा, प्रतिपदा, प्रतिपदा, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी)

शुक्ल पक्ष क्या है?
अमावस्या और पूर्णिमा के बीच वाले भाग को शुक्ल पक्ष कहा जाता है. अमावस्या के बाद के 15 दिन को हम शुक्ल पक्ष कहते हैं. अमावस्या के अगले ही दिन से चन्द्रमा का आकर बढ़ना शुरू हो जाता है या ऐसा कहा जाये कि चन्द्रमा की कलाएं भी बढ़ती है जिससे चन्द्रमा बड़ा होता जाता है और रातें अँधेरी नहीं रहती बल्कि चाँद की रौशनी से चमक जाती है और चाँद की चांदनी से भर उठती है. पूर्णिमा के दिन चांद बहुत बड़ा और रोशनी से भरा हुआ होता है. इस समय में चंद्रमा बलशाली होकर अपने पूरे आकार में रहता है यही कारण है कि कोई भी शुभ काम करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. किसी भी नए काम की शुरुआत भी शुक्ल पक्ष में ही की जाती है.
शुक्ल पक्ष की तिथियां- 15 दिन (अमावस्या, प्रतिपदा, प्रतिपदा, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी)

कौन सा पक्ष शुभ है? – (Which Paksha Is Auspicious)
धार्मिक मान्यता के अनुसार, लोग शुक्ल पक्ष को शुभ मानते हैं, और कृष्ण पक्ष को इसके प्रतिकूल. यह विचार चंद्रमा की जीवन शक्ति और रोशनी के संबंध में है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्ल पक्ष के दसवें दिन से लेकर कृष्ण पक्ष के पांचवें दिन तक की अवधि को ज्योतिषीय रूप से शुभ माना जाता है. इस समय के दौरान, चंद्रमा की ऊर्जा अधिक या लगभग अधिकतम होती है – जिसे शुभ और अशुभ समय तय करने के लिए ज्योतिष में महत्वपूर्ण माना जाता है.

शुक्ल और कृष्ण पक्ष से जुड़ी कथाएं
पौराणिक कथाओं में शुक्ल और कृष्ण पक्ष से संबंध में कथाएं प्रचलित है. जिसके अनुसार आप यह समझा जा सकता है कि आखिर कैसे हुई कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की शुरुआत. तो आइए जानते हैं शुक्ल और कृष्ण पक्ष से जुड़ी कथाएं

  • कृष्ण पक्ष की शुरुआत कैसे हुई?
    शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 बेटियां थीं. इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा से किया. दक्ष प्रजापति की ये 27 पुत्रियां वास्तव में 27 नक्षत्र थी. चंद्रमा सभी में सबसे ज्यादा रोहिणी से प्रेम करते थे. चंद्रमा बाकी सभी से हमेशा रुखा हुआ व्यवहार करते थे. ऐसे में बाकी सभी स्त्रियों ने चंद्रमा की शिकायत अपने पिता दक्ष से की. इसके बाद राजा दक्ष ने चंद्रमा को डांट लगाई और कहा कि सभी पुत्रियों के साथ समान व्यवहार करें. इसके बाद भी चंद्रमा का रोहिणी के प्रति प्यार कम नहीं हुआ और बाकी पत्नियों को नजरअंदाज करते रहें. इस बात को लेकर दक्ष प्रजापति गुस्से में आकर चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे देते हैं. इसी शाप के चलते चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे मध्यम होता गया. तभी से कृष्ण पक्ष की शुरुआत मानी गई.
  • शुक्ल पक्ष की शुरुआत कैसे हुई?
    दक्ष प्रजापति के शाप के चलते क्षय रोग से चंद्रमा का तेज कम होता गया और उनका अंत करीब आने लगा. तब चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की और शिवजी चंद्रमा की आराधना से प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपनी जटा में धारण कर लिया. शिवजी के प्रताप से चंद्रमा का तेज फिर से लौटने लगा और उन्हें जीवनदान मिला. दक्ष के शाप को रोका नहीं जा सकता था ऐसे में शाप में बदलाव करते हुए चंद्रमा को हर 15-15 दिनों में कृष्ण और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है. इस तरह से शुल्ल पक्ष की शुरुआत हुई.

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच का अंतर
जब हम संस्कृत शब्द शुक्ल और कृष्ण का अर्थ समझते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से दो पक्षों के बीच अंतर कर सकते हैं. शुक्ल उज्ज्वल व्यक्त करता है, जबकि कृष्ण का अर्थ है अंधेरा. जैसे कि हमने पहले ही जाना, शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक होता है, और कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष के विपरीत, पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक होता है. हर महीने के पंद्रह दिन कृष्ण पक्ष में आते है और अन्य पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष में. दोनों ही पक्षों की अपनी अलग अलग खासियत है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की शुक्ल पक्ष को कृष्ण पक्ष से श्रेष्ठ माना जाता है. अगर आप का विश्वास भी पंचांग में है तो अपने विशेष काम शुक्ल पक्ष में ही करें.

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