Biography of gautam buddha

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गौतम बुद्ध की जीवनी
भारत के भगवान माने जाने वाले गौतम बुध्द दुनिया को अपने विचारों से नया रास्ता दिखाने वाले महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु, एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे. बुद्ध की शादी यशोधरा के साथ हुई. इस शादी से एक बालक का जन्म हुआ था जिसका नाम राहुल रखा था लेकिन विवाह के कुछ समय बाद गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी और बच्चे को त्याग दिया.

पूरा नाम Born – सिद्धार्थ वशिष्ठ Siddharth Vasistha
उपनाम – गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ गौतम, शाक्यामुनि, बुद्धा Gautam Buddha, Siddharth Gautama, Shakyamuni, Buddha
राष्ट्रीयता Nationality – भारतीय Indian
जन्म – 483 ई० (उम्र 80 वर्ष)
जन्मस्थान – लुंबिनी, नेपाल Lumbini, Nepal
मृत्यु – 563 ई०
काम Occupation – बौद्ध धर्म के संस्थापक Founder of buddhism

वे संसार को जन्म, मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश व सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात के समय अपने राजमहल से जंगल की ओर चले गये थे. बहुत सालों की कठोर साधना के बाद बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बन गये.

भगवान गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व के समय कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नेपाल में हुआ था. कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई जिसमे एक बालक का जन्म हुआ था. गौतम गौत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम बुद्ध कहलाये. इनके पिता शुदोधन एक राजा थे इनकी माता माया देवी कोली वंश की महिला थी लेकिन बालक के जन्म देने के बाद 7 दिन के अंदर माया देवी की मृत्यु हो गयी थी.

जिसके बाद इनका लालन-पालन इनकी मौसी और राजा की दूसरी पत्नी रानी गौतमी ने की और इस बालक का नाम सिद्धार्थ रख दिया गया. इस नाम का मतलब होता हैं जो सिद्धि प्राप्ति के लिये जन्मा हो लेकिन इनको बाद में सिद्धि मिली थी. सिद्धार्थ बचपन से बहुत की दयालु और करुणा वाले व्यक्ति थे.

सिद्धार्थ बचपन में जब खेल खेलते थे तब वे स्वंय हार जाते थे क्योंकि वें दूसरों को दुःख नहीं देना चाहते थे. सिद्धार्थ का एक चचेरा भाई भी हैं जिसका नाम हैं देवदत्त हैं. एक बार देवदत्त ने अपने धनुष से एक बाण चलाया था जिससे एक पक्षी हंस घायल हो गया था और बाद में सिद्धार्थ ने उस घायल हंस की रक्षा की थी.

भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षा, विवाह और तपस्या
सिद्धार्थ ने अपनी शिक्षा गुरु विश्वामित्र से पूरी की. उन्होंने वेद और उपनिषद के साथ-साथ युद्ध विद्या की भी शिक्षा प्राप्त की. सिद्धार्थ को बचपन से घुड़सवारी, धनुष – बाण और रथ हांकने वाला एक सारथी में कोई दूसरा मुकाबला नहीं कर सकता था.

सिद्धार्थ की शादी मात्र 16 साल की आयु में राजकुमारी यशोधरा के साथ हुई थीं और इस शादी से एक बालक का जन्म हुआ था, जिसका नाम राहुल रखा था लेकिन उनका मन घर और मोह माया की दुनिया में नहीं लगा और वे घर परिवार को त्याग कर जंगल में चले गये थे.

पिता और राजा शुद्दोधन ने सिद्धार्थ के लिये भोग-विलास का भरपूर इंतजाम भी किया था. पिता ने अपने बेटे के लिए 3 ऋतु के हिसाब से 3 महल भी बनाये थें जिसमे नाच-गान औए ऐसो आराम की सारी व्यवस्था मौजूद थी लेकिन ये चीजें सिद्धार्थ को अपनी ओर नहीं खींच सकी. सिद्धार्थ ने अपनी सुंदर पत्नी और सुंदर बालक को छोड़कर वन की ओर चले जाने का निश्चय किया.

सिद्धार्थ ने वन जाकर कठोर से भी कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया. पहले तो सिद्धार्थ ने शुरू में तिल चावल खाकर तपस्या शुरू की लेकिन बाद में तो बिना खान-पान के तपस्या करना शुरू कर दिया. कठोर ताप करने के कारण उनका शरीर सुख गया था तप करते-करते 6 साल हो गये थे. एक दिन सिद्धार्थ वन में तपस्या कर रहे थें कि अचानक कुछ महिलाये किसी नगर से लौट रही थीं वही रास्ते में सिद्धार्थ तप कर रहे थें.

महिलाएं कुछ गीत गा रही थीं उनका एक गीत सिद्धार्थ के कानों में पड़ा था गीत था वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दों तारों को इतना छोडो भी मत कि वें टूट जायें सिद्धार्थ को कानों में पड़ गयी और वे यह जान गये की नियमित आहार-विहार से योग सिद्ध होता हैं, अति किसी बात की अच्छी नहीं. किसी भी प्राप्ति के लिये माध्यम मार्ग ही ठीक होता हैं, इसके लिये कठोर तपस्या करनी पड़ती हैं.

गौतम बुद्ध के उपदेश
भगवान बुद्ध ने लोगो को मध्यम का रास्ता अपनाने का उपदेश दिया. उन्होंने दुःख उसके कारण और निरावरण के लिये अहिंसा पर बहुत जोर दिया. जीवों पर दया करो.. गौतम बुद्ध ने हवन और पशुबलि की जमकर निंदा की हैं. बुद्ध के कुछ उपदेशों के सार इस प्रकार हैं-
1- महात्मा बुद्ध ने सनातन धर्म के कुछ संकल्पाओं का प्रचार और प्रसार किया था जैसे – अग्निहोत्र और गायत्री मन्त्र
2- ध्यान और अंत-दृष्टी
3- मध्य मार्ग का अनुसरण
4- चार आर्य सत्य
5- अष्टांग रास्तें

गौतम बुद्ध के विचार
1- गुजरा वक्त वापस नहीं आता – हम अक्सर ऐसा सोचते हैं कि अगर आज कोई काम अधूरा रह गया तो वो कल पूरा हो जाएगा हालांकि जो वक्त अभी गुजर गया वो वापस नहीं आएगा.
2- जिस तरह एक मोमबत्ती बिना आग के खुद नहीं जल सकती, उसी तरह एक इंसान बिना आध्यात्मिक जीवन के जीवित नहीं रह सकता.
3- भूतकाल में मत उलझो, भविष्य के सपनों में मत खो जाओ वर्तमान पर ध्यान दो यही खुश रहने का रास्ता है.
4- सत्य के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति केवल दो ही गलतियाँ कर सकता है या तो पूरा रास्ता न तय करना या फिर शुरुआत ही न करना.
5- हर इंसान को यह अधिकार है कि वह अपनी दुनिया की खोज स्वंय करे.
6- हर दिन की अहमियत समझें – इंसान हर दिन एक नया जन्म लेता है हर दिन एक नए मकसद को पूरा करने के लिए है इसलिए एक-एक दिन की अहमियत समझें.
7- गुजरा वक्त वापस नहीं आता – हम अक्सर ऐसा सोचते हैं कि अगर आज कोई काम अधूरा रह गया तो वो कल पूरा हो जाएगा हालांकि जो वक्त अभी गुजर गया वो वापस नहीं आएगा.
8- खुशी हमारे दिमाग में है- खुशी,पैसों से खरीदी गई चीजों में नहीं बल्कि खुशी इस बात में है कि हम कैसा महसूस करते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं और दूसरे के व्यवहार का कैसा जवाब देते हैं इसलिए असली खुशी हमारे मस्तिष्क में है.
9- आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है,लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करते हैं.
10- अच्छी चीजों के बारे में सोचें – हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं, इसलिए सकारात्मक बातें सोचें और खुश रहें.
11- जिस तरह से लापरवाह रहने पर, घास जैसी नरम चीज की धार भी हाथ को घायल कर सकती है, उसी तरह से धर्म के असली स्वरूप को पहचानने में हुई गलती आपको नरक के दरवाजे पर पहुंचा सकती है|
12- इर्ष्या और नफरत की आग में जलते हुए इस संसार में खुशी और हंसी कैसे स्थाई हो सकती है? अगर आप अँधेरे में डूबे हुए हैं तो आप रौशनी की तलाश क्यों नहीं करते|
13- जिस व्यक्ति का मन शांत होता है| जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है| वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है|
14- यह मनुष्य का अपना मन है न कि उसका शत्रु जो उसे रे मार्ग पर ले जाता है.
15- जीभ एक तेज चाकू की तरह बिना खून निकाले ही मार देता है.
16- हजारों दियो को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किये जलाया जा सकता है | ख़ुशी बांटने से ख़ुशी कभी कम नहीं होती
17- हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं; हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं| जब मन पवित्र होता है तो ख़ुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है.
18- अपने उद्धार के लिए स्वयं कार्य करें. दूसरों पर निर्भर नहीं रहें.
19- एक हजार खोखले शब्दों से एक शब्द बेहतर है जो शांति लाता है.
20- एक निष्ठाहीन और बुरे दोस्त से जानवरों की अपेक्षा ज्यादा भयभीत होना चाहिए ; क्यूंकि एक जंगली जानवर सिर्फ आपके शरीर को घाव दे सकता है, लेकिन एक बुरा दोस्त आपके दिमाग में घाव कर जाएगा
21- आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से ईर्ष्या करें. वे लोग जो दूसरों से ईर्ष्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती.
22- एक कुत्ते को एक अच्छा कुत्ता नहीं माना जाता है क्योंकि वह एक अच्छा नादकार है. एक आदमी एक अच्छा आदमी नहीं माना जाता है क्योंकि वह एक अच्छा बोल लेता है.

गौतम बुद्ध से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
1- गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में पिता राजा शुद्धोधन और माता मायादेवी के घर हुआ था.
2- उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था. लेकिन गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था.
3- गौतम के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था. उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी (सौतेली माँ) और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया.
4- जब गौतम बुद्ध के जन्म समारोह को आयोजित किया गया, तब उस समय के प्रसिद्ध साधु दृष्टा आसित ने एक भविष्यवाणी की, कि यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या एक महान पथ प्रदर्शक.
5- उन्होंने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद्‌ की शिक्षा प्राप्त की. यही-नहीं वेदों की शिक्षा के अलावा उन्होंने कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान जैसी कला को एक क्षत्रिय की भांति सीखा.
6- कम उम्र में शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में कोली वंश की कन्या यशोधरा से हुआ था.
7- उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था. उनके लिए तीन ऋतुओं के आधार पर अलग-अलग तीन महल बनवा दिए गए थे. जहां नाच-गाना और मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था थी. इसके साथ-साथ हर समय दास दासी सेवा करने में होते रहते थे. परन्तु, ये सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोह-माया में बांध नहीं सकी.
8- एक बार जब वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले. जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया. उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था. हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ, वह सड़क पर चल रहा था. जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तब उनकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया. जिसकी साँसे तेजी से चल रही थी. कंधे ढीले पड़ गए थे. बाँहें सूख गई थीं. पेट फूल गया था. चेहरा पीला पड़ गया था. दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था. तीसरी बार जब सिद्धार्थ को सैर करते हुए एक अर्थी दिखाई दी. जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे. पीछे बहुत से लोग रो रहे थे, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था. इन सभी दृश्यों को देख कर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए. उन्होंने सोचा कि धिक्कार है ऐसी जवानी का जो जीवन को सोख लेती है. धिक्कार है ऐसे स्वास्थ्य का जो शरीर को नष्ट कर देता है. धिक्कार है ऐसे जीवन का जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर लेता है. और मन ही मन विचार करने लगे क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी ? उसके बाद जब सिद्धार्थ चौथी बार बगीचे की सैर को निकले, तब उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिया. जो संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त होकर प्रसन्नचित्त प्रतीत हो रहा था. जिससे गौतम बुद्ध काफी प्रोत्साहित हुए और एक सन्यासी बनने का निर्णय किया.
9- राज्य का मोह छोड़कर सिद्धार्थ तपस्या के लिए राजगृह पहुँचे. जहां उन्होंने भिक्षा मांगनी शुरू की और घूमते-घूमते आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास जा पहुँचे. जिससे उन्होंने योग-साधना सीखी, समाधि लगाना सीखा. लेकिन सिद्धार्थ को उससे भी संतोष नहीं हुआ. जिसके बाद वह उरुवेला पहुँचे और वहाँ पर अलग तरह से तपस्या करने लगे.
10- शुरुआत में, गौतम बुद्ध ने केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, उसके बाद कुछ भी खाए तपस्या शुरू की.
11- छः साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई.
12- एक दिन बुद्ध के मध्यम मार्ग से होकर कुछ स्त्रियाँ गुजरती हैं, जहाँ गौतम बुद्ध तपस्या कर रहे थे. उन स्त्रियों का एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा. पर तारों को इतना भी मत कसो कि वे टूट जाएँ. यह बात सिद्धार्थ को जँच गई और मान गए कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है.
13- बैसाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे और उसी गाँव की एक स्त्री सुजाता ने एक पुत्र को जन्म दिया. क्योंकि उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मन्नत मांगी थी. मन्नत पूरी होने पर वह स्त्री सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर वटवृक्ष के पास जा पहुँची. जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे. उस स्त्री को ऐसा लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा कर रहे हैं. सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो. इतना कहकर सुजाता वहां से चली गई और उसी रात तपस्या करते हुए सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई. उस समय सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान का बोध हुआ था. तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए. जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध हुआ, वर्तमान में वह स्थान बोधिवृक्ष कहलाया और बोधगया के नाम से लोकप्रिय हुआ.
14- 80 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने धर्म का संस्कृत की जगह उस समय की सरल भाषा पाली में प्रचार किया.
15- कुछ समय के बाद वह काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे. जहाँ उन्होंने सबसे पहले धर्मोपदेश दिया.
16- पाली सिद्धांत के अनुसार 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वह जल्द ही परिनिर्वाण के लिए रवाना होंगे. जहां गौतम बुद्ध ने एक लोहार के घर अपना आखिरी भोजन ग्रहण किया, जिससे उनकी तबीयत ख़राब हो गई थी. तभी बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहा कि वह कुन्डा (लोहार) को कहे कि उनसे कोई गलती नहीं हुई है और उनका भोजन भी ठीक है.
17- उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया और अहिंसा पर बहुत जोर दिया. उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की. बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है – अग्निहोत्र तथा गायत्री मन्त्र का प्रचार, ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि, मध्यमार्ग का अनुसरण, चार आर्य सत्य, अष्टांग मार्ग, इत्यादि.
18- गौतम बुद्ध ने बहुजन हिताय लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजना शुरू किया. इसके अलावा अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम भूमिका निभाई. मौर्यकाल तक आते-आते भारत के अतिरिक्त बौद्ध धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में फैल गया था. इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है.
19- हिन्दू धर्म के अनुसार, गौतम बुद्ध को भगवन विष्णु का अवतार माना जाता है.

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