Why do you celebrate Buddha Purnima Where is Buddha Jayanti celebrated Buddha Purnima Puja vidhi

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क्यों मनाते हैं बुद्ध पूर्णिमा?
बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बौद्ध अनुयायियों के साथ-साथ हिंदुओं के लिये भी खास है. लेकिन क्या आप जानते हैं इस पर्व को क्यों मनाया जाता है? आज ही के दिन यानी वैशाख मास की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है. अपने जीवन में बुद्ध भगवान ने जब हिंसा, पाप और मृत्यु के बारे में जाना, तब ही उन्होंने मोह-माया का त्याग कर दिया और अपना परिवार छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली और सत्य की खोज में निकल पड़े। जिसके बाद उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ। वैशाख पूर्णिमा की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है, इसलिए बौद्ध धर्म में प्रत्येक वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

गौतम बुद्ध विष्णु के नौंवे अवतार
भगवान बुद्ध केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये आराध्य नहीं है बल्कि उत्तरी भारत में गौतम बुद्ध को हिंदुओं में भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है. विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण माने जाते हैं. हालांकि दक्षिण भारत में बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं माना जाता है. दक्षिण भारतीय बलराम को विष्णु का आठवां अवतार तो श्री कृष्ण को 9वां अवतार मानते हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी भी भगवान बुद्ध के विष्णु के अवतार होने को नहीं मानते.

कहां कहां मनाई जाती है बुद्ध जयंती
भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है. भारत के बिहार राज्य में स्थित बोद्ध गया बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिये भी पवित्र धार्मिक स्थल है. कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक माह तक मेला लगता है. हालांकि लॉकडाउन की वजह से इस साल मेले का आयोजन नहीं किया गया है. श्रीलंका जैसे कुछ देशों में इस उस्तव को वेसाक उत्सव के रूप में मनाते हैं. बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दिये जलाते हैं और फूलों से घर सजाते हैं. इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है.

बुद्ध पूर्णिमा पूजा विधि
1- घर के मंदिर में विष्णु जी की दीपक जलाकर पूजा करें और घर को फूलों से सजाएं.
2- घर के मुख्य द्वार पर हल्दी, रोली या कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और गंगाजल छिड़कें.
3– बोधिवृक्ष के आस-पास दीपक जलाएं और उसकी जड़ों में दूध विसर्जित कर फूल चढ़ाएं.
4- गरीबों को भोजन और कपड़े दान करें.
5- रौशनी ढलने के बाद उगते चंद्रमा को जल अर्पित करें.

बुद्ध पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र और भक्त सुदामा बेहद गरीब थे। उस समय उनकी पत्नी ने उन्हें अपने मित्र भगवान श्रीकृष्ण से सहायता मांगने की सलाह दी। इसके बाद सुदामा ने भगवान से एक बार पूछा- हे भगवान ऐसा कोई उपाय बताएं, जिसे करने से गरीबी दूर हो जाए और मानव का कल्याण हो। तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा- हे ब्राह्मण जो भी व्यक्ति पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-आराधना और व्रत करता है, उसके जीवन से गरीबी जल्द दूर हो जाती है और उसके जीवन में मंगल का आगमन होता है। कालांतर में ब्राह्मण सुदामा ने पूर्णिमा का ही व्रत किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र की सहायता कर उनकी गरीबी दूर की थी।

बौद्ध धर्म के मुख्य तीर्थस्थल
बौद्धों के लिए, बोध गया नामक स्थान गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. बोधगया के अतिरिक्त, कुशीनगर, लुम्बिनी तथा सारनाथ भी अन्य तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं. माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया तथा उन्होंने पहली बार सारनाथ में धर्म की शिक्षा दी.

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद स्नान आदि करने के बाद श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है। कहते हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं। माना जाता है कि धर्मराज मृत्यु के देवता हैं इसलिए उनके प्रसन्‍न होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है। मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन तिल और चीनी का दान शुभ होता है। कहा जाता है कि चीनी और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है।

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास
इतिहास के जानकारों के अनुसार, भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में हुआ था। कपिलवस्तु उस समय से शाक्य महाजनपद की राजधानी थी। लुम्बिनी वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल का क्षेत्र है। इसी जगह पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध के प्रतीक के तौर पर एक स्तम्भ बनवाया था। इतिहासकारों ने ये भी बताया है कि बुद्ध शाक्य गोत्र के थे और उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गण के प्रमुख थे और माता का नाम माया देवी था। सिद्धार्थ के जन्म से 7 दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद सिद्धार्थ की परवरिश उनकी सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने किया था। बुद्ध धर्म के संस्थापक स्वंय महात्मा बुद्ध हैं। उन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या और साधना की, जिसके बाद उन्हें बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई, उनको बुद्धत्व की प्राप्ति हुई। फिर उन्होंने अपने ज्ञान से इसे पूरे संसार को आलोकित किया। अंत में कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा को उनका निधन हो गया।

कैसे सिद्धार्थ बने भगवान बुद्ध
ऐसा बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने महज 29 साल की आयु में संन्यास धारण कर लिया था। उन्होंने बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे 6 साल तक कठिन तप किया था। वह बोधिवृक्ष आज भी बिहार के गया जिले में स्थित है। बुद्ध भगवान ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। भगवान बुद्ध 483 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन ही पंचतत्व में विलीन हुए थे। इस दिन को परिनिर्वाण दिवस कहा जाता है।

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