Ahoi Ashtami Vrat

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अहोई अष्टमी व्रत विधि, Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi
अहोई अष्टमी व्रत खासतौर से संतान प्राप्ति व संतानों की लंबी आयु एवं उनके कल्याण व के लिए रखा जाता है। ये व्रत खास तौर पर यूपी, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश और राजस्थान में रखा जाता है। इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी के दिन माताएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और शाम के समय तारों को देखने व अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं। इस व्रत को पूरे विधि विधान से करने वाली महिलाओं को अहोई माता अपना विशेष आशार्वाद देती हैं. व्रती की संतानों की आयु दीर्घ एवं जीवन मंगलमय होता है। अगर आप भी ये व्रत कर रही हैं तो यहां जान लीजिए अहोई अष्टमी की विधिवत पूजा विधि, कथा, आरती व पूजा के महत्व के बारे में विस्तार से-

अहोई अष्टमी व्रत किन्हें करना चाहिए
यह व्रत संतानहीन युगल के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है अथवा जिन महिलाओं को गर्भधारण में परेशानी हो रही हैं अथवा जिन महिलाओं का गर्भपात हो गया हो, उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए। इसके अलावा पुत्रवती महिलाएं संतानो की लंबी उम्र व उनके सुखी जीवन के लिए भी ये व्रत रखती हैं.

अहोई व्रत पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)
अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे, ऐसा संकल्प करें। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पर्वती की पूजा करें। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। संध्या काल में अर्थात सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर इन चित्रों की पूजा करें। पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें. पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें और उन्हें दूध भात अर्पित करें. फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें. कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु माँ को देकर उनका आशीर्वाद लें. अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें. चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें.

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha) 
अहोई अष्टमी की कथा (Ahoi Ashtami Story) पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसके सात पुत्र और सात बहुंए थीं। इस अलावा साहुकार की एक पुत्री भी थी जो दिवाली के समय अपने ससुराल से पिहर आया करती थी। एक बार दिवाली पर घर को लिपने के लिए साहुकार की बहुएं जंगल से मिट्टी लेने के लिए गई उनके साथ उनकी नंद भी मिट्टी लेने के लिए चली गई। उस जंगल में ही स्याहु अपने बच्चों के साथ रहा करती थी।

जब सहुकार की पुत्री खुरपी से मिट्टी काट रही थी तो वह खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई। जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। स्याहु को इस बात से अत्याधिक क्रोध आया और उसने कहा की तेरी वजह से मेरे पुत्र की मृत्यु हुई है। इसलिए मैं तेरी कोख बांध दूंगी। स्याहु की बात सुनकर साहुकार की पुत्री ने अपनी सभी भाभियों से विनती की कि वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लें। जब उसकी छह भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मना कर दिया तो उसकी सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद साहुकार की सबसे छोटी बहु के जो भी बच्ता होता था। वह सातवें दिन मर जाता था। जब साहुकार की छोटी बहु के सात पुत्र मर गए तो उसने इस समस्या के निदान के लिए एक पंडित को बुलाकर इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा। उस पंडित ने साहुकार की बहु को सुरही गाय की सेवा करके उसका आर्शीवाद प्राप्त करने की सलाह दी। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय की बहुत सेवा करती है।

सुरही गाय साहुकार की बहु से कहती है कि मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुं बताओं तुम क्या चाहती हो। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय को पूरी बात बताती है। सुरही गाय साहुकार की बहु को स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में चलते- चलते दोनों अत्याधिक थक जाती हैं और एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगती है। आराम करते समय साहुकार की बहु की नजह एक एक गरूड़ पंखनी के बच्चे पर पड़ती है। जिसे एक सांप डंसने जा रहा होता है। साहुकार की बहु उस सांप को मार देती है। उसी समय गरूड़ पंखनी भी वहां पर आ जाती है और जब वह उस जगह पर खुन बिखरा देखती है तो उसे लगता है कि साहुकार की बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है। वह उसे अपनी चोंच मारने स्याहु साहुकार की छोटी बहू की सेवा से खुश होकर उसे सात पुत्र और सात बहुओं का वरदान देती है। इस तरह स्याहु के वरदाने के कारण साहूकार की छोटी बहु के घर में सात पुत्र और सात बहुएं आ जाती है। तब ही से संतान के लिए अहोई माता का व्रत किया जाने लगा। अहोई का अर्थ होता है अनहोनी से बचानी वाली.

अहोई माता की आरती (Ahoi Mata Ki Aarti | Ahoi Ashtami Aarti)
जय अहोई माता, जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥
जय अहोई माता॥

ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥
जय अहोई माता॥

माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥
जय अहोई माता॥

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता॥
जय अहोई माता॥

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता॥
जय अहोई माता॥

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥
जय अहोई माता॥

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥
जय अहोई माता॥

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥
जय अहोई माता॥

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