Jyada Neend Aana, Excessive sleepiness You Should Not Ignor Oversleeping Know Why Hypersomnia

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Jyada Neend Aana

परिचय – ज्यादा नींद आना, हाइपरसोम्निया क्या है?

उम्र और शारीरिक स्थिति के अनुसार सभी की नींद की अवधि अलग-अलग होती है। लेकिन जरूरत से ज्यादा सोना और उसके बाद भी कमजोरी महसूस होना और हर समय नींद आना जैसी समस्या आपके फिट न होने को बताता है। क्या आपको भी हर समय नींद की समस्या रहती है। ऐसा होने पर किसी काम में मन नहीं लगता है। अगर आपके साथ भी ऐसा है तो हो सकता है कि आप हाइपरसोम्निया नामक बीमारी से ग्रसित हों.
हाइपरसोम्निया – हाइपरसोम्निया एक स्लीप डिसॉर्डर है, जिसमें रात में बहुत नींद आती है और सुबह उठने में भी परेशानी होती है। इससे पीडि़त लोगों को सारा दिन नींद आती रहती है, चाहे काम कर रहे हों या बात कर रहे हों। दिक्कत तब होती है कि जब दिन में 1-2 बार झपकी लेने के बाद भी तरोताजा महसूस नहीं करते। यह जीवन के लिए घातक स्थिति नहीं है, लेकिन इससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

दो तरह के स्लीप डिसॉर्डर (हाइपरसोम्निया)

1- प्राइमरी हाइपरसोम्निया : यह सोने और जागने की क्रिया को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के तंत्र में खराबी आने से होता है।
2- सेकेंडरी हाइपरसोम्निया : यह उस स्थिति का नतीजा होता है, जिसके कारण गहरी नींद नहीं आती और थकान होती है। जैसे स्लीप एप्निया, इसके कारण रात में सांस लेने में परेशानी होती है और कई बार नींद खुलती है। कई दवाओं, कैफीन और एल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन भी हाइपरसोम्निया का कारण बन सकता है। थाइरॉएड और किडनी की परेशानियों में भी ऐसा होता है।

लक्षण – हाइपरसोम्निया के लक्षण

1. हाइपरसोम्निया का सबसे प्रमुख लक्षण है लगातार थकान बने रहना।
2. अधिक नींद लेने के बाद भी सुबह उठने में परेशानी होना।
3. ऊर्जा की कमी, चिड़चिड़ापन, एंग्जाइटी, भूख न लगना, सोचने और बोलने में परेशानी होना,
4. बेचैनी व चीजों को याद न रख पाना आदि लक्षण देखने को मिलते हैं।

कारण – हाइपरसोम्निया के कारण

1- स्लीप डिसॉर्डर नैक्रोप्लास्टी (दिन में उनींदापन महसूस करना) और स्लीप एप्निया (रात में नींद में सांस रुक जाना)।
2- लगातार कई रातों तक नींद पूरी न हो पाना। शिफ्ट जॉब में काम करना
3- मोटापा और शारीरिक सक्रियता की कमी
4- नशीली दवाओं व शराब का सेवन
5- कैफीन का अधिक मात्रा में सेवन
6- सिर में चोट लग जाना या कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या
7- कुछ दवाओं का असर
8- आनुवंशिक कारण
9- कई मानसिक और शारीरिक समस्याएं जैसे अवसाद, हाइपो-थाइरॉएडिज्म और किडनी संबंधी रोग।

जांच व उपचार – हाइपरसोम्निया की जांच व उपचार

हर समय बहुत नींद आती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर आपके सोने-उठने के समय, अवधि, खानपान की आदतों, भावनात्मक समस्याओं और स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछेगा। डॉक्टर कुछ जरूरी टेस्ट कराने के लिए भी कह सकता है जैसे ब्लड टेस्ट, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन), पोली-सोमनोग्रॉफी (स्लीप टेस्ट)। अधिक गंभीर मामलों में इलेक्ट्रोइन्सेफैलोग्राम (ईईजी) कराने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा नींद के दौरान हृदय की धड़कनों, सांसों और मस्तिष्क की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। मरीज की स्थिति के अनुसार ही उन्हें दवाएं दी जाती हैं।

नुकसान – क्या होता है नुकसान

1- डायबिटीज: हाइपरसोम्निया से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग हर रात में नौ घंटे से अधिक सोते हैं, उनमें डायबिटीज की आशंका उन लोगों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होती है, जो सात घंटे की नींद लेते हैं।
2- डिप्रेशन: अत्यधिक सोने से अवसाद के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं। दिन में उनींदापन और किसी काम पर ध्यानकेंद्रित न कर पाना अवसाद को और बढ़ा देता है।
3- मोटापा: अध्ययन कहते हैं कि जो लोग लगातार छह वर्षों तक हर रात 9-10 घंटे की नींद लेते हैं, उनमें मोटापे का खतरा, उन लोगों की तुलना में 21 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो 7-8 घंटे की नींद लेते हैं। इसके अलावा अधिक सोने वालों में सिरदर्द व कमर दर्द की समस्या भी अधिक होती है। कम उम्र में मृत्यु का खतरा भी बढ़ता है।

बचाव – ज्यादा नींद आने की बीमारी से कैसे बचें

1- नियत समय पर सोएं।
2- आठ घंटे से अधिक न सोएं।
3- नियमित व्यायाम करें।
4- एल्कोहल व कैफीन का सेवन कम करें।
5- पौष्टिक खाना खाएं।
6- योग और ध्यान करें।
7- गैजेट्स का इस्तेमाल कम करें।

शोधकर्ताओं के द्वारा यह पाया गया कि जो लोग 7-8 घंटे से ज़्यादा की नींद लेते हैं उनका स्टेटिस्टिकल ग्राफ़ मृत्यु की ओर नॉर्मल लोगों की अपेक्षा ज़्यादा है। इसका मतलब है कि अत्यधिक नींद लेने वाले व्यक्ति नार्मल लोगों की अपेक्षा ज़िंदगी का लुत्फ़ कम ले पाते हैं।इस तरह इन आंकड़ों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमें ना तो बहुत कम सोना चाहिए और न ही बहुत ज़्यादा। यक़ीनन हर एक चीज़ की एक लिमिट होती है जिस को पार करने पर हमें कुछ परेशानियाँ भी उठानी पड़ती है। ठीक यही चीज़ नींद के मामले में भी लागू होती है।

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