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श्री हनुमान चालीस हिन्दी, Shree Hanuman Chalisa Hindi
हनुमान चालीसा से जुड़े तत्थय हनुमान जी की इस चालीसा में 3 दोहे और 40 चौपाई लिखी गई हैं. सिर्फ मंगलवार ही नहीं बल्कि किसी भी दिन लोग अपने मन से भय को भगाने के लिए हनुमान चालीसा की कुछ चौपाई पढ़ने लग जाते हैं. जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है पहली चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर.
1- हनुमान चालीसा १६ शताब्दी मैं तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गयी है. हनुमान चालीसा को अवधी भाषा में लिखा गया था.
2- हनुमान चालीसा की शुरूआत दो दोहे से होती जिनका पहला शब्द है ‘श्रीगुरु’, इसमें श्री का संदर्भ सीता माता है जिन्हें हनुमान जी अपना गुरु मानते थे.
3- हनुमान चालीसा को कवि तुलसीदास ने लिखा. यह अवधि भाषा में लिखी में लिखी गई. कवि तुलसीदास अपने अंतिम दिनों तक वाराणसी में रहे. वहां उन्हीं के नाम का एक घाट भी है, जिसे नाम दिया गया तुलसी घाट. यहीं रहकर तुलसीदास ने हनुमान मंदिर भी बनाया जिसका नाम है संकटमोचन मंदिर.
4- हनुमान चालीसा को सबसे पहले खुद भगवान हनुमान ने सुना. प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब तुलसीदास ने रामचरितमानस बोलना समाप्त किया तब तक सभी व्यक्ति वहां से जा चुके थे लेकिन एक बूढ़ा आदमी वहीं बैठा रहा. वो आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान हनुमान थे. इस बात से तुलसीदास बहुत प्रसन्न हुए और तब उन्होंने हनुमान के सामने उनसे जुड़ी 40 चौपाई कह डाली.
5- हनुमान चालीसा में हनुमान के ऊपर 40 चौपाई लिखी गई हैं. यह चालीसा शब्द इन्हीं 40 अंक से मिला.
हनुमान चालीसा के पहले 10 चौपाई उनके शक्ति और ज्ञान का बखान करते हैं. 11 से 20 तक के चौपाई में उनके भगवान राम के बारे में कहा गया, जिसमें 11 से 15 तक चौपाई भगवान राम के भाई लक्ष्मण पर आधारित है. आखिर की चौपाई में तुलसीदास ने हनुमान जी की कृपा के बारे में कहा है.


श्री हनुमानजी चालीसा, Shree Hanuman Chalisa

हनुमानजी चालीसा दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।

हनुमानजी चालीसा चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै ॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥४०॥

दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

हनुमान चालीसा हिंदी में अर्थ सहित, Shri Hanuman Chalisa Hindi Me Arth Sahit
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ (Arth) – इन पंक्तियों में राम भक्त हनुमान कहते हैं कि चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ कर, श्रीराम के दोषरहित यश का वर्णन करता हूं जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार फल देने वाला है. इस पाठ का स्मरण करते हुए स्वयं को बुद्धिहीन जानते हुए, मैं पवनपुत्र श्रीहनुमान का स्मरण करता हूं जो मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और मेरे मन के दुखों का नाश करेंगे.

चौपाई का अर्थ 
1- जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥1॥
अर्थ- श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है.
2- राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
अर्थ- हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है.
3- महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
अर्थ– हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालों के साथी, सहायक है.
4- कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ– आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं.
5- हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ– आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है.
6- शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ– शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है.
7- विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥
अर्थ– आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज करने के लिए आतुर रहते है.
8- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥
अर्थ– आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है.
9- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
अर्थ– आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया.
10- भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥
अर्थ– आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उद्‍देश्यों को सफल कराया.
11- लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
अर्थ– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया.
12- रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥
अर्थ– श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो.
13- सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥13॥
अर्थ– श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है.
14- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा॥14॥
अर्थ– श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है.
15- जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥15॥
अर्थ– यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते.
16तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥
अर्थ– आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने.
17तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥
अर्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है.
18- जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥
अर्थ– जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया.
19- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥
अर्थ– आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है.
20- दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
अर्थ– संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है.
21- राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥21॥
अर्थ– श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है.
22- सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥
अर्थ– जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता.
23- आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥23॥
अर्थ– आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते है.
24- भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
अर्थ– जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते.
25- नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
अर्थ– वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है.
26- संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
अर्थ– हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है.
27- सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
अर्थ– तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया.
28- और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
अर्थ– जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती.
29- चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
अर्थ– चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है.
30- साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अर्थ– हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है.
31- अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥31॥
अर्थ– आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।1.) अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।2.) महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।3.) गरिमा- जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।4.) लघिमा- जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।5.) प्राप्ति- जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।6.) प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।7.) ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।8.) वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है.
32- राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ-आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है.
33- तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अर्थ-आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है.
34अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥
अर्थ-अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे.
35और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
अर्थ-हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती.
36संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
अर्थ-हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है.
37- जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
अर्थ-हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए.
38- जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ-जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा.
39जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥
अर्थ-भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी.
40तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥40॥
अर्थ-हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए.

॥दोहा॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥
अर्थ-हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए.

हनुमान चालीसा की हर चौपाई एक मंत्र है
हनुमान चालीसा के 8 मंत्र हनुमान चालीसा की हर चौपाई ही मंत्र है। इनका जप कर अपनी समस्या का निवारण किया जा सकता है. रुद्राक्ष की माला पर हर मंत्र श्रद्धानुसार जपें.
1- बल-ज्ञान-बुद्धि पाने के लिए ‘महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।’
2- बल-बुद्धि-ज्ञान तथा विद्या प्राप्त करने हेतु ‘बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।’
3- स्वास्थ्य लाभ, रोग तथा दर्द दूर करने के लिए ‘नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।’
4- कठिन एवं असाध्य रोग से मुक्ति के लिए ‘राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।’
5- संकटों से मुक्ति के लिए ‘संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमंत बलबीरा।।’
6- भूत-प्रेत-भय से मुक्ति के लिए ‘भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।’
7- कठिन कार्य करने के लिए – दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
8- हनुमानजी एवं गुरु कृपा प्राप्त करने हेतु – जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
9- शां‍ति प्राप्त करने हेतु – एक सरल मंत्र है जिसके प्रयोग से शिव-हनुमान तथा रामचन्द्रजी की कृपा एकसाथ मिल जाती है। ॐ नम: शिवाय ॐ हं हनुमते श्री रामचन्द्राय नम:।

हनुमान चालीसा पड़ने के लाभ
सपने में हनुमानजी चालीसा पड़ने या हनुमान जी दिखने का अर्थ सपने में अलग-अलग भगवानजी को देखने के अलग-अलग संकेत होते हैं। जिनमें से हनुमानजी को देखना ज्यादा फलदायी होता है। हनुमानजी के सपनों के साथ अच्छी बात यह है कि इनके अलग-अलग रुपों के सपनों के अलग-अलग संकेत होते हैं। बन्दर देखना या मरा लंगूर देखना शुभ सपनों की श्रेणी में आता है। अगर आप सपने में हनुमान चालीसा पड़ते है तो ये एक अच्छा संकेत है। सपनो में हनुमान चालीसा पड़ने के निम्नलिखित लाभ है –
1- सफलता के दरवाजे खुलेंगे.
2- उम्र में बढ़ोतरी.
3- होने वाली है मनोकामना पूर्ति.
4- समस्याओं का अंत.
5- आपका झुकाव अध्यात्म की तरफ बढ़ेगा.
6- रणभूमि में सफलता मिलेगी.
7- दुश्मनों का नाश.

हनुमान जी से संबंधित सवाल और उनके जवाब, Sawal Jawab
1- हनुमान जी का जन्म कितने साल पहले हुआ था ?
ज्योतिषियों की गणना के अनुसार, हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था.भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था.
2- हनुमान जी पूर्व जन्म में कौन थे ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमानजी की माता अंजनि पूर्व जन्म में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं. चंचल स्वभाव के कारण उन्होंने तपस्या करते एक ऋषि के साथ अभद्रता कर दी. जिससे गुस्से में आकर ऋषि ने श्राप दे दिया कि तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा. पुंजिकस्थला ने ऋषि से क्षमा याचना की.
3- हनुमान जी के पिता और भाई ?
ब्रह्मांडपुराण में हनुमान जी के पिता केसरी और उनके पुत्रों के बारे में बताया गया है. इसमें वानर राज केसरी के कुल 6 पुत्र बताए गए हैं और अपने भाइयों में बजरंगबली को ज्‍येष्‍ठ बताया गया है. केसरीनंदन के पांच भाइयों के नाम इस तरह हैं – मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान.
4- हनुमान चालीसा का पाठ कितनी बार और किस दिन करने से लाभ मिलता है ?
से तों नित्य पढ़ सकते हों , परंतु अगर नित्य सम्भव न हो सके तो मंगलवार, शनिवार ही पढलो , वैसे हनुमान चालीसा में लिखा है जों सत बार पाठ कर कोई छुटयं बंदी महा सुख होई, यानी १०० बार पढ़ना चाहिए लेकिन १ बार भी पढा जा सकता है उससे अधिक ३,५,७,११,२१ ,३१,५१,१००. पहला : जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महासुख होई. प्रतिदिन सौ बार कर सकें तो बहुत अच्छा, अन्यथा सौ पाठ कर लें. दूसरा: मंगलवार की शाम से शुरू कर 27 दिन तक लगातार श्रीहनुमान जी के चित्र के सामने चमेली के तेल का दीपक जला कर भुना चना और गुड़ का भोग लगाकर प्रतिदिन 27 पाठ करें. हर एक पाठ उपरांत गुलाब का फूल अर्पण करें. आपका कार्य सिद्ध होगा.
5- सपने में हनुमान चालीसा पढ़ने का क्या अर्थ है?
हनुमान चालीसा हमें नहाकर, साफ कपड़े पहनकर करें.चालीसा पढ़ने से पहले हनुमान जी को गंगाजल से स्नान कराएं.लाल रंग के आसन पर बैठकर हनुमान चालीस पढ़ें.चालीसा उपरांत यदि हनुमान जी को भोग लगा रहे हैं तो उस प्रसाद में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें.हनुमान जी को सिंदूर, चमेली का तेल और जनेउ अर्पित करें.हनुमान चालीसा का पाठ हमेशा मंगलवार या शनिवार से प्रारंभ करें, इसके बाद रोजाना कर सकते हैं.किंतु एक बार शुरू करने के बाद कम से कम 27 दिनों तक इस पाठ को करें, बीच में एक भी दिन ना छोड़ें.


हनुमान चालीसा वीडियो – Hanuman Chalisa Video by Gulshan Kumar and Hariharan

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