Biography of Vallabhbhai Patel

वल्लभ भाई पटेल की जीवनी, वल्लभ भाई पटेल की बायोग्राफी, वल्लभ भाई पटेल का राजनीतिक करियर, वल्लभ भाई पटेल के विचार, Vallabhbhai Patel Ki Jivani, Vallabhbhai Patel Biography In Hindi, Vallabhbhai Patel Political Career, Vallabhbhai Patel Ke Vichar

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वल्लभ भाई पटेल की जीवनी
सरदार वल्लभ भाई पटेल एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ भारतीय बैरिस्टर और राजनेता भी थे. भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक सरदार वल्लभ भाई पटेल भी थे. वर्ष 1947 के बाद भारतीय स्वतंत्रता के पहले तीन वर्षों के दौरान, उन्होंने उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था. बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की. आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है. भारत सरकार ने भारत को अखंड भारत बनाने में सरदार पटेल के योगदान को सम्मान देने के लिए उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला 2014 में किया था. अतः अब हर साल 31 अक्टूबर को भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है.

नाम – वल्लभभाई झावेरभाई पटेल
उपनाम – सरदार पटेल, लौह पुरुष, ऑल इंडिया सर्विसेज के प्रणेता
जन्म – 31 अक्टूबर 1875 (उम्र 75 वर्ष)
जन्म स्थान – नाडियाड, गुजरात
राष्ट्रीयता – भारतीय
मृत्यु – 15 दिसंबर 1950
मृत्यु स्थान – बॉम्बे (अब मुंबई)
शिक्षा – वकालत (इंग्लैंड)
पद – गृह मंत्री (15 अगस्त 1947 – 15 दिसम्बर 1950)
पिता – झावेरभाई पटेल
माता – लाडबा देवी

वल्लभ भाई पटेल का प्रारम्भिक जीवन
भारत के लौह-पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नादिद ग्राम में हुआ था. उनके पिता झवेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाड बाई एक साधारण महिला थी. बचपन से ही पटेल कड़ी महेनत करते आए थे, बचपन से ही वे परिश्रमी थे. खेती में बचपन से ही पटेल अपने पिता की सहायता करते थे और पेटलाद की एन.के. हाई स्कूल में पढ़ते थे. उन्होंने 1896 में अपनी हाई-स्कूल परीक्षा पास की. स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे.

घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था. इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन महेनत करके जिले के नेता की परीक्षा पास करने की तैयारी कर रहे थे, और वह परीक्षा उन्होंने अच्छे गुणों से पास भी की थी. बाद में उन्होनें बड़ी मेहनत से बॅरिस्टरकी उपाधी संपादन कर ली. और साथ ही में देशसेवा में कार्य करने लगे.

वल्लभभाई पटेल एक भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे, और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओ में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक जनको में से एक थे. वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये कड़ा संघर्ष किया था और देश को एकता के सूत्र में बांधने में उन्होंने काफी योगदान दिया था, उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधने और आज़ाद बनाने का सपना देखा था. भारत और दूसरी जगहों पर वे सरदार के नाम से भी जाने जाते है.

सरदार पटेल की शिक्षा
उन्होंने करमसाद (Karamasad) में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद में हाई स्कूल में पढाई की थी. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लगा. उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की थी. अगस्त 1910 में, वे आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. उन्होंने 36 महीने के वकालत के कोर्स को महज़ 30 महीने में ही पूरा कर दिया था. वर्ष 1913 में, वह भारत लौट आये और अहमदाबाद में बस गए और अहमदाबाद बार में क्रिमिनल कानून में बैरिस्टर बन गए.

सरदार पटेल का राजनीतिक करियर
सन 1917 से 1924 तक पटेल ने अहमदाबाद के पहले भारतीय नगरपालिका आयुक्त के रूप में कार्य किया और 1924 से 1928 तक इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष रहे. पटेल ने पहली बार 1918 में अपनी छाप छोड़ी, जब उन्होंने फसल के ख़राब हो जाने के बावजूद भी बॉम्बे सरकार के द्वारा पूरा कर वसूलने के निर्णय के खिलाफ कैराना, गुजरात के किसानों और ज़मींदारों की मदद से आन्दोलन चलाया था. बारडोली अभियान में उनके कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें सरदार की उपाधि दी गयी थी जिसका मतलब होता है लीडर.

भारत को अखंड भारत बनाने में वल्लभ भाई पटेल का योगदान
ज्ञातव्य है कि जब अंग्रेजों ने भारत को आजादी की घोषणा की उस समय देश 565 देशी रियासतों में बंटा था. ब्रिटिश शासकों ने इन रियासतों को स्वतंत्र शासन करने की छूट दे दी थी. इस प्रकार भारत की आजादी कई छोटी-छोटी रियासतों में बंटी हुई थी. सरदार पटेल ने देश के गृह मंत्री के रूप में इन सभी से भारतीय गणतंत्र में शामिल होने का आग्रह किया था और हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ और कश्मीर को छोडक़र 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी.
लेकिन सरदार पटेल के मजबूत इरादों की वजह से इन सभी ने अंततः भारत में शामिल होने के लिए हामी भर दी थी. हालाँकि हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए पटेल साहब को ऑपरेशन पोलो चलाना पड़ा था.

वल्लभ भाई पटेल का भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान
सन 1930 के नमक सत्याग्रह (प्रार्थना और उपवास आंदोलन) के दौरान, पटेल को तीन महीने के कारावास की सजा दी गयी थी. मार्च 1931 में पटेल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन की अध्यक्षता की थी. जनवरी 1932 में उन्हें कैद कर लिया गया, जुलाई 1934 में रिहा हुए थे. उन्होंने 1937 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के संगठन का नेतृत्व किया और 1937-38 के कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे लेकिन गांधी जी के दबाव के कारण, पटेल पीछे हट गए और जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष चुने गए.

एक बार फिर से पटेल 1945-46 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए अग्रणी उम्मीदवार थे, लेकिन गांधी जी ने एक बार फिर हस्तक्षेप किया और जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. इसके बाद नेहरू को ब्रिटिश सरकार ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. यदि इस समय पटेल साब को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया होता हो शायद सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमन्त्री हो सकते थे. स्वतंत्रता के पहले तीन वर्षों के दौरान, सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री थे. सरदार पटेल भले ही भारत के पहले प्रधानमंत्री ना रहे हो लेकिन वे अखंड भारत के जनक हमेशा रहेंगे.

वल्लभ भाई पटेल का गाँधीजी के प्रति श्रद्धा
महात्मा गाँधी के प्रति सरदार पटेल की अटूट श्रद्धा थी. गाँधीजी की हत्या से कुछ क्षण पहले निजी रूप से उनसे बात करने वाले पटेल अंतिम व्यक्ति थे. उन्होंने सुरक्षा में चूक को गृह मंत्री होने के नाते अपनी ग़लती माना. उनकी हत्या के सदमे से वे उबर नहीं पाये. गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल को दिल का दौरा पड़ा था.

वल्लभ भाई पटेल का नेहरूजी से संबंध
जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि सरदार पटेल गुजरात के कृषक समुदाय से ताल्लुक रखते थे. दोनों ही गाँधीजी के निकट थे. नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे. पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख रखने वाले खांटी हिन्दू थे. नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे. कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे. कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था.

कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे. इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे ख़िलाफ़ थे. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता. यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवत: वे योग्य पात्र थे. भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा. 31 अक्टूबर, उनकी जयंती पर अपनी भावांजली के साथ शत् शत् नमन करते हैं.

वल्लभ भाई पटेल के विचार
1- जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती
2- कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं
3- उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिये
4- हमें अपमान सहना सीखना चाहिए
5- बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है
6- शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है
7- आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखें को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये.

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