Biography of Homi Jahangir Bhabha

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होमी जहांगीर भाभा की जीवनी
आज इस लेख में हम आपको भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा के बारें में बताने जा रहे है. बता दें कि उन्हे भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है. उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की ऐसी मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है. मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं को परख लिया था. उन्होंने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में उस समय कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था. उन्होंने कॉस्केट थ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान का प्रतिपादन करने साथ ही कॉस्मिक किरणों पर भी काम किया जो पृथ्वी की ओर आते हुए वायुमंडल में प्रवेश करती है. उन्होंने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेण्टर के स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो भारत के एटॉमिक एनर्जी कमीशन के पहले अध्यक्ष भी थे.

पूरा नाम: – होमी जहांगीर भाभा
जन्म: – 30 अक्टूबर 1909
जन्म स्थान: – मुंबई
मृत्यु: – 24 जनवरी 1966
पद/कार्य: – भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक

होमी जहांगीर भाभा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
आपको बता दें कि होमी जहांगीर भाभा मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में 30 अक्टूबर, 1909 को पैदा हुए थे. उनके पिता जी जहांगीर भाभा ने कैंब्रिज से शिक्षा प्राप्त की थी और एक जाने-माने वकील थे और एक वक्त पर टाटा इंटरप्राइजेज के लिए भी कार्य किया था. होमी की माता जी भी उच्च घराने से सम्बन्ध रखती थीं. बालक होमी के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था घर पर ही कर दी गई थी जहाँ वे विज्ञान तथा अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकों का अध्ययन करते थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा कैथरैडल स्कूल में हुई और फिर आगे की शिक्षा के लिए जॉन केनन में पढने गये. शुरुआत से ही उनकी अत्यधिक रूचि भौतिक विज्ञानं और गणित में थी. इसके बाद होमी ने एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा पास की. वर्ष 1927 में वो इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने कैंब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. वहां उन्होंने सन् 1930 में स्नातक की उपाधि अर्जित की और सन् 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की.

अध्ययन के दौरान कुशाग्र बुद्धी के कारण होमी को लगातार छात्रवृत्ती मिलती रही. पीएचडी के दौरान उनको आइजेक न्यूटन फेलोशिप भी मिली. उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक रुदरफोर्ड, डेराक, तथा नील्सबेग के साथ काम करने का अवसर भी मिला.

भाभा भौतिक विज्ञान ही पढ़ना चाहते थे – इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो उन्होंने अपने परिवार की ख्वाहिश के तहत की. फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था इसी कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने अपने प्रिय विषय फिजिक्स से खुद को जोड़े रखा.

होमी जहांगीर भाभा का करियर
दूसरे विश्वयुद्ध के प्रारंभ में वर्ष 1939 में होमी भारत वापस आ गये. उस समय तक होमी भाभा काफी ख्याती अर्जित कर चुके थे. इसी दौरान वह बेंगलूर के इंडियन स्कूल आफ साइंस से जुड़ गए और 1940 में रीडर पद पर नियुक्त हुए. यहाँ से उनका एक नया सफर शुरू हुआ जिसके बाद वह अंतिम समय तक देश के लिए विज्ञान की सेवा में लगे रहे. इंडियन स्कूल आफ साइंस बैंगलोर में उन्होने कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की.

वर्ष 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉ भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया था जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी. उन्हें 1944 में प्रोफेसर बना दिया गया. इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस के तात्कालिक अध्यक्ष और नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सी.वी. रमन भी होमी भाभा से बहुत प्रभावित थे.

उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बन गए.

वर्ष 1948 में डॉ भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया. इसके अलावा वह कई और महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भी रहे.

भाभा के बारे में एक बड़ी मजेदार बात ये है कि विज्ञान के साथ-साथ शास्त्रिय संगीत, मूर्तीकला, चित्रकला तथा नृत्य आदि क्षेत्रों में उनकी गहन रूचि और अच्छी पकङ थी. वे चित्रकारों और मूर्तिकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके चित्रों और मूर्तियों को खरीद कर टॉम्ब्रे स्थित संस्थान में सजाते थे और संगीत कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया करते थे. मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की पहली प्रदर्शनी का मुम्बई में उद्घाटन डॉ भाभा ने ही किया था.

भारत के महान वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सीवी रमन के मुंह से अपने वैज्ञानिक दोस्तों के लिए तारीफ़ के शब्द मुश्किल से निकलते थे… लेकिन इसमें एक अपवाद था… डॉ होमी जहाँगीर भाभा. रमन उन्हें भारत का लियोनार्डो डी विंची कहा करते थे.

वर्ष 1955 में जिनेवा में संयुक राज्य संघ द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग के पहले सम्मलेन में डॉ. होमी भाभा को सभापति बनाया गया. जहाँ पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक इस बात का प्रचार कर रहे थे कि अल्पविकसित देशों को पहले औद्योगिक विकास करना चाहिए तब परमाणु शक्ति के बारे में सोचना चाहिए वहीँ डॉ भाभा ने इसका जोरदार खण्डन किया और कहा कि अल्प विकसित राष्ट्र इसका प्रयोग शान्ति पूर्वक तथा औद्योगिक विकास के लिए कर सकते हैं.

डॉ भाभा को पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया परन्तु विज्ञानं की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान इस महान वैज्ञानिक को मिल नहीं पाया.

भारत के इस महान वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा का निधन 24 जनवरी 1966 में स्विट्जरलैंड में एक विमान दुर्घटना में हो गया.

देखा जाये तो उनके जीवन की कहानी आधुनिक भारत के निर्माण की कहानी भी है. भाभा को श्रद्धांजलि देते हुए जेआर डी टाटा ने कहा था, होमी भाभा उन तीन महान हस्तियों में से एक हैं जिन्हें मुझे इस दुनिया में जानने का सौभाग्य मिला है. इनमें से एक थे जवाहरलाल नेहरू, दूसरे थे महात्मा गाँधी और तीसरे थे होमी भाभा. होमी न सिर्फ़ एक महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे बल्कि एक महान इंजीनियर, निर्माता और उद्यानकर्मी भी थे. इसके अलावा वो एक कलाकार भी थे. वास्तव में जितने भी लोगों को मैंने जाना है और उनमें ये दो लोग भी शामिल हैं जिनका मैंने ज़िक्र किया है, उनमें से होमी अकेले शख़्स हैं… जिन्हें संपूर्ण इंसान कहा जा सकता है.

होमी जहांगीर भाभा का सम्मान
1- होमी भाभा भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों से कई मानद डिग्रियां प्राप्त हुईं
2- 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉ भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया
3- उनको पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया
4- वर्ष में 1943 में एडम्स पुरस्कार मिला
5- वर्ष 1948 में हॉपकिन्स पुरस्कार से सम्मानित
6- वर्ष 1959 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने डॉ. ऑफ सांइस प्रदान की
7- वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉ. भाभा को पद्मभूषण से अलंकृत किया

होमी जहांगीर भाभा की म्रूत्यु
दुर्भाग्यवश डॉ. भाभा अधिक दिनों तक राष्ट्र की सेवा नहीं कर पाए. वे 24 जनवरी 1966 को एक अर्तंराष्ट्रीय परिषद में शान्ति मिशन में भाग लेने के लिए देश से निकले. दुर्भाग्यवश वे जिस बोइंग विमान में यात्रा कर रहे थे, वह कंचन जंघा के क्षेत्र में बर्फीले तूफान में उलझकर दुर्घटना का शिकार हो गया. और ईसी दुर्घ्टनामें उनकी म्रूत्यु हो गई.

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