Chhath Puja Kharna Vidhi

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छठ पूजा खरना –  परिचय
कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है और खरना पंचमी तिथि को किया जाता है। आमतौर पर छठ पर्व को बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ एक इलाकों में मनाया जाने वाला पर्व मानते हैं। लेकिन अब इस पर्व ने अपनी सीमाओं को लांघकर विदेशों में भी अपनी जगह बना ली है। इन क्षेत्रों के लोग अपने साथ छठ व्रत की आस्था भी अपने साथ लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों सहित विदेशों में भी पहुंच चुके हैं। इसलिए छठ अब केवल क्षेत्रीय पर्व ना होकर देश भर में मनाया जाने वाला पर्व बन चुका है। सूर्य उपासना का यह अनुपम लोकपर्व चार दिनों तक चलता है जिसका आरंभ नहाय-खाय के साथ होता है। अगले दिन खरना किया जाता है।

खरना क्या है
खरना का मतलब है शुद्धिकरण। व्रती नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है इसलिए इसे खरना कहते हैं। छठ पूजा का व्रत रखने वाला व्यक्ति खरना के पूरे दिन व्रत रखता है। उसके बाद रात को खीर खाता है और फिर सूर्योदय को अर्घ्य देकर पारण करने तक ना कुछ खाता है और न ही जल ग्रहण करता है। खरना एक प्रकार से शारीरिक और मानसिक शुद्धि की प्रक्रिया है। इसमें रात में भोजन के बाद अगले 36 घंटे का कठिन व्रत रखा जाता है। खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में होते हैं जिसमें उन्हें पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर शयन करना होता है। इसके लिए सोने के स्थान को अच्छे से साफ सुथरा करके पवित्र किया जाता है और स्वच्छ बिस्तर बिछाया जाता है।

खरना करने की व्रत विधि
खरना से ही 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाता है। यह व्रत तब समाप्त होता है जब उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को स्नान करती हैं और विधि-विधान से रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद बनाती हैं। इसके अलावा प्रसाद में मूली, केला भी रखा जाता है। देवता को चढ़ाए जाने वाले खीर को व्रती स्वयं अपने हाथों से पकाते हैं। खरना का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही पकाया जाता है. इस दिन मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर दूध, गुड़ व साठी के चावल से खीर और गेहूं के आटे की रोटी का प्रसाद बनाया जाता है. फिर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं।

मिट्टी के चूल्हे पर ही क्यों पकाया जाता है खरना का प्रसाद
खरना के दिन मिट्टी के नए चूल्हे के इस्तेमाल के पीछे मान्यता यह है कि चूल्हा बिल्कुल साफ होना चाहिए और उसपर पहले से किसी भी तरह का कोई भी खान-पान न पकाया गया हो. यानी चूल्हे पर किसी भी तरह की नमक वाली चीजें न बनी हो और मांसाहार भी न पकाया गया हो.

खरना का प्रसाद
इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को खीर-पूरी, पान-सुपाड़ी और केले का भोग लगाकर परिवार और आस-पड़ोस के सभी लोगों में प्रसाद बांटती हैं. छठी मइया को केले के पत्ते पर प्रसाद चढ़ाया जाता है. छठ मैया को भोग लगाने के बाद व्रती इसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं. खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है जो अगले 36 घंटे तक होता है।

खरना का प्रसाद बनाने की विधि, Kharna Prasad Vidhi
1. आमतौर पर खरना का प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी का चुल्हा और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे पहले चावल को पानी में भिगोकर छोड़ दें।
2. अब दूध को आधे से एक घंटे तक उबालें और फिर उसमें भिगोए हुए चावल को डाल दें।
3. इसके बाद इसे कवर कर के उबलने के लिए छोड़ दें। ध्यान रहे बीच-बीच में चलाते रहें वरना चिपकने लगेगा।
4. इसमें गुड़ डाल दें और अच्छी तरह मिला लें। इसमें आप मेवा भी डाल सकते हैं।
5. इसके बाद रोटी बनाएं और फिर उसपर अच्छी तरह शुद्ध घी लगा लें।

खरना में प्रसाद ग्रहण करने का नियम
खरना पर प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है. जब खरना पर व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो घर के सभी लोग बिल्कुल शांत रहते हैं. चूंकि मान्यता के अनुसार, शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है. साथ ही व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो उसके बादी ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं.

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