Biography of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बायोग्राफी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का करियर, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Ki jivani, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography In Hindi, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Career

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी
आज हम आपको आजाद भारत के सबसे पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति के बारें में बताने जा रहे है जिनका नाम है डॉ राधाकृष्णन इन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अध्यापन का कार्य शुरू करने वाले राधाकृष्णन आगे चलकर मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हुए और फिर देश के कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य किया. 1939 से लेकर 1948 तक वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी. एच. यू.) के कुलपति भी रहे. वे एक दर्शनशास्त्री, भारतीय संस्कृति के संवाहक और आस्थावान हिंदू विचारक थे. इस मशहूर शिक्षक के सम्मान में उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पूरा नाम: – डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म: – 5 सितम्बर 1888
जन्म स्थान: – तिरुमनी गाँव, मद्रास
मृत्यु: – 17 अप्रैल 1975
पद/कार्य: – आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन
बचपन से किताबें पढने के शौकीन राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था. साधारण परिवार में जन्में राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता . वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे, उनकी प्राम्भिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई. स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे , जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था.

कम उम्र में ही आपने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया. आपने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की . क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की. डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला.

डॉ. राधाकृष्णन के नाम में पहले सर्वपल्ली का सम्बोधन उन्हे विरासत में मिला था. राधाकृष्णन के पूर्वज सर्वपल्ली नामक गॉव में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गॉव में बस गये. लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे कि, उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गॉव का बोध भी सदैव रहना चाहिए. इसी कारण सभी परिजन अपने नाम के पूर्व सर्वपल्ली धारण करने लगे थे.

राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ. उन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे. यद्यपि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएँ भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिये भेजा. फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई. इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की. वह बचपन से ही मेधावी थे.

उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में ही शादी सम्पन्न हो जाती थी और राधाकृष्णन भी उसके अपवाद नहीं रहे. 1903 में 16 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह दूर के रिश्ते की बहन सिवाकामू के साथ सम्पन्न हो गया. उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी. अतः तीन वर्ष बाद ही उनकी पत्नी ने उनके साथ रहना आरम्भ किया. यद्यपि उनकी पत्नी सिवाकामू ने परम्परागत रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उनका तेलुगु भाषा पर अच्छा अधिकार था.

वह अंग्रेज़ी भाषा भी लिख-पढ़ सकती थीं. 1908 में राधाकृष्णन दम्पति को सन्तान के रूप में पुत्री की प्राप्ति हुई. 1908 में ही उन्होंने कला स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की और दर्शन शास्त्र में विशिष्ट योग्यता प्राप्त की. शादी के 6 वर्ष बाद ही 1909 में उन्होंने कला में स्नातकोत्तर परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. इनका विषय दर्शन शास्त्र ही रहा. उच्च अध्ययन के दौरान वह अपनी निजी आमदनी के लिये बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करते रहे.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन
भारत की आजादी के बाद यूनिस्को में उन्होंने देश का प्रतिनिदितिव किया. 1949 से लेकर 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे. वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया. सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया. इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया. जब वे राष्ट्रपति पद पर आसीन थे उस वक्त भारत का चीन और पाकिस्तान से युध्द भी हुआ. वे 1967में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए और मद्रास जाकर बस गये.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वतन्त्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था. शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण था.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे. डॉक्टर राधाकृष्णन के पुत्र डॉक्टर एस. गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन भी किया.

उनके विद्यार्थी जीवन में कई बार उन्हें शिष्यवृत्ति स्वरुप पुरस्कार मिले. उन्होंने वूरहीस महाविद्यालय, वेल्लोर जाना शुरू किया लेकिन बाद में 17 साल की आयु में ही वे मद्रास क्रिस्चियन महाविद्यालय चले गये. जहा 1906 में वे स्नातक हुए और बाद में वही से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की. उनकी इस उपलब्धि ने उनको उस महाविद्यालय का एक आदर्श विद्यार्थी बनाया.

दर्शनशास्त्र में राधाकृष्णन अपनी इच्छा से नहीं गये थे उन्हें अचानक ही उसमे प्रवेश लेना पड़ा. उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाने के कारण जब उनके एक भाई ने उसी महाविद्यालय से पढाई पूरी की तभी मजबूरन राधाकृष्णन को आगे उसी की दर्शनशास्त्र की किताब लेकर आगे पढना पड़ा.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुरस्कार
1- 1938 ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति.
2- 1954 नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, भारत रत्न.
3- 1954 जर्मन के, कला और विज्ञानं के विशेषग्य.
4- 1961 जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार.
5- 1962 भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है.
6- 1963 ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान.
7- 1968 साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे).
8- 1975 टेम्पलटन पुरस्कार. अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया. जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी.
9- 1989 ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था की स्थापना.

डा. राधाकृष्णन ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और भारतीय दर्शन से विश्व को परिचित कराया वे सावरकर और विवेकानन्द के आदर्शो से प्रभावित थे. बहुआयामी प्रतिभा के धनी डा. राधाकृष्णन को देश की संस्कृति से प्यार था शिक्षक के रूप में उनकी प्रतिभा,योग्यता और विद्यता से प्रेरित होकर ही उन्हें सविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया वे प्रसिद्ध विश्वविधालयो के उपकुलपति भी रहे.

भारत की आज़ादी के बाद डा. राधाकृष्णन सोवियत संघ में राजदूत बने 1952 तक वे रूस में राजनयिक रहे. उसके बाद उनको भारत के उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया, 1962 में डा. राजेन्द्र प्रसाद के बाद वे भारत के दुसरे राष्ट्रपति बने इनका कार्यकाल चुनौतियों भरा रहा. चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध तथा दो प्रधानमंत्रियो का निधन इनके इनके कार्यकाल में ही हुए. डा. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल नेताओ के आग्रह के बाद भी अस्वीकार कर दिया.

सन 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में इन्होने शिक्षक जीवन की शुरुआत की. इसके बाद अध्यापन कार्य करते हुए ये कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, रूस में भारत के राजदूत और 10 वर्ष तक भारत के उपराष्ट्रपति और अंत में सन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे. इस प्रकार इन्होने देश की अनेक सेवाएं की परन्तु सर्वोपरि वे एक शिक्षक के रूप में रहे.

काशी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लेने से गवर्नर ने इसे अस्पताल बना देने की धमकी दी थी. राधाकृष्णन ने दिल्ली जाकर वायसराय को प्रभावित कर समस्या हल की. गवर्नर द्वारा आर्थिक सहायता रोकने पर उन्होंने धन जुटाकर विश्वविद्यालय चलाया. शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सन 1954 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

सन 1949 में इन्हें मास्को में भारत का राजदूत चुना गया. मास्को में भारत की प्रतिष्ठा इन्ही की देन है. सन 1955 में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में सदन की कार्यवाही का इन्होने नया आयाम प्रस्तुत किया. सन 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में सेवा की. इन्होने मतभेदों के बीच समन्वय का रास्ता ढूढ़ने की बात सिखाई. सर्वागीण प्रगति के लिए इन्होने बताया की आज हमें अमेरिकी या रूसी तरीके की नहीं बल्कि मानववादी तरीके की जरुरत है. सन 1967 में राष्ट्रपति पद से मुक्त होने पर देशवासियो को सुझाव दिया की हिंसापूर्ण अव्यवस्था के बिना भी परिवर्तन लाया जा सकता है.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पटुवक्ता थे. इनके व्याख्यानों से पूरी दुनिया के लोग प्रभावित थे. ये राष्ट्रपति पद से मुक्त होकर मई सन 1967 में चेन्नई (मद्रास) स्थित घर के माहौल में चले गये और अंतिम 8 वर्ष अच्छी तरह व्यतीत किये. उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्षो शिक्षक के रूप में व्यतीत किया उन्हें आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता हैं उनका जन्मदिन 5 सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता हैं 17 अप्रैल 1975 को लम्बी बीमारी के बाद इस महापुरुष का निधन हो गया.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पुस्तके
1- द एथिक्स ऑफ़ वेदांत.
2- द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर.
3- माई सर्च फॉर ट्रूथ.
4- द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी.
5- रिलीजन एंड सोसाइटी.
6- इंडियन फिलासफी.
7- द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी.

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