Biography of Rana Kumbha

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राणा कुम्भा की जीवनी
मध्यकालीन भारत के महान शासकों में एक नाम राणा कुम्भा का भी आता है जो मेवाड़ का राजा बना और जिसे एक महान शासक रुप में जाना जाता है. महाराणा कुंभकर्ण का भारत के राजाओं में बहुत ऊँचा स्थान है. उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे. कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया. इतिहास में ये राणा कुंभा के नाम से अधिक प्रसिद्ध है.

राणा कुम्भा का प्रारंभिक जीवन
महाराणा कुम्भकर्ण, महाराणा मोकल के पुत्र थे और उनकी हत्या के बाद गद्दी पर बैठे. उन्होंने अपने पिता के मामा रणमल राठौड़ की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया. सन् १४३७ से पूर्व उन्होंने देवड़ा चौहानों को हराकर आबू पर अधिकार कर लिया. मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को भी उन्होंने उसी साल सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया और इस विजय के स्मारक स्वरूप चित्तौड़ का विख्यात कीर्तिस्तंभ बनवाया. राठौड़ कहीं मेवाड़ को हस्तगत करने का प्रयत्न न करें, इस प्रबल संदेह से शंकित होकर उन्होंने रणमल को मरवा दिया और कुछ समय के लिए मंडोर का राज्य भी उनके हाथ में आ गया. राज्यारूढ़ होने के सात वर्षों के भीतर ही उन्होंने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मोडालगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया और दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुलतान अहमदशाह को भी परास्त किया. उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, किंतु उन्हें सफलता न मिली. मालवा के सुलतान ने पांच बार मेवाड़ पर आक्रमण किया. नागौर के स्वामी शम्स खाँ ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया. यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई. मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया किंतु मुसलमानी सेनाएँ फिर परास्त हुई. महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए. उसने डीडवाना(नागौर) की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभोर, डूँगरपुर, सीहारे आदि स्थानों को जीता. इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया.

किंतु महाराणा कुंभकर्ण की महत्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है. उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया. कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है. बंसतपुर को उन्होंने पुन: बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया. चित्तौड़ का कीर्तिस्तंभ तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है. इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है. वे विद्यानुरागी थे, संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविंद आदि ग्रंथों की व्याख्या की. वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे. कीर्तिस्तंभों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए.

राणा कुम्भा ने जिस कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण कराया उसी है. इस दुर्ग में 1468 ई. को अपने पुत्र उदयसिंह प्रथम ( ऊदा ) द्वारा हत्या का शिकार हुए . यह घटना मेवाड़ के लिए पित्रहन्ता कही जाती है तथा इसी घटना को मेवाड़ का प्रथम कलंक कहा जाता है.

राणा कुम्भा के युद्ध और उपलब्धियाँ
इसके बाद कुम्भा ने गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन और नागौर के शासक शम्स खान की संयुक्त सेना को तथा मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराया और इस तरह राणा कुम्भा अपने समय का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन गया.
कुम्भा एक पराक्रमी यौद्धा और कुशल राजनीतिज्ञ ही नही था, वरन वह साहित्य व कला का महान संरक्षक भी था. महाराणा कुम्भा का काल भारतीय कला इतिहास में स्वर्णिम काल कहा जा सकता हैं. मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग राणा कुम्भा द्वारा निर्मित हैं.
इसमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो कि अजेय दुर्ग के नाम से भी जाना जाता हैं. दुर्ग के चारों ओर विशाल प्राचीर हैं जिसे चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार माना जाता हैं. इसे बुर्जियों द्वारा सुरक्षित किया गया हैं. कुम्भा का 1468 में स्वर्गवास हो गया था.

राणा कुम्भा का महल
महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे. मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया. 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं. उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है. कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी. संगीत राज उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है.

राणा कुम्भा का इतिहास
1- 1433 ई.* इस वर्ष महाराणा कुम्भा का राज्याभिषेक हुआ
2- (कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा कुम्भा के राज्याभिषेक का वर्ष 1418 ई. बताया है व उनकी पत्नी का नाम मीराबाई बताया है, जो कि सही नहीं है . मीराबाई तो महाराणा कुम्भा के 100 वर्ष बाद की थीं)
3- महाराणा मोकल के मामा मारवाड़ के रणमल्ल थे
4- रणमल्ल चित्तौड़ आए और चाचा व मेरा को मारने के लिए 500 सवारों के साथ निकले और कई जगह धावे बोले
5- चाचा व मेरा अपने साथी राजपूतों के हाथों मारे गए
6- इक्का (चाचा का बेटा) और महपा पंवार भागकर मांडू के सुल्तान महमूद की शरण में चले गए
7- राघवदेव (महाराणा कुम्भा के काका) और रणमल्ल के बीच खटपट हो गई
8- रणमल्ल ने धोखे से राघवदेव की हत्या कर दी, जिसका हाल कुछ इस तरह है कि रणमल्ल ने राघवदेव को तोहफे में अंगरखा दिया, जिसकी दोनों बाहों के मुंह सीये हुए थे . जब राघवदेव ने अंगरखा पहना तो उनके दोनों हाथ फँस गए, इतने में रणमल्ल ने तलवार से राघवदेव की हत्या कर दी .
9- महाराणा कुम्भा ने जनकाचल पर्वत व आमृदाचल पर्वत पर विजय प्राप्त की
1437 ई.
महाराणा कुम्भा ने देवड़ा राजपूतों को पराजित कर आबू पर अधिकार किया
1437-38 ई.
1- महाराणा कुम्भा ने मांडलगढ़ पर हमला कर विजय प्राप्त की
2- मांडलगढ़ पर हाडा राजपूतों के सहयोगियों का कब्जा था
3- इन्हीं दिनों में महाराणा ने खटकड़ पर हमला कर विजय प्राप्त की
4- कुछ दिन बाद जहांजपुर पर हमला किया . काफी मशक्कत के बाद महाराणा कुम्भा ने जहांजपुर पर विजय प्राप्त की.

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