choti diwali

छोटी दिवाली पूजा, Choti Diwali Puja Vidhi, नरक चतुर्दशी पूजा विधि, रूप चतुर्दशी औषधि स्नान, यम दीपदान, यम पूजा विधि, नरक चौदस कथा, नरक चौदस नियम व महत्व, Naraka Chaturdashi Puja Vidhi, Yam Deep Daan, Yam Puja Vidhi, Naraka Chaudash Katha In Hindi, Naraka Chaudash Mahtva

छोटी दिवाली पूजा, Choti Diwali Puja Vidhi, नरक चतुर्दशी पूजा विधि, रूप चतुर्दशी औषधि स्नान, यम दीपदान, यम पूजा विधि, नरक चौदस कथा, नरक चौदस नियम व महत्व, Naraka Chaturdashi Puja Vidhi, Yam Deep Daan, Yam Puja Vidhi, Naraka Chaudash Katha In Hindi, Naraka Chaudash Mahtva

छोटी दिवाली के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है. इस दिन को नरक चतुर्दशी और रूप चौदस भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन लोग अपने घर के बाहर यमराज के नाम का दीपक जलाते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती और स्वास्थ्य बेहतर रहता है। इस दिन यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान और दीप दान करने का विशेष महत्व है। माना जडाता है कि इस दिन नदी में स्नान करने से इंसान को यमलोक से मुक्ति मिल जाती है। आज हम आपको नरक चतुर्दशी की पूजन विधि, दीपदान और यम पूजन, पौराणिक कथा, महत्व व नियम के बारे में बता रहे हैं.

नरक चतुर्दशी पूजन विधि- (Narak Chaturdashi Puja Vidhi)
1. सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल की मालिश करें, अपामार्ग की टहनियों को सिर के ऊपर से सात बार घुमाएं, इसके बाद साफ पानी से स्नान करें.
2. नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
3. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। जल में तिल डालकर यमराज को तर्पण दें. ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
4. इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
5. नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
6. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
7. इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।

नरक चतुर्दशी के दिन कैसे करें स्नान
नरक चतुर्दशी को सूर्योदय से पहले तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, इसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण यानी अपामार्ग को शरीर पर घुमाना चाहिए। लौकी के टुकडे़ और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं। इसके बाद लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए। फिर स्नान करना चाहिए। पद्म पुराण में इसके लिए श्लोक लिखा है।
पद्मपुराण का मंत्र
सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:॥
अर्थात हे तुम्बी (लौकी)। हे अपामार्ग। तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो।

स्नान का महत्व
भविष्यपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। भागी नहीं होता है। इससे रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मीजी और जल में गंगाजी का निवास माना गया है। पद्मपुराण में लिखा है- जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता अर्थात नरक का

कैसे करें दीपदान और यम पूजन
यम दीपदान करने के लिए हल्दी मिलाकर गुंथे हुए गेहूं के आटे से बने विशेष दीप का उपयोग किया जाता है। यम दीपदान प्रदोष काल में करना चाहिए। इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें और उसमें स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियां रख लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। उसके बाद दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें। मंत्र बोलते हुए चार मुंह वाले दीपक को खील अथवा गेहूं की ढेरी बनाकर उस पर रखें। दीपक रखने के बाद हाथ में फूल लेकर फिर से ये मन्त्र बोलते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
मंत्र
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
अर्थ – त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों।

दीपदान और यम पूजन का महत्व
कार्तिक माह की चतुर्दशी तिथि पर धर्मराज यम को प्रसन्न करने के लिए सूर्यास्त के बाद दक्षिण दिशा में यम पूजा और दीपदान करना चाहिए। ऐसा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। यमराज प्रसन्न होकर आरोग्य और लंबी उम्र का आशीर्वाद देते हैं। यम पूजा और दीपदान से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इसके साथ ही जाने-अनजाने में किए गए हर तरह के पाप भी खत्म हो जाते हैं। जिससे परिवार पर किसी भी तरह की विपत्ति नहीं आती।

नरक चतुर्दशी के दिन नाली पर दीए जलाएं
घर की समृद्धि के लिए नरक चतुर्दशी का दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन घर के बाहर नाली पर एक दीया जरूर जलाना चाहिए। समाजिक मान्यता के लिहाज से यह संदेश जाता है कि घर की और आस-पास की सभी नालियां हमेशा साफ-सुथरी रहनी चाहिए और जल की निकासी कभी भी अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए। इसका सीधा संबंध घर की आर्थिक स्थिति से होता है। अगर आपके घर की नालियां जाम होती हैं तो ऐसा माना जाता है कि आमदनी रूक जाती है। पानी का संबंध वरुण देव से है और वरुण का संबंध धन से है, इसीलिए वरुण के निवास समुद्र को रत्नाकर कहा जाता है।

नरक चतुर्दशी का महत्व और पौराणिक कथाएं
1. राक्षस नरकासुर का वध : पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

2. दैत्यराज बलि की कथा : एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें। राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।

नरक चतुर्दशी का महत्व (Narak Chaturdashi Significance)
छोटी दिवाली पर खास तौर पर लोग यम देवता की पूजा कर घर के मुख्य द्वार के बाहर तेल का दीपक जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु कभी नहीं आती। इस दिन सुबह सूर्योदय से शरीर पर सरसों का तेल लगाकर स्नान करने का विशेष महत्व है। स्नान के बाद भगवान हरि यानी विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से पाप से मुक्ति मिलती है और सौन्दर्य बढ़ता है। छोटी दिवाली को यम चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध महीने में आए हुए पितर इसी दिन चंद्रलोक वापस जाते हैं। इस दिन अमावस्या होने के कारण चांद नहीं निकलता जिससे पितर भटक सकते हैं इसलिए उनकी सुविधा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन एक बड़ा दीपक जलाया जाता है। यमराज और पितर देवता अमावस्या तिथि के स्वामी माने जाते हैं।

नरक चतुर्दशी के नियम
परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।
1. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।
2. यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।
3. नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।

छोटी दिवाली पूजा, Choti Diwali Puja Vidhi, नरक चतुर्दशी पूजा विधि, रूप चतुर्दशी औषधि स्नान, यम दीपदान, यम पूजा विधि, नरक चौदस कथा, नरक चौदस नियम व महत्व, Naraka Chaturdashi Puja Vidhi, Yam Deep Daan, Yam Puja Vidhi, Naraka Chaudash Katha In Hindi, Naraka Chaudash Mahtva

ये भी पढ़े –

  1. 16 सोमवार व्रत विधि, 16 Somvar Vrat Vidhi In Hindi, 16 सोमवार व्रत कब से शुरू करें, सोलह सोमवार व्रत.
  2. नींद आने का मंत्र, Neend Aane Ka Mantr, जल्दी नींद आने का मंत्र, Jaldi Neend Aane Ka Mantra.
  3. बुध अष्टमी का व्रत कैसे करें, बुध अष्टमी व्रत पूजा विधि, बुधाष्टमी व्रत कथा, बुधाष्टमी पूजा मंत्र, बुधाष्टमी व्रत.
  4. बच्चों के नये नाम की लिस्ट, बेबी नाम लिस्ट, बच्चों के नाम की लिस्ट, हिंदी नाम लिस्ट, बच्चों के प्रभावशाली नाम.
  5. सामवेद क्या है, सामवेद में कितने मंत्र है, सामवेद संहिता, सामवेद पाठ, सामवेद का महत्व.
  6. शुक्ल पक्ष का अर्थ, कृष्ण पक्ष का अर्थ, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष किसे कहते हैं, एक महीने में कितने पक्ष होते हैं?.
  7. सोमवार व्रत कैसे करें, सोमवार व्रत पूजन विधि नियम कथा आरती, प्रति सोमवार व्रत विधि, सोमवार व्रत.
  8. Hanuman Ji Ke 12 Naam, हनुमान जी के 12 नाम, श्री हनुमान जी के 12 नाम, हनुमान जी के 12 नाम का मंत्र.
  9. न्यूरोबियान फोर्ट टेबलेट किस काम आती है, न्यूरोबिन Forte, Neurobion Forte Tablet Uses in Hindi, Neurobion Forte.
  10. मां गौरी चालीसा, Maa Gauri Chalisa, मां गौरी चालीसा का लाभ, Mata Gauri Chalisa Ka Laabh.