Biography of CV Raman

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सी वी रमन की जीवनी
इस लेख में आज हम आपको बताने जा रहे है भारत के एक महान वैज्ञानिक के बारें में जिन्होंने दुनियाभर में भारत देश की एक अलग पहचान बनाई. उनका नाम है सीवी रमन जो आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपना अति महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी अनूठी खोजों से भारत को विज्ञान की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई.
अगर सीवी रमन ने यह खोज नहीं की होती तो शायद हमें कभी यह पता नहीं चल पाता कि समुद्र के पानी का रंग नीला क्यों होता है, और इस खोज के माध्यम से ही लाइट के नेचर और बिहेवियर के बारे में भी यह पता चलता हैं कि जब कोई लाइट किसी भी पारदर्शी माध्यम जैसे कि सॉलिड, लिक्वड या गैस से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियर में बदलाव आता है.

वास्तव में उनकी इन खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा प्रदान की, जिससे देश के विकास को भी बढ़ावा मिला. इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सीवी रमन को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और लेनिन शांति पुरस्कार समेत विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण कामों के लिए तमाम पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

पूरा नाम: – चंद्रशेखर वेंकटरमन / C. V. Raman
जन्म: – 7 नवंबर 1888
जन्म स्थान: – तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
मृत्यु: – 21 नवंबर 1970
मृत्यु स्थान: – बंगलौर, कर्नाटक
पद/कार्य: – भौतिक शास्त्र, शिक्षा

सी वी रमन का प्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवम्बर 1888 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में हुआ था. उनके पिता जी का नाम चंद्रशेखर अय्यर व माता जी का नाम पार्वती अम्मा था. वो अपने माता-पिता के दूसरे नंबर की संतान थे. उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर ए वी नरसिम्हाराव महाविद्यालय, विशाखापत्तनम, (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में भौतिक विज्ञान और गणित के प्रवक्ता थे. उनके पिता को पढ़ने का बहुत शौक़ था इसलिए उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी-सी लाइब्रेरी बना रखा थी. इसी कारण रमन का विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र में ही हो गया था. संगीत के प्रति उनका लगाव भी छोटी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर उनकी वैज्ञानिक खोजों का विषय बना. उनके पिता एक कुशल वीणा वादक थे जिन्हें वो घंटों वीणा बजाते हुए देखते रहते थे. इस प्रकार बालक रमन को प्रारंभ से ही बेहतर शैक्षिक वातावरण प्राप्त हुआ.

सी वी रमन की शिक्षा
बता दें कि छोटी उम्र में ही रमन विशाखापत्तनम चले गए. वहां उन्होंने सेंट अलोय्सिअस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण की. रमन अपनी कक्षा के बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं. उन्होंने अपनी मैट्रिकुलेशन की परीक्षा 11 साल में उतीर्ण की और एफ ए की परीक्षा (आज के +2/इंटरमीडिएट के समकक्ष) मात्र 13 साल के उम्र में छात्रवृत्ति के साथ पास की. वर्ष 1902 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में दाखिला लिया. उनके पिता यहाँ भौतिक विज्ञान और गणित के प्रवक्ता के तौर पर कार्यरत थे. वर्ष 1904 में उन्होंने बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण की. प्रथम स्थान के साथ उन्होंने भौतिक विज्ञान में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से ही एम. ए. में प्रवेश लिया और मुख्य विषय के रूप में भौतिक शास्त्र को चुना. एम. ए. के दौरान रमन कक्षा में कम ही जाते और कॉलेज की प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग और खोजें करते रहते. उनके प्रोफेसर उनकी प्रतिभा को भली-भांति समझते थे इसलिए उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक पढ़ने देते थे. प्रोफ़ेसर आर. एल. जॉन्स ने उन्हें अपने शोध और प्रयोगों के परिणामों को शोध पेपर के रूप में लिखकर लन्दन से प्रकाशित होने वाली फ़िलॉसफ़िकल पत्रिका को भेजने की सलाह दी. उनका यह शोध पेपर सन् 1906 में पत्रिका के नवम्बर अंक में प्रकाशित हुआ. उस समय वह केवल 18 वर्ष के थे. वर्ष 1907 में उन्होंने उच्च विशिष्टता के साथ एम ए की परीक्षा उतीर्ण कर ली.

सी वी रमन का विवाह
बात करें रमन के विवाह कि तो उनका विवाह 6 मई 1907 को लोकसुन्दरी अम्मल से हुआ. उनके दो पुत्र थे जिनका नाम था चंद्रशेखर और राधाकृष्णन.

सी वी रमन का करियर
बता दें कि रमन के अध्यापकों ने उनके पिता को सलाह दी कि वह उनको उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेंज दें परन्तु खराब स्वास्थ्य के कारण वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं जा सके. अब उनके पास कोई विकल्प नहीं था इसलिए वो ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित एक प्रतियोगी परीक्षा में बैठे. इस परीक्षा में रमन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया और सरकार के वित्तीय विभाग में अफ़सर नियुक्त हो गये. रमन कोलकाता में सहायक महालेखापाल के पद पर नियुक्त हुए और अपने घर में ही एक छोटी-सी प्रयोगशाला बनाई. जो कुछ भी उन्हें दिलचस्प लगता उसके वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसन्धान में वह लग जाते. कोलकाता में उन्होंने इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस के प्रयोगशाला में अपना अनुसन्धान जारी रखा. हर सुबह वो दफ्तर जाने से पहले परिषद की प्रयोगशाला में पहुँच जाते और दफ्तर के बाद शाम पाँच बजे फिर प्रयोगशाला पहुँच जाते और रात दस बजे तक वहाँ काम करते. वो रविवार को भी सारा दिन प्रयोगशाला में गुजारते और अपने प्रयोगों में व्यस्त रहते.

रमन ने वर्ष 1917 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस के अंतर्गत भौतिक शास्त्र में पालित चेयर स्वीकार कर ली. सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई.

ऑप्टिकस के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की रॉयल सोसाइटी का सदस्य बनाया गया और यह किसी भी वैज्ञानिक के लिये बहुत सम्मान की बात थी.

रमन इफ़ेक्ट की खोज 28 फरवरी 1928 को हुई. रमन ने इसकी घोषणा अगले ही दिन विदेशी प्रेस में कर दी. प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर ने उसे प्रकाशित किया. उन्होंने 16 मार्च, 1928 को अपनी नयी खोज के ऊपर बैंगलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया. इसके बाद धीरे-धीरे विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में रमन इफेक्ट पर अन्वेषण होने लगा.

वेंकट रमन ने वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता भी की. वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

वर्ष 1934 में रमन को बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान का निदेशक बनाया गया. उन्होंने स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे, हीरे की संरचना और गुणों और अनेक रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर भी शोध किया. उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की खोज की थी. वर्ष 1948 में वो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएस) से सेवानिवृत्त हुए. इसके पश्चात उन्होंने बेंगलुरू में रमन रिसर्च इंस्टीटयूट की स्थापना की.

सीवी रमन की उपलब्धियां
भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं-
1- वैज्ञानिक सीवी रमन को साल 1924 में लन्दन की रॉयल सोसाइटी का सदस्य बनाया गया.
2- सीवी रमन ने 28 फ़रवरी 1928 को रमन प्रभाव की खोज की थी, इसलिए इस दिन को भारत सरकार ने हर साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में बनाने की घोषणा की थी.
3- सीवी रमन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 16 वें सत्र की अध्यक्षता साल 1929 में की.
4- सीवी रमन को साल 1929 में उनके अलग-अलग प्रयोगों और खोजों के कई यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि, नाइटहुड के साथ बहुत सारे पदक भी दिए गए.
5- साल 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव जैसी महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें भारत के उत्कृष्ठ और प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. आपको बता दें कि वे इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई भी थे.
6- विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए साल 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.
7- साल 1957 में सीवी रमन को लेनिन शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया.

सी वी रमन के चर्चित वचन
1- मुझे मौलिक विज्ञान में पूरा विश्वास है, और इसको किसी भी औधोगिक, अनुदेशात्मक, सरकारों के साथ ही किसी भी सैन्य बल से प्रेरित नहीं किया जाना चाहिए.
2- आधुनिक भौतिक विज्ञान को पूरी तरह से परमाणु संविधान की मूल भुत परिकल्पना पर बनाया गया है.
3- हम अपनी असफलता के खुद ही जिम्मेवार है. अगर हम असफल नहीं होंगे तो हम कभी भी कुछ भी सीख नहीं पायेंगे. असफलता से ही सफलता पाने के लिए प्रेरित होते है.
4- हम अक्सर यह अवसर तलासते रहते है कि खोज कहा से की जाये, लेकिन हम यह देखते है प्राकृतिक घटना के प्रारंभिक बिंदु में ही एक नई शाखा का विकास छुपा हुआ है.
5- किसी भी सवाल से नहीं डरता अगर सवाल सही किया जाये तो प्राकृतिक रूप से उसके लिए सही जवाब के दरवाजे खुल जायेंगें.
6- आप ये हमेशा नहीं चुन सकते की कौन आपके जीवन में आएगा, लेकिन जो भी हो आप उनसे हमेशा शिक्षा ले सकते हो वो हमेशा आपको एक सीख ही देगा.
7- अगर कोई मुझसे सही से पेश आये तो हमेशा एक सही दिशा में सफलता को देखेगा, अगर मुझसे गलत तरीके से पेश आये तब तुम्हारी गर्त निश्चित है.
8- अगर कोई आपके बारे में वे अपने तरीके से सोचता है, तो वह अपने दिमाग के सबसे अच्छे जगह को बर्बाद करता है और यह उनकी समस्या हो सकती है आपकी नहीं.
9- जिस पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए मैंने 7 साल तक मेहनत करते हुए इंतजार किया और जब नोबेल पुरस्कार की घोषणा हुई, तो मैंने इसे अपना और अपने सहयोगी की उपलब्धि माना. लेकिन जब मै ब्रिटिश जैक में बैठा था और जब मै पीछे मुड कर देखा तब मुझे यह अहसास हो रहा था कि मेरा देश भारत कितना गरीब है, कि उसके पास अपने देश का एक झंडा भी नहीं है यह मेरे लिए बहुत पीड़ादायक स्थिति थी, और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा सारा शरीर टूट रहा है.
10- मुझे ऐसा लगता है और ये अहसास भी होता है कि अगर भारत की महिलाएं विज्ञान और विज्ञान की प्रगति में अपनी रूचि दिखाए, तो आज तक जो भी पुरुष हासिल करने में नाकाम रहे है वो वह सब कुछ वे प्राप्त कर सकती है. महिलाओं में भक्ति की एक गुणवत्ता है वह किसी भी काम को बहुत ईमानदारी से करती है यही गुणवत्ता विज्ञान के क्षेत्र में उन्हें महत्वपूर्ण सफलता दिला सकती है. इसलिए आईये हम एक कल्पना करते है विज्ञान के क्षेत्र में सिर्फ पुरुष ही अपना एकाधिकार न समझे.

सीवी रमन का निधन
महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने अपनी जिंदगी में ज्यादातर टाइम लैब में रहकर, नई-नई खोज और प्रयोग करने में व्यतीत किया. वह 82 साल की उम्र में भी रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर में अपनी लैब में काम कर रहे थे, तभी अचानक उनको हार्ट अटैक आया, जिसकी वजह से वह गिर पड़ें और तभी 21 नवंबर साल 1970 को उन्होंने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली.

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