Narmada Jayanti

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नर्मदा जयंती 2021 – परिचय
हिन्दु चन्द्र कैलेण्डर के अनुसार, प्रतिवर्ष माघ माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयंती मनायी जाती है. इस बार 2022 में नर्मदा जयंती 7 फरवरी, सोमवार को है. नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है. इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है. इस पावन दिवस के अवसर पर भक्तगण नर्मदा नदी की पूजा करते हैं. यह माना जाता है कि, माँ नर्मदा के पूजन से भक्तों के जीवन में शान्ति तथा समृद्धि का आगमन होता है. मध्य प्रदेश के अमरकण्टक नामक स्थान से नर्मदा नदी का उद्गम होता है. अमरकण्टक, नर्मदा जयन्ती के पूजन के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान है.

नर्मदा जयंती सोमवार, फरवरी 7, 2022 को , Narmada Jayanti 2022 Puja Tithi, Time
सप्तमी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 7, 2022 को सुबह 04:40 बजे
सप्तमी तिथि समाप्त – फरवरी 8, 2022 को सुबह 06:10 बजे
नर्मदा जंयती पर पूजन विधि , Narmada Jayanti 2022 Pujan Vidhi
माघ मास की सप्तमी तिथि को मेकल सुता माँ नर्मदा जी की जयंती के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त से पहले, प्रणाम करके नर्मदा स्नान करें. धुले हुए वस्त्र पहनकर विधिवत अक्षत, पुष्प, कुमकुम, हल्दी, धुप-दीप से पूजन करें. नर्मदा जयंती के दिन नर्मदा में 11 आटे के दीपक जलाकर दान करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है.

नर्मदा जयंती क्यों मनाई जाती है?
नर्मदा जयंती को मनाने के कई कारण है, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं छिपी हैं. नर्मदा जयंती माघ के महीने में जब शुक्ल पक्ष की सप्तमी आती है, उस दिन को इस पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है. नर्मदा जी की रेवा नाम से भी अराधना की जाती है.
अब जानते हैं कि क्यों इस दिन को मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार नर्मदा जी में स्नान को गंगा स्नान के समान पवित्र माना गया है. इस दिन भक्त अपने पापों का नाश करके तन और मन की शुद्धि हेतु इस दिन को मनाते हैं. यह भी कहा जाता है इस स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है. वहीं एक कथा के अनुसार हिरण्यतेजा नाम के राजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप्सया की थी. जिससे भगवान शिव ने उसे वर मांगने को कहा था.
तब राजा ने कहा था कि नर्मदा जी को पृथ्वी पर भेज कर प्राणियों व मानवजाति का उद्धार करें. इस नदी में ही राजा ने अपने पितरों का भी तर्पण किया था. तभी शिव जी के तथास्तु कह कर राजा हिरण्यतेजा को यह वरदान प्रसन्न हो कर दे दिया था. उस समय माता नर्मदा जी ने मगरमच्छ पर सवार हो कर पृथ्वी पर प्रस्थान किया और उदयाचल पर्वत पर जाकर उत्तर से पश्चिम दिशा की ओर बहना शुरू कर दिया था. इसी कारण से यह दिन नर्मदा जयंती के रूप में बहुत आस्था के साथ मनाया जाता है.

पुण्यदायिनी माँ नर्मदा की जन्म कथा, नर्मदा नदी के जन्म व उदगम का इतिहास ,Narmada River History in hindi
कथा 1:-  एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया. उस समय उस राक्षस का वध करते हुए देवताओं ने बहुत से पाप भी किये. जिसके चलते देवता, भगवान् विष्णु और ब्रम्हा जी सभी, भगवान शिव के पास गए. उस समय भगवान शिव आराधना में लीन थे. देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि – हे प्रभु राक्षसों का वध करने के दौरान हमसे बहुत पाप हुए है, हमें उन पापों का नाश करने के लिए कोई मार्ग बताइए. तब भगवान् शिव ने अपनी आँखें खोली और उनकी भौए से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरा जिससे एक कन्या ने जन्म लिया. वह बहुत ही रूपवान थी, इसलिए भगवान विष्णु और देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा. इस तरह भगवान शिव द्वारा नर्मदा नदी को पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया गया.

इसके अलावा उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की, भगवान् शिव उनकी आराधना से प्रसन्न हुए तभी माँ नर्मदा ने उनसे ऐसे वरदान प्राप्त किये, जो किसी और नदियों के पास नहीं है. वे वरदान यह थे कि –मेरा नाश किसी भी प्रकार की परिस्थिति में न हो चाहे प्रलय भी क्यों न आ जाये, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूँ जो पापों का नाश करे, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये, मेरे तट पर सभी देव और देवताओं का निवास रहे आदि. इस कारण नर्मदा नदी का कभी विनाश नही हुआ, यह सभी के पापों को हरने वाली नदी है, इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में विराजमान किया जाता है, इसका बहुत अधिक मह्त्व है और इसके तट पर देवताओं का निवास होने से कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का विनाश हो जाता है.

कथा 2:- एक बार भगवान शंकर लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैखल पर्वत पहुंचे. उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ. इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई. जो शांकरी व नर्मदा कहलाई. शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी. रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ. मैखल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैखल-सुता भी कहलाई.
कथा 3: एक बार ब्रम्हा जी (ब्रम्हांड के निर्माता) किसी बात से दुखी थे, तभी उनके आंसुओं की 2 बूँद गिरी, जिससे 2 नदियों का जन्म हुआ, एक नर्मदा और दूसरी सोन. इसके अलावा नर्मदा पूराण में इनके रेवा कहे जाने के बारे में भी बताया गया है.

माँ नर्मदा नदी का महत्व, Narmada Jayanti Mahatva
स्कंद पुराण में नर्मदा नदी के बारे में उल्लेख मिलता है कि भयंकर प्रलयकाल में भी नर्मदा नदी स्थिर और स्थाई रहती है. नर्मदा के बारे में मत्स्य पुराण में लिखा है कि इसके दर्शन मात्र से पापियों के पाप नष्ट हो जाते हैं. नर्मदा, गंगा, सरस्वती व नर्मदा नदी को ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्वेद के समान पवित्र माना जाता है. नर्मदा नदी के तट पर उद्गम से लेकर विलय तक कुल 60 लाख, 60 हजार तीर्थ स्थल बने हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार नर्मदा नदी का हर पत्थर शंकर रूप माना जाता है. नर्मदा नदी के तट पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है. नर्मदा नदी विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और आज भी सैकड़ों श्रद्धालु परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं.

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