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छोटी दीपावली के दिन क्यों की जाती है माता लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी की पूजा, नरक चौदस के दिन क्यों की जाती है अलक्ष्मी की विदाई, कौन हैं अलक्ष्मी माता, अलक्ष्मी माता की कहानी, Narak Chaturdashi Alaxhmi Vidai, Narak Chaturdas Ke Din Kyo Ki Jaati Hai Alaxmi Ki Puja, Alaxmi Ki Kahani, Laxmi Elder Sister Alaxmi Puja In Hindi, Choti Diwali Puja

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छोटी दीपावली के दिन क्यों की जाती है माता लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी की पूजा
दिवाली का त्यौहार पांच दिन तक मनाया जाता है, जो धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है. हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को यानी कि दिवाली (लक्ष्मी पूजन) से एक दिन पहले छोटी दिवाली का पर्व मनाया जाता है। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, काली चौदस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन अलक्ष्मी देवी का पूजन किया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जब छोटी दीपावली पर अलक्ष्मी घर से जाती हैं, तभी दीपोत्सव के दिन माता लक्ष्मी घर में पधारती हैं। आज हम आपको इस आर्टिकल में अलक्ष्मी के बारे में जानकारी दे रहे हैं. जानिए अलक्ष्मी माता कौन हैं , उनकी सवारी क्या है और उनकी पूजन विधि क्या है-

कौन हैं अलक्ष्मी माता?
छोटी जिवाली के दिन माता अलक्ष्मी का पूजन किया जाता है. अलक्ष्मी , माता लक्ष्मी की बड़ी बहन हैं। इनका रूप माता लक्ष्मी के विपरीत है। अलक्ष्मी को गरीबी, दुख और दुर्भाग्य की देवी कहा जाता है। इनका दूसरा नाम ज्येष्ठी देवी भी है।मान्यता है समुद्रमंथन के समय कालकूट के बाद इनका प्रादुर्भाव हुआ। प्रादुर्भाव के समय ये वृद्धा थीं, इनके केश पीले, आंखें लाल तथा मुख काला था। देवताओं ने इन्हें वरदान दिया कि जिस घर में कलह होगी, वहीं तुम रहोगी। तुम हड्डी, कोयला, केश और भूसी में वास करोगी। कठोर असत्यवादी, बिना हाथ मुंह धोए संध्या समय भोजन करने वालों तथा अभक्ष्य-भक्षियों को तुम दरिद्र बनाओगी। लिंगपुराण के अनुसार अलक्ष्मी का विवाह दु:सह नामक ब्राह्मण से हुआ और उसके पाताल चले जाने के बाद वे यहां अकेली रह गईं। सनत्सुजात संहिता के कार्तिक माहात्म्य में लिखा है कि पति द्वारा परित्यक्त होने के बाद वे पीपल वृक्ष के नीचे रहने लगीं। वहीं हर शनिवार को लक्ष्मी इनसे मिलने आती हैं। अत: शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीया जलाने से समृद्धि आती है।

नरक चौदस के दिन क्यों की जाती है अलक्ष्मी की विदाई?
नरक चौदस के दिन विशेष रूप से अलक्ष्मी माता को विदा किया जाता है। अलक्ष्मी देवी को धूल, मिट्टी जैसे गंदी जगह पसंद है। अलक्ष्मी देवी का जिस व्यक्ति के घर में वास हो जाता है। वह अपने पूरे जीवनभर दरिद्र बना रहता है। उसके जीवन में न तो धन होता है और न ही कोई सुख होता है। क्योंकि बिना धन के सुख की प्राप्ति हो ही नहीं सकती। इसलिए अलक्ष्मी को नरक चतुर्दशी के दिन घर से विदा करने की परंपरा है। जिस जगह पर अलक्ष्मी देवी होती है। उस जगह पर लक्ष्मी देवी नही आती। इसलिए नरक चतुर्दशी के दिन घर से धूल मिट्टी को घर से बाहर निकाला जाता है। जब धूल मिट्टी को घर से बाहर निकाला जाता है तब दीप जलाकर दीप की ज्याति दिखाते हुए मिट्टी को बाहर फेंका जाता है।
अलक्ष्मी की सवारी है उल्लू
कई लोग माता लक्ष्मी की सवारी उल्लू को समझते हैं, वास्तव में ये अलक्ष्मी की सवारी है। माता लक्ष्मी गरुड़ पर सवार होती हैं। इसलिए दिवाली की रात को गरुड़ पर सवार लक्ष्मी का आवाह्न करना चाहिए। उल्लू पर सवार लक्ष्मी के आवाह्न से अलक्ष्मी आ जाती हैं।

रूप चतुर्दशी के दिन ऐसे करें अलक्ष्मी को घर से बाहर
मान्यता है कि छोटी दिवाली या नरक चौदस के दिन अलक्ष्मी का पूजन कर उन्हें घर से बाहर भेजा जाता है। इस दिन घर की साफ सफाई की जाती है। कबाड़, टूटे-फूटे कांच या धातु के बर्तन किसी प्रकार का टूटा हुआ सजावटी सामान, बेकार पड़ा फर्नीचर व अन्‍य प्रयोग में ना आने वाली वस्‍तुएं जिन्हें नरक के समान समझा जाता है, उन्हें बाहर निकाला जाता है और घर को अच्छे से साफ सुथरा किया जाता है. फिर छोटी दिवाली के दिन ही शाम के समय नाली के पास चौमुखी दीया जलाया जाता है। जब अलक्ष्मी चली जाती हैं, तब अगले दिन यानी दीपावली के दिन घर को सजाकर, रंगोली आदि बनाकर समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी के आगमन की तैयारी की जाती है. पूरे घर में झालर आदि से उजाला किया जाता है. महालक्ष्मी की पूरे विधिविधान से पूजा की जाती है और पूजा के बाद पूरे घर में अंदर बाहर दीपक जलाकर महालक्ष्मी का स्वागत किया जाता है.

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