hartalika teej puja vidhi

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हरतालिका तीज – परिचय
हरतालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर साल रखा जाता है. इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं. दरअसल यह व्रत निर्जल रखा जाता है. इसी कारण यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज व्रत रखती हैं. उनके द्वारा यह व्रत सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखा है. हरतालिका तीज व्रत के लिए मायके से महिलाओं के लिए श्रृंगार का समान, मिठाई, फल और कपड़े भेजे जाते हैं. आइए जानते हैं हरतालिका तीज व्रत व्रत विधि, कथा, महत्व, व्रत पारण विधि और हरतालिका तीज व्रत अद्यापन विधि के बारे में-
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कैसे रखा जाता है हरतालिका तीज का व्रत
पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की तीज को यह व्रत रखा जाता है. इस महिलाओं के मायके से श्रृंगार का समान, मिठाई, फल और कपड़े भेजे जाते हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला सबसे कठिन और शुभफलदायी व्रत माना गया है. इस दिन महिलाएं सारा दिन बिना कुछ भी ग्रहण किये हुए निर्जला व्रत रखती है. इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर नए वस्त्र पहनती हैं व पूरा सोलह श्रृंगार करती हैं. कई जगह पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर पूजा के लिए महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति कच्ची मिट्टी से तैयार करती हैं. मंडप में माता पार्वती, गणेश जी और भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत् पूजा की जाती है. इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है. इस व्रत में आठों पहर पूजन करने का विधान है. रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है. अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. अगले दिन सुबह पूजा के बाद किसी सुहागिन स्त्री को श्रृंगार का सामान, वस्त्र, खाने की चीजें, फल, मिठाई आदि का दान करना शुभ माना जाता है.

हरतालिका तीज पूजन सामग्री, Hartalika Teej Puja Samagri
1. भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों को रखने के लिए धातु की थाली
2. एक चौकी
3. चौकी को ढकने के लिए साफ कपड़ा (पीला/नारंगी या लाल)
4. भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए प्राकृतिक मिट्टी या रेत
5. एक पूरा नारियल
6. जल के साथ एक कलश
7. कलश के लिए आम या पान के पत्ते।
8. घी
9. दीपक
10. अगरबत्ती और धूप
11. दीया जलाने के लिए तेल
12. कपास की बत्ती
13. कपूर
14. सुपारी 2 टुकड़े
15. केला
16. दक्षिणा
17. लाल गुड़हल के फूल
18. गणेशजी के लिए दूर्वा घास
19. भगवान शिव के लिए विल्वा या बेल के पत्ते, केले का पत्ता, धतूरा फल और फूल, सफेद मुकुट फूल, शमी पत्ते, चंदन, जनेउ, फल
20. माता पार्वती के लिए मेहंदी, काजल, सिंदूर, बिंदी, कुमकुम, चूड़ियां, बिछिया, कंघी, आभूषण, कपड़े और अन्य सामान
21. पंचामृत के लिए घी, दही, चीनी, दूध, मधु

हरितालिका तीज पूजा विधि, Hartalika Teej Puja Vidhi
1. सुबह जल्दी उठें और स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें.
2. अब बालू रेत से भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं.
3. एक चौकी पर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल की आकृति बनाएं.
4. एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, अक्षत, सिक्के डालें.
5. उस कलश की स्थापना अष्टदल कमल की आकृति पर करें.
6. कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
7. चौकी पर पान के पत्तों पर चावल रखें.
8. माता पार्वती, गणेश जी, और भगवान शिव को तिलक लगाएं.
9. घी का दीपक, धूप जलाएं.
10. उसके बाद भगवान शिव को उनके प्रिय बेलपत्र धतूरा भांग शमी के पत्ते आदि अर्पित करें.
11. माता पार्वती को फूल माला चढ़ाएं गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें.
12. भगवान गणेश, माता पार्वती को पीले चावल और शिव जी को सफेद चावल अर्पित करें
13. पार्वती जी को शृंगार का सामान भी अवश्य अर्पित करें.
14. भगवान शिव औऱ गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें. और देवताओं को कलावा (मौली) चढ़ाएं.
15. तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत कथा सुनें या पढ़ें.
16. इसके बाद श्रीगणेश की आरती करें और भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें.
17. पूरी पूजा विधिवत् कर लेने के बाद अंत में मिष्ठान आदि का भोग लगाएं.

चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है. फिर उन्हें भी रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें. चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा करें.
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हरतालिका तीज व्रत पारण विधि
हरतालिका तीज के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है, इस व्रत में दिन भर अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है. हरतालिका तीज के व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. इस व्रत में आठों पहर पूजन करने का विधान है, रात्रि के समय शिव-पार्वती के मंत्रों का जाप या भजन करना चाहिए. व्रत का पारण महिलाएं अगले दिन सुबह माता पार्वती की पूजा कर तथा माता को भोग लगाने के बाद जल पीकर करती हैं.
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हरतालिका तीज की कथा
कथा इस प्रकार है कि पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सह न सकीं. उन्‍होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्‍म कर दिया. अगले जन्‍म में उन्‍होंने राजा हिमाचल के यहां जन्‍म लिया और पूर्व जन्‍म की स्‍मृति शेष रहने के कारण इस जन्‍म में भी उन्‍होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्‍त करने के लिए तपस्‍या की. देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्‍या में लीन रहतीं. पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी. इस संबंध में उन्‍होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्‍होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्‍णु से कराने का निश्‍चय किया. पार्वतीजी विष्‍णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं. पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्‍हें लेकर घने जंगल में चली गईं. इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा. पार्वतीजी तब तक शिवजी की तपस्‍या करती रहीं जब तक उन्‍हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्‍त नहीं हुए. तभी से पार्वतीजी के प्रति सच्‍ची श्रृद्धा के साथ यह व्रत किया जाता है.

हरतालिका तीज व्रत का महत्व
हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. हरतालिका तीज व्रत करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की भी प्राप्ति होती है. संतान सुख भी इस व्रत के प्रभाव से मिलता है.माना जाता है कि हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था. माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. तभी से मनचाहे पति की इच्छा और लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. इस व्रत पर सुहागिन स्त्रियां नए वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं.
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हरतालिका व्रत उद्यापन विधि
शास्त्रों की मान्यता के अनुसार कम से कम 13 सालों तक हरितालिका तीज का व्रत रखने बाद ही इसका उद्यापन करना चाहिए. यदि आप इस व्रत को छोड़ना चाहती हैं तो इसे किसी और को सौंप सकती हैं या विधिवत पूजा कर इसका उद्यापन कर सकती हैं. इस व्रत का उद्यापन हरतालिका तीज के दिन ही करना होता है. व्रत का उद्यापन किसी योग्य पंडित के द्वारा करवाया जा सकता है. अगर खुद से इस व्रत का उद्यापन करना चाहती हैं तो इसके लिए कुछ आवश्यक सामग्री की आवश्यकता होगी. व्रत उद्यापन के लिए पूजन सामग्री में पांच सफेद कपड़े, सुहाग की सामग्री, फल, फूल, मिठाई, पंचामृत, जूते, सोने या चांदी की कोई वस्तु, अक्षत (अरवा चावल), पान सुपारी, गुलाल आदि. पूजा करने के बाद इन सामग्रियों को किसी ब्राह्मण दंपत्ति को दान कर दें और उन्हें भोजन कराएं. इस तरह से आप हरतालिका व्रत का उद्यापन कर सकती हैं.

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