changes in menstrual cycle with age

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परिचय – 20, 30 और 40 की उम्र में मासिक धर्म में आने वाले बदलाव

प्रकृति का नियम है कि बच्चा पैदा होता है, वह धीरे-धीरे वयस्क होता है और फिर बूढ़ा होकर मर जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में उसके शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं. लड़कों और लड़कियों के शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं, जो उन्हें एक दूसरे से भिन्न बनाते हैं.
मासिक धर्म में पेट में दर्द होना, जी मितली, असहजता और मूड स्विंग्‍स होना आम बात है। लेकिन अगर माहवारी हर महीने समय पर ना आए तो ये चिंता का कारण बन जाती है। कई महिलाओं का पीरियड्स के साथ लव-हेट रिलेशनशिप होता है। आज इस पोस्‍ट के ज़रिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि 20, 30 और 40 की उम्र में माहवारी में किस तरह बदलाव आते हैं।
कई बार मासिक चक्र अप्रत्‍याशित होता है – किसी महीने देर से आता है तो कभी समय से पहले ही आ जाता है। कभी एक हफ्ते तक रक्‍तस्राव होता है तो कभी तीन दिन में ही बंद हो जाता है। स्‍ट्रेस, सेहत या जीवनशैली में बदलाव का असर मासिक स्राव पर पड़ता है।

मासिक धर्म क्‍या है? पीरियड्स क्या होते है ?

महिलाओं के शरीर में चक्रीय (साइक्लिकल) हार्मोस में होने वाले बदलावों की वज़ह से गर्भाशय से नियमित तौर पर ख़ून और अंदरुनी हिस्से से स्राव होना मासिकधर्म (अथवा माहवारी) कहलाता है
जब कोई लड़की पैदा होती है, तो उसके अण्‍डाशयों में पहले से लाखों अपरिपक्‍व अण्‍डाणु मौजूद होते हैं। जवान होने पर, उनमें से दसियों अण्‍डे महीने में एक बार हार्मोन उत्तेजित (हार्मोनल स्टिमुलेशन) होने की वजह से विकसित होने शुरू हो जाएंगे। आमतौर पर, प्रत्‍येक चक्र के दौरान अण्‍डाशय में केवल एक ही अण्‍डा परिपक्‍व होता है और गर्भाशय में छोड़ा जाता है (जिसे अण्‍डोत्‍सर्ग कहा जाता है)
उसी समय, गर्भावस्‍था की तैयारी में गर्भाशय का भीतरी हिस्सा मोटा होना शुरू हो जाता है। यदि यह अण्‍डाणु निषेचित नहीं होता, तो यह गर्भाशय के भीतरी हिस्से के अतिरिक्‍त ऊतकों के साथ माहवारी ख़ून के रूप में योनि से निकलना शुरू हो जाता है। इसके बाद अगला माहवारी चक्र फिर से शुरू हो जाता है

उम्र के साथ कैसे-कैसे बदलता है मासिक चक्र

उम्र बढ़ने पर शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव के साथ भी मासिक चक्र में बदलाव आता रहता है। इससे रक्‍तस्राव पर भी असर पड़ता है। तो चलिए जानते हैं 20, 30 और 40 की उम्र में पीरियड्स में कैसे और क्‍या बदलाव आते हैं।

12 से 15 वर्ष की उम्र में कष्टकारी

आमतौर पर 12 से 15 वर्ष की उम्र के बीच लड़कियों में मासिक धर्म की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. वैसे तो यह प्रक्रिया प्रत्येक महीने के अंतराल पर 4 से 6 दिनों तक चलती है, लेकिन शुरुआत में यह काफी अनियमित होती है.
लड़कियों को अपने भीतर बदलाव होते हुए महसूस होते हैं. इस दौरान लड़कियों को जी मितली, असहजता और मूड स्विंग्स से जूझना पड़ता है. शुरुआत में यह प्रक्रिया अनियमित होने के साथ-साथ असहनीय पीड़ा लेकर आती है.

20 की उम्र में क्‍या होता है

20 की उम्र तक आते-आते मासिक धर्म का चक्र नियमित हो जाता है. इस उम्र में लड़कियां इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए खुद को तैयार पाती हैं. इस उम्र में मासिक धर्म अप्रत्याशित जरूर नहीं होता है, लेकिन इसके बीच में कई समस्यायों का सामना लड़कियों को करना पड़ता है.
इस उम्र में स्राव नियमित होता है। हालांकि, नियमित माहवारी आने के बीच में कई समस्‍याएं भी होती हैं, जैसे कि – गर्भ निरोधक शुरु करने से स्राव कम या ना के बराबर हो सकता है लेकिन आपको इसे लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। शरीर को इसकी आदत होने में समय लगेगा लेकिन अगर तीन महीने से ज्‍यादा समय तक ऐसा होता है तो आपको गाइनेकोलॉजिस्‍ट से संपर्क करने की जरूरत है।
अगर आप स्‍ट्रेस नहीं ले रही हैं और गर्भवती नहीं हैं और आपको एक सप्‍ताह तक माहवारी रहती है तो इसकी वजह पीसीओएस या कोई हार्मोनल संतुलन हो सकता है जिसकी वजह से ओवरी में सिस्‍ट बनने लगते हैं। ये समस्‍या 20 की उम्र में महिलाओं में ज्‍यादा रहती है।
20 की उम्र के दौरान ऐसी कई चीज़ें होती हैं जो स्‍ट्रेस देती हैं। नौकरी, सीरियस रिलेशनशिप या ब्रेकअप जैसी कई वजहों से इस उम्र में तनाव रहता है। ये सब चीज़ें आपके मासिक चक्र को भी प्रभावित करती हैं क्‍योंकि इसमें दिमाग आपकी ओवरी तक स्‍ट्रेस हार्मोंस की वजह से संदेश नहीं भेज पाता है और इस वजह से कुछ महीने तक माहवारी अनियमित रहती है। 20 की उम्र में पीएमएस के लक्षण भी नज़र आते हैं जिसमें पेट में दर्द, ब्रेस्‍ट का सख्‍त होना या अन्‍य प्रीमेंस्‍ट्रुअल लक्षण शामिल होते हैा।

30 की उम्र में माहवारी

इस उम्र में माहवारी नियमित रहती है और स्राव ज्‍यादा या कम हो सकता है। 30 की उम्र में फाइब्रॉएड और एंडोमेट्रिओसिस भी सामान्‍य होता है।
30 की उम्र में महिलाओं को ये समस्‍याएं आती हैं
30 की उम्र में मां बनना पूरी तरह से आपके मासिक चक्र को बदल देता है। बच्‍चे को जन्‍म देने से आपके सामान्‍य मासिक चक्र पर भी असर पड़ता है खासतौर पर स्‍तनपान करवाने से। इसे लेकर ज्‍यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। 30 की उम्र में सबसे ज्‍यादा फाइब्रॉएड, पोलिप्‍स और सौम्य गर्भाशय वृद्धि की समस्‍या रहती है। इनका कोई नुकसान तो नहीं होता लेकिन ये आपके मासिक चक्र पर असर जरूर डालती हैं।

40 की उम्र में माहवारी

ये मेनोपॉज़ से पहले का समय होता है जिसमें आपको मासिक धर्म में अनियमितता या मासिक धर्म का ना आना या माहवारी के दौरान थोड़ा-बहुत रक्‍त आना जैसी दिक्‍कत रहती है। 40 की उम्र में मां बनना मुश्किल होता है। एक्‍सरसाइज़ रूटीन में बदलाव का भी आपकी उम्र पर असर पड़ता है क्‍योंकि शरीर को इस नई जीवनशैली में एडजस्‍ट होने में समय लगता है। इसका असर मासिक चक्र पर भी पड़ता है। माहवारी में व्‍यायाम करने से क्‍या होता है ?
40 की उम्र में गर्भाश्‍य का खतरा ज्‍यादा रहता है। ये अनिय‍मित माहवारी का पहला लक्षण है। तो अगर इस दौरान आपको माहवारी में दिक्‍कत या अनियमितता लगे तो तुरंत डॉक्‍टर से परामर्श करें। कुछ महिलाओं को मेनोपॉज़ से 10 साल पहले ही पेरीमेनोपॉज़ हो सकता है। यहां तक कि अगर आपका ऑवेल्‍यूशन नियमित है तो भी आप प्रेग्‍नेंट हो सकती हैं लेकिन अगर आपको एक साल से माहवारी नहीं हुई है तो रजोनिवृत्ति के चरण में प्रवेश कर चुकी हैं। इस चरण में एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍ट्रॉन हार्मोन अपने तरीके से काम करना बंद कर देते हैं और ये उस तरह से काम नहीं करते हैं जैसे कि आपकी जवानी में किया करते थे।

मासिक धर्म किस उम्र में बंद होता है

अगर महिलाओं में 40 की उम्र के बाद यदि मासिक धर्म बंद हो जाये तो इसको मेनोपॉज की अवस्था माना जाता है। इस अवस्था में मासिक धर्म धीरे-धीरे कम होने लगता है और एक-दो साल के भीतर पूरी तरह बंद हो जाता है। इसका कारण शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की मात्रा का कम होना होता है। मेनोपॉज की स्थिति में महिला को घबराने की जरूरत नहीं है। महिलाओं में 40 से 50 वर्ष की उम्र जब में मेनोपॉज मतलब रजोनिवृत्ति होती है। साधारण भाषा में जब महिला के पीरियड्स आना बंद हो जाते हैं तो उसे मेनोपॉज कहते हैं। जब मेनोपॉज होता है तो महिलाओं में कई शारीरिक व मानसिक बदलाव होते हैं। मेनोपॉज के दौरान किसी भी शारीरिक तकलीफ को नजरअंदाज न करें।

अनियमित पीरियड्स के Hormonal असंतुलन जो हर महिला को जरूर जानने चाहिए

अनियमित मासिक धर्म या इर्रेगुलर पीरियड्स की समस्या अब तेजी से बढ़ रही है, इसके पीछे Hormonal असंतुलन, जीवनशैली में परिवर्तन और दवाइयों का कुप्रभाव जैसे कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। महिलाओं को इससे जुड़े हर पहलू को करीब से जानना चाहिए, क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि आखिर अनियमित मासिक धर्म या इर्रेगुलर पीरियड्स होता क्या है। आमतौर पर महिलाओं में मासिक धर्म/पीरियड्स 14 से 48-50 साल की उम्र के बीच होता है।यह चक्र महीने में एक बार होता है और तीन से पांच दिन तक रहता है।किशोरियों में जल्दी या फिर देर से मासिक धर्म की समस्या भी बढ़ रही है। डॉक्टर्स इसे ओलिगोमेनोरिया कहते हैं। एक स्वस्थ महिला के पीरियड्स की अवधि 21 से 35 दिन के बीच होती है।

अनियमित परियड्स से जुड़े खास फैक्ट्स

20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच महिलाओं में अनियमित पीरियड्स की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। इसके पीछे Hormonal असंतुलन, जीवनशैली में परिवर्तन और दवाइयों का कुप्रभाव जैसे कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, यदि अनियमित पीरियड्स की समस्या 40 साल की आयु सीमा के बाद हो रही है तो इसके पीछे कारण होता है प्रीमेनोपॉज।अधिक तनाव की वजह से भी मासिक धर्म प्रभावित होता है।

तीन हार्मोंस जिनसे होती है अनियमित माहवारी की समस्या

महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन नाम के तीन हार्मोन मौजूद होते हैं। Hormonal संतुलन बिगड़ने पर पीरियड्स में परेशानी शुरू होने लगती है। महीने या फिर इससे ज्यादा समय तक बीमार रहने या थाइरॉयड की वजह से भी महिलाओं में मासिक धर्म में बदलाव होने की संभावना बढ़ जाती है।

पीरियड्स न आने का मतलब सिर्फ प्रेग्नेंट होना नहीं

पीरियड्स न होने को लेकर सामान्य तौर पर मान्यता है गर्भावस्था। मतलब यदि किसी महिला को पीरियड्स नहीं होते हैं तो इसका मतलब यह माना जाता है कि वह प्रेग्नेंट है।अधिकतर मामलों में ऐसा होता है, लेकिन सिर्फ यही एक कारण हो ऐसा भी नहीं है।यह शरीर में अन्य महत्वपूर्ण बदलावों का भी एक संकेत हो सकता है। जैसे- ज्यादा तनाव, जीवनशैली में बदलाव, खराब आहार आदि। मतलब माहवारी का न होना, देर से होना या बेहद कम समय के लिए होना, यह अनियमित पीरियड्स की पहचान है।

अनियमित माहवारी में गर्भाधारण

अनियमित माहवारी की वजह से गर्भधारण में भी समस्या आती है, लेकिन यह असंभव नहीं है। इसके लिए कई उपाय हैं। अनियमित माहवारी में महिलाओं को अपने अंडोत्सर्जन के लिए ज्यादा सर्तक रहना चाहिए। वे संतुलित खानपान और अच्छे इलाज से ऐसा कर सकती हैं।ऐसी स्थिति में जंक से फूड से बचना चाहिए। मोटापा अधिक होने के कारण भी समस्या बढ़ जाती है। महिलाओं में इस्ट्रोजन नामक हार्मोन ज्यादा बनने की संभावना बढ़ जाती है। इस स्थिति में लिपिड लेवल भी बढ़ा हुआ होता है, जिसकी वजह से ब्लड वैसल्स में फैट सेल्स भी बढ़ जाते हैं और ब्लड की नलियों में चिपक कर उन्हें संकीर्ण बना देते हैं। ये सेल्स ब्लड सप्लाई करने वाली नलियों को ब्लॉक भी देते हैं, इसलिए मोटापे पर नियंत्रण रखें।

अनियमित माहवारी के लक्षण

पीरियड्स में अनियमितता बढ़ने के कारण महिलाओं के यूटेरस में दर्द होता है। स्तन, पेट, हाथ-पैर और कमर में दर्द भी रहता है। ज्यादा थकान महसूस करना और भूख कम लगना भी इसका एक लक्षण है। कब्ज या दस्त की समस्या भी इस तकलीफ में हो जाती है। इसके अलावा यूटेरस में ब्लड क्लॉट्स का बनना भी मासिक धर्म की अनियमितता का लक्षण है।

भूलकर भी मासिक चक्र से न करें छेड़छाड़

पीरियड्स को हिंदी में मासिक धर्म भी कहा जाता है।मासिक धर्मचक्र शब्द का भी इस्तेमाल भारत में काफी प्रचलित है।जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि पीरियड्स एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका निश्चित समय पर आना बेहद जरूरी है। कई बार स्वास्थ्य संबंधी कारणों, जीवनशैली से ये अनियमित हो जाते हैं।ऐसे में कई उपाय हैं, जिनका प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि कई महिलाएं धर्मचक्र यानी पीरियड्स के समय से छेड़छाड़ करती हैं। यह बेहद हानिकारक होता है।महिलाएं धार्मिक कार्य, धार्मिक स्थानों की यात्रा या अन्य वजहों से मासिक धर्म को टालने का प्रयास करती हैं।मसलन पीरियड्स को आगे बढ़ाने के लिए गर्भनिरोध गोलियों का सेवन आदि, इससे बचना चाहिए।

ऐनीमिया यानी महिलाओं में खून की कमी भी हो जाती है. इसके बचाव के क्या उपाय हैं?

हमारे देश में यह परेशानी बहुत आम हो गई है. इसके प्रमुख लक्षण हैं कमजोरी, शरीर पीला पड़ना, सांस फूलना. गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में यह कमी ज्यादा देखने को मिलती है. सरकारी अस्पतालों में आयरन की गोलियां मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं, अत: इनका सेवन कर आयरन की कमी पर काबू पाया जा सकता है, इस के अतिरिक्त हरी पत्तेदार सब्जियां, गुड़, काले चने, खजूर, सेब, अनार, अमरूद इत्यादि में आयरन की प्रचुर मात्रा होती है. लोहे के बरतनों में खाना पकाने से भी शरीर को आयरन की पूर्ति होती है. इसके अलावा 6 माह के अंतराल में कीड़ों की दवा जरूर लेनी चाहिए.

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