Biography of Ravana

रावण की जीवनी, रावण की बायोग्राफी, रावण का पुष्पकविमान, रावण का विवाह, Ravana Ki Jivani, Ravana Biography In Hindi, Ravana Pushpakviman, Ravana Shadi

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रावण की जीवनी
आज इस लेख में हम आपको जिसके बारें में बताने जा रहें है उनका नाम तो आप सब ने सुना ही है हिंदु धर्म से जुड़े सभी लोग दशानन यानी रावण और श्री राम के बीच हुए युध्द के बारें में तो जानते ही है. आज हम आपको उन्ही रावण के बारें में बताने जा रहे है जिसका हर साल दशहरे के दिन पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का पाठ हम सब को सिखाया जाता है. जैसा कि आप सब जानते है कि रावण लंका का राजा था. वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था. किसी भी कृति के लिये नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है. रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने काम करता है. किंचित मान्यतानुसार रावण में अनेक गुण भी थे. शाकद्वीपीय ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था. रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है.

पूरा नाम: – रावण
जन्म: – त्रेता युग में
जन्म स्थान: – नोएडा से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित बिसरख गांव
मृत्यु स्थान: – श्रीलंका
पद/कार्य: – राजा

रावण का प्रारंभिक जीवन
यदि बात की जाए रावण के परिवार की तो रावण भगवान ब्रह्मा जी के वंशजों में से ही एक है. ब्रह्मा जी के कई सारे पुत्र थे जिनमें से उनके दसवे पुत्र का नाम अनाम प्रजापति पुलत्स्य था. रावण के पिता ऋषि विश्रवा एक बहुत महान ज्ञानी पंडित है जो सदैव धर्म के रास्ते पर ही चलते थे ब्रह्मा के वंशज होने के कारण रावण भगवान ब्रह्मा जी के पड़पोते थे. मुनि विश्रवा ने अपने जीवन काल में दो विवाह किये थे उनकी पहली पत्नी वरवणिनी और दूसरी पत्नी केकेसी थी. उनकी पहली पत्नी वरवणिनी एक पुत्र को जन्म दिया जिसे आज आप कुबेर के नाम से जानते हैं . जी हां वही जो दुनिया के सभी खजानों के राजा माने जाते हैं. और उनकी दूसरी पत्नी कैकसी ने अशुभ समय पर गर्भ धारण करके कुंभकरण, श्रुपनखा और रावण जैसे क्रूर राक्षसों को जन्म दिया. परंतु एक सकारात्मक काम भी उनके साथ हुआ जब उन्होंने विभीषण को जन्म दिया. विभीषण राक्षस कुल में पैदा होने के बाद भी बहुत ज्यादा सहज स्वभाव का व्यक्ति था.

रावण का विवाह
वैसे तो रावण के महल में रानीवास में हजारों रानियां रहती थी परंतु उनका सबसे पहला विवाह दिति के पुत्र मय जिनकी कन्या का नाम मंदोदरी था. मंदोदरी का प्राकट्य हेमा नामक एक अप्सरा के गर्भ से हुआ था. पौराणिक इतिहास में यह भी बताया जाता है कि मंदोदरी राजस्थान के जोधपुर के पास के ही एक क्षेत्र जिसका नाम मंडोर है वहां की रहने वाली थी. उनका विवाह रावण के साथ हुआ जिसके बाद उन्होंने कई सारे पुत्रों को जन्म दिया जिनमें से मुख्य इंद्रजीत, मदोहर, प्रहस्त, विरुपाक्ष और भीकम वीर थे. इसके अलावा रावण की बहन शूर्पणखा का विवाह भीम रावण ने कराया था शूर्पणखा के पति का नाम दानव राज विधु था जो दानव राज कालका के पुत्र थे.

रावण का जीवन नाभि में कैसे आया?
आपको यह वाक्य तो पता होगा कि किस प्रकार भगवान राम ने रावण का वध किया जी हां जब युद्ध के दौरान भगवान राम रावण को नहीं मार पा रहे थे और लगातार रावण युद्ध के मैदान में अपनी माया दिखाता जा रहा था तब भगवान राम को चिंतित देख विभीषण आगे आए और उन्होंने कहा कि भगवान रावण के प्राण उसके नाभि में एक अमृत कलश में रखे हुए हैं यदि आप उसकी नाभि पर वार करेंगे तभी रावण मृत्यु को प्राप्त हो सकता है. पुराना में ऐसा कहा जाता है कि रावण अमर होना चाहता था जिसके चलते उसने भगवान ब्रह्मा की वर्षों तक घोर तपस्या की जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें वरदान देते हुए उनका जीवन कलश उनकी नाभि में स्थित कर दिया. इससे रावण अपनी इच्छा अनुसार अजर अमर तो हो गया परंतु ऐसा नहीं हो पाया कि उसकी मृत्यु हुई ना हो.

आपने तो सुना ही होगा कि रामायण के मंचन के दौरान रावण को त्रिलोक विजेता कहकर संबोधित किया जाता है आखिरकार ऐसा क्यों चलिए जानते हैं. दरअसल रावण ने अपनी नीतियों के बलबूते पर अपने आसपास के मुख्य राज्य जैसे अंग द्वीप, मलय द्वीप, वराहद्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यशदीप और आंध्रालय इन सभी राज्यों पर धावा बोलकर अपने अधीन कर लिया था. उसके बाद नंबर आया लंका का उस समय लंका पर कुबेर का राज्य स्थापित था कुबेर जो रावण का सौतेला भाई भी था उसे लंका से पराजित करके रावण ने उसे वहां से भगा दिया और स्वयं लंका पर अपना आधिपत्य जमा लिया.

वहां से भागने के बाद कुबेर कैलाश पर्वत के ही आसपास के क्षेत्र जिसे आज तिब्बत के नाम से जाना जाता है वहां पर रहने लगा. उस समय कुबेर के पास एक पुष्पक विमान भी था जो मन की गति से चलता था और हवा में उड़ कर कहीं पर भी ले जाया जा सकता था जिसे रावण ने कुबेर से छीन लिया था. उसके बाद रावण ने इंद्रलोक पर भी अपना आधिपत्य जमाने के लिए धावा बोला जिसके बाद रावण के पुत्र मेघनाथ ने इंद्र को हराकर इंद्रलोक भी अपने नाम कर लिया था जिसके बाद से मेघनाथ को इंद्रजीत के नाम से भी संबोधित किया जाया करता था. तब से ही रावण को त्रिलोक विजेता के नाम से कहकर संबोधित किया जाता था.

रावण के पुष्पक विमान की विशेषताएं
1- पुष्पक निर्माण करने का पूरा कार्यक्रम ऋषि आगे द्वारा किया गया था और इसके निर्माण में विश्वकर्मा ने भी अपना सहयोग दिया था. दोनों के सहयोग से ही उस समय प्राचीन काल के दौरान ऐसे अकल्पनीय पुष्पक विमान का आविष्कार हुआ था.
2- पुष्पक विमान एक विभिन्न प्रकार का विमान था जिसे अपनी इच्छा के अनुसार छोटा वह बड़ा किया जा सकता था.
3- एक समय पर काफी सारे लोगों को पुष्पक विमान में चढ़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता था.
4- श्री रामायण रिसर्च कमेटी के सर्च विभाग द्वारा रावण के उस पुष्पक विमान के चार बड़े हवाई अड्डे पाए गए थे जिनका नाम सानवाड़ा गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा, और वारियापोला था. इन सभी हवाई अड्डों में से एक हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय ध्वस्त कर दिया था जिसका नाम उसानगोड़ा हवाई अड्डा था.
5- मन की गति से उड़ने वाले पुष्पक विमान को चंद मिनटों में ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता था.

रावण की महान रचनाएं
रावण ने अपने जीवन काल के दौरान बहुत सारी महान रचनाएं की जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं.
1- शिव तांडव स्त्रोत:- आपने कई बार शिव तांडव स्त्रोत को पढ़ा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी रचना करने वाला और कोई नहीं बल्कि रावण ही था. भगवान शिव की तपस्या के दौरान जब रावण ने अपनी शक्ति प्रदर्शन के दौरान कैलाश पर्वत अपने हाथों पर उठा लिया था और वह भगवान शिव को कैलाश पर्वत के साथ ही लंका ले जाना चाहता था जब भगवान ने अपने एक पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को हल्का सा दबाया तो रावण का हाथ पर्वत के नीचे ही दब गया तब भगवान शंकर से क्षमा मांगते हुए वह भगवान शंकर की स्तुति करने लगा और वही स्थिति बाद में चलकर शिव तांडव स्त्रोत के नाम से प्रख्यात हो गई.
2- अरुण संहिता:- अरुण संहिता को अधिकतर लाल किताब के नाम से संबोधित किया जाता है इस पुस्तक का अनुवाद कई भाषाओं में किया जा चुका है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह किताब सूर्य के सारथी अरुण द्वारा लंका पति रावण को प्रदान की गई थी जिसमें जन्मकुंडली, हस्तरेखा और सामुद्रिक शास्त्र से जुड़े कई सारे तथ्य सम्मिलित है.
3- रावण संहिता:- रावण संहिता रावण द्वारा ही लिखित एक ऐसी पुस्तक है जिसमें रावण के जीवन काल से जुड़ी प्रत्येक बातें लिखी गई हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि यह पुस्तक रावण द्वारा ही लिखी गई है और इसमें ज्योतिष से जुड़ी सभी जानकारियों का संपूर्ण भंडार निहित है.
इन सबके अलावा रावण पर भी कुछ ग्रंथों की रचना हुई है जिसमें से कुछ मुख्य वाल्मीकि रामायण जिसमें रावण का संपूर्ण विवरण मिलता है साथ ही आधुनिक काल में आचार्य चतुरसेन ने भी स्वयं रक्षा नामक उपन्यास लिखा जिसमें रावण के बारे में विस्तारपूर्वक व्याख्यान बताए गए हैं. इन सबके अतिरिक्त एक उपन्यास पंडित मदनमोहन शर्मा शाही द्वारा लिखा गया जिसे 3 विभागों में विभाजित किया गया उसका नाम भी लंकेश्वर रखा गया जिसमें लंकाधिपति रावण के बारे में संपूर्ण जानकारी दी हुई हैं.

रावण से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
1- शिवभक्त:- रावण भले ही कितना बड़ा अधर्मी रहा हो परंतु वह आरंभ काल से ही भगवान शिव की भक्ति में लीन रहा करता था और भगवान शिव को ही सबसे बड़ा मानता था.
2- रावण को गीत संगीत से बहुत ज्यादा प्रेम था इसके चलते ही आपने बहुत सारे चित्र में रावण के हाथ में वीणा देखी होगी. रावण वीणा वादन किया करता था और वह इतना अच्छा वीणा बजाया करता था कि स्वर्ग लोक से देवता आकर उसके वीणा वादन को सुना करते थे.
3- अपने पुत्र को अजय और अमर बनाने के लिए रावण ने अपनी शक्ति के बल पर नव ग्रहों को आदेश दिया था कि जब मेरे पुत्रों का जन्म हो तब तुम सभी को 11 वे स्थान पर रहना है. सभी देवताओं ने रावण की बात को मान लिया परंतु शनिदेव ने रावण की बात की अवहेलना करते हुए 12वें स्थान पर जाकर बैठ गए. जिसकी वजह से रावण इतना ज्यादा क्रोधित हो गया था कि रावण ने शनिदेव को बलपूर्वक अपने महल में कई वर्षों तक बंदी बनाकर रखा.
4- उसके जीवन की सबसे रोचक बात तो यह थी कि वह जानता था कि उसका मोक्ष केवल विष्णु भगवान के अवतार के हाथों ही लिखा है. उसे सर्व ज्ञाता भी कहा जाता था जिसके चलते सब कुछ जानते हुए भी उसने भगवान से बैर लिया ताकि वह उसे अपने हाथों से ही मारकर मोक्ष प्रदान कर सकें.
5- एक कथा के अनुसार यह प्रसिद्ध है कि जब एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक रावण हवन यज्ञ करता रहा परंतु भगवान प्रसन्न नहीं हुए तब उसने अपने सिर काटकर भगवान को अर्पण करना चाहा जैसे ही वह एक सिर काटता उसका दूसरा सिर्फ प्रकट हो जाता था. इस तरह उसने नौसेर भगवान को चढ़ाए और दसवां उसके शीर्ष पर विराजमान रहा जिसके बाद से ही उसे दशानन की संज्ञा दी गई.
6- माता सीता लगभग 11 महीने तक रावण के महल में स्थित अशोक वाटिका में रहे परंतु रावण ने उन्हें एक बार भी नहीं छुआ ऐसा इसलिए क्योंकि रावण एक श्राप से श्रापित था जिसमें रावण को यह श्राप दिया गया था कि यदि वह किसी स्त्री को जबरदस्ती से प्राप्त करना चाहेगा तो उसी समय उसके सिर के 10 टुकड़े हो जाएंगे.
7- इतना महान विद्वान और बलवान होने के बावजूद भी रावण किष्किंधा नरेश बाली से हार चुका था. किष्किंधा नरेश बाली ने लगभग 6 महीने तक उसे अपनी कांख में दबाकर अपनी तपस्या में लीन रहे.
8- भारत के दक्षिणी हिस्से में रावण को भगवान के रूप में माना जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि रावण के काल में कोई भी गरीब व्यक्ति गरीब नहीं था क्योंकि सभी के घर सोने से परिपूर्ण रहा करते थे. रावण को सोने से बहुत ज्यादा लगा था जिसके चलते उसने अपने महल और पूरी लंकापुरी सोने की बनवाई हुई थी.

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