Biography of Aryabhata

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आर्यभट्ट की जीवनी
आज इस लेख में हम आपको भारत के महान खगोलशास्री और गणितज्ञ के बारें में बताने जा रहें है. जिनका विज्ञान और गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं. आर्यभट्‍ट उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित (एलजेबरा) का प्रयोग किया. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना आर्यभटिया (गणित की पुस्तक) को कविता के रूप में लिखा. यह प्राचीन भारत की बहुचर्चित पुस्तकों में से एक है. इस पुस्तक में दी गयी ज्यादातर जानकारी खगोलशास्त्र और गोलीय त्रिकोणमिति से संबंध रखती है. आर्यभटिया में अंकगणित, बीजगणित और त्रिकोणमिति के 33 नियम भी दिए गए है.

जैसा कि आज हम सभी इस बात को जानते हैं कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है और इसी कारण रात और दिन होते हैं. मध्यकाल में निकोलस कॉपरनिकस ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था पर इस वास्तविकता से बहुत कम लोग ही परिचित होगें कि कॉपरनिकस से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानत: 24835 मील है. सूर्य और चन्द्र ग्रहण के हिन्दू धर्म की मान्यता को आर्यभट्ट ने ग़लत सिद्ध किया. इस महान वैज्ञानिक और गणितग्य को यह भी ज्ञात था कि चन्द्रमा और दूसरे ग्रह सूर्य की किरणों से प्रकाशमान होते हैं. आर्यभट्ट ने अपने सूत्रों से यह सिद्ध किया कि एक वर्ष में 366 दिन नहीं वरन 365.2951 दिन होते हैं.

पूरा नाम: – आर्यभट
जन्म: – दिसंबर, ई.स.476
जन्म स्थान: – अश्मक, महाराष्ट्र, भारत
मृत्यु: – दिसंबर, ई.स. 550
पद/कार्य: – गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री

आर्यभट्ट का प्रारंभिक जीवन
अगर बात करें आर्यभट्ट के शुरुआती जीवन की तो उन्होंने अपने ग्रन्थ आर्यभटिया में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है. इस जानकारी से उनके जन्म का साल तो निर्विवादित है परन्तु वास्तविक जन्मस्थान के बारे में विवाद है. कुछ स्रोतों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक प्रदेश में हुआ था और ये बात भी तय है की अपने जीवन के किसी काल में वे उच्च शिक्षा के लिए कुसुमपुरा गए थे और कुछ समय वहां रहे भी थे. हिन्दू और बौध परम्पराओं के साथ-साथ सातवीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ भाष्कर ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रूप में की है. यहाँ पर अध्ययन का एक महान केन्द्र, नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित था और संभव है कि आर्यभट्ट इससे जुड़े रहे हों. ऐसा संभव है कि गुप्त साम्राज्य के अन्तिम दिनों में आर्यभट्ट वहां रहा करते थे. गुप्तकाल को भारत के स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है.

आर्यभट्ट के कार्य
आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है. इस महान गणितग्य ने आर्यभटिय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत जैसे ग्रंथों की रचना की थी. विद्वानों में आर्यभट्ट सिद्धांत के बारे में बहुत मतभेद है . ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट सिद्धांत का सातवीं शदी में व्यापक उपयोग होता था. सम्प्रति में इस ग्रन्थ के केवल 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं और इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में भी विद्वानों के पास कोई निश्चित जानकारी नहीं है.

आर्यभटीय
आपको बता दें कि आर्यभटीय उनके द्वारा किये गए कार्यों का प्रत्यक्ष विवरण प्रदान करता है. ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट ने स्वयं इसे यह नाम नही दिया होगा बल्कि बाद के टिप्पणीकारों ने आर्यभटीय नाम का प्रयोग किया होगा. इसका उल्लेख भी आर्यभट्ट के शिष्य भास्कर प्रथम ने अपने लेखों में किया है. इस ग्रन्थ को कभी-कभी आर्य-शत-अष्ट (अर्थात आर्यभट्ट के 108 – जो की उनके पाठ में छंदों कि संख्या है) के नाम से भी जाना जाता है. आर्यभटीय में वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है. वास्तव में यह ग्रन्थ गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है. आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं. इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं. आर्यभटीय में कुल 108 छंद है, साथ ही परिचयात्मक 13 अतिरिक्त हैं. यह चार पदों अथवा अध्यायों में विभाजित है:

1- गीतिकपाद
2- गणितपाद
3- कालक्रियापाद
4- गोलपाद
5-आर्य-सिद्धांत

आर्य-सिद्धांत खगोलीय गणनाओं के ऊपर एक कार्य है. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, यह ग्रन्थ अब लुप्त हो चुका है और इसके बारे में हमें जो भी जानकारी मिलती है वो या तो आर्यभट्ट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से अथवा बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों जैसे ब्रह्मगुप्त और भास्कर प्रथम आदि के कार्यों और लेखों से. हमें इस ग्रन्थ के बारे में जो भी जानकारी उपलब्ध है उसके आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है. इस ग्रन्थ में ढेर सारे खगोलीय उपकरणों का भी वर्णन है. इनमें मुख्य हैं शंकु-यन्त्र, छाया-यन्त्र, संभवतः कोण मापी उपकरण, धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र, एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, छत्र-यन्त्र और जल घड़ियाँ.

उनके द्वारा कृत एक तीसरा ग्रन्थ भी उपलब्ध है पर यह मूल रूप में मौजूद नहीं है बल्कि अरबी अनुवाद के रूप में अस्तित्व में है – अल न्त्फ़ या अल नन्फ़. यह ग्रन्थ आर्यभट्ट के ग्रन्थ का एक अनुवाद के रूप में दावा प्रस्तुत करता है, परन्तु इसका वास्तविक संस्कृत नाम अज्ञात है. यह फारसी विद्वान और इतिहासकार अबू रेहान अल-बिरूनी द्वारा उल्लेखित किया गया है.

आर्यभट्ट का योगदान
1- आर्यभट का भारत और विश्व के गणित और ज्योतिष सिद्धान्त पर गहरा प्रभाव रहा है. भारतीय गणितज्ञों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले आर्यभट ने 120 आर्याछंदों में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत और उससे संबंधित गणित को सूत्ररूप में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ आर्यभटीय में प्रस्तुत किया है.
2- उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्किमिडीज़ से भी अधिक सटीक पाई के मान को निरूपित किया और खगोलविज्ञान के क्षेत्र में सबसे पहली बार यह घोषित किया गया कि पृथ्वी स्वयं अपनी धुरी पर घूमती है.
3- स्थान-मूल्य अंक प्रणाली आर्यभट्ट के कार्यों में स्पष्ट रूप से विद्यमान थी. हालांकि उन्होंने शुन्य दर्शाने के लिए किसी प्रतीक का प्रयोग नहीं किया, परन्तु गणितग्य ऐसा मानते हैं कि रिक्त गुणांक के साथ, दस की घात के लिए एक स्थान धारक के रूप में शून्य का ज्ञान आर्यभट्ट के स्थान-मूल्य अंक प्रणाली में निहित था.
4- यह हैरान और आश्चर्यचकित करने वाली बात है कि आजकल के उन्नत साधनों के बिना ही उन्होंने लगभग डेढ़ हजार साल पहले ही ज्योतिषशास्त्र की खोज की थी. जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं, कोपर्निकस (1473 से 1543 इ.) द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत की खोज आर्यभट हजार वर्ष पहले ही कर चुके थे. गोलपाद में आर्यभट ने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है.
5- इस महान गणितग्य के अनुसार किसी वृत्त की परिधि और व्यास का संबंध 62,832 : 20,000 आता है जो चार दशमलव स्थान तक शुद्ध है. आर्यभट्ट कि गणना के अनुसार पृथ्वी की परिधि 39,968.0582 किलोमीटर है, जो इसके वास्तविक मान 40,075.0167 किलोमीटर से केवल 0.2 % कम है.

आर्यभट्ट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1- आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटिय का उपयोग आज भी हिन्दू पंचांग हेतु किया जाता हैं.
2- गणित और खगोलशास्त्र में उनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए भारत के प्रथम उपग्रह का नाम उन्ही के नाम पर आर्यभट रखा गया.
3- आर्यभट ने दशमलव प्रणाली का निर्माण किया.
4- आर्यभट ने सूर्य सिद्धांत की भी रचना की.
5- 23 वर्ष कि आयु में आर्यभट ने आर्यभटिय ग्रन्थ की रचना की, जिसकी उपयोगिता एवम् सफलता को देखते हुए तत्कालीन राजा बुद्धगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया.
6- आर्यभट ने बिहार के तरेगाना क्षेत्र में सूर्य मंदिर में एक निरिक्षण शाला की स्थापना की.
7- विद्वानों के अनुसार अरबी रचनायें अल – नत्फ़  और अल – नन्फ आर्यभट के कार्यों का ही अनुवाद हैं.
8- आर्यभट ने अंकों को दर्शाने के लिए कभी भी ब्राह्मी लिपि का उपयोग नहीं किया, जो कि वैदिक समय से सांस्कृतिक प्रथा के अनुसार चले आ रहे थे. उन्होंने सदैव Alphabets ही प्रयोग किये.

इस प्रकार आर्यभट हमारे देश के महान गणितज्ञ, ज्योतिर्विद एवं खगोलशास्त्री थे, जिनका इन क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान हैं.

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